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Friday, April 16, 2010
ये मैच फिक्स है, खुदा को मंजूर है
नेता हों; थरूर ( जो अपनी शादियों से प्रभावित कर सकें) व अन्य वर्तमान नेताओं जैसे , विचारधारा हो कांग्रेस और वामपंथियों जैसी, चाल-चलन हो माया,मुलायम और लालू जैसा, और इन सबकी गलत नीतियों से “केवल राजनितिक लाभ” लेने की ललक या प्रवृति हो भाजपा जैसी; “तो हमारा देश भारत (समाज-व्यक्ति, संस्कृति-संस्कार-इतिहास, धर्म और राजनीति) चोटी पर पहुँचने से पहले ही थक चुका है। यदि ऐसा ही रहा तो इसकी चोटी से उतरने की यात्रा चल पड़ेगी, और जिस तरह नीचे की ओर चलना तेज होता है एक बहाव के रूप में; उसी तेजी से चल कर गुलामी में जकड जायेगा। तो भारत का क्या ऐसा ही होगा……….? जो होगा मंजूरे खुदा होगा” ! हम कर ही क्या सकते हैं ? ऐसा कहते हमने बहुतों को सुना है (हो सकता है आप भी उनमे से हों) । आपने भी सुना तो होगा । ऐसा कहने और सोचने वालों के कारण ही आज हमारा ये प्यारा देश इस हालत में पहुँच गया है कि इसके अधिकतम नेता चरित्रहीन, भ्रष्ट, और अन्य तरह के अपराधों में लिप्त हैं। जबकि नेता वही होना चाहिए जो "ये" सब नहीं हो। जब नेता सही होगा तो उसके कर्मचारी और पिछलग्गू तथा आम जनता सही होगी।और इनको बिगाड़ने का दोष............. । इसका दोष हम तो अपनी पूर्व पीढियों को देंगे अब सोचने वाली बात है; कि खुदा को क्या मंजूर है ? (यहाँ पर मेरा आशय खुदा या भगवान् दोनों से है ) । खुदा को अगर ये मंजूर होता कि मनुष्य भी पशु की तरह ही रहे, तो मनुष्य को बनाता ही क्यों ? न दिखने वाले कीड़े से लेकर हाथी से भी बड़े जानवर क्या कम थे जो मनुष्य बनाया मनुष्यों में भी कुछ विशेष मनुष्य(ऋषि-महर्षि ) बनाये जिन्होंने ये जाना कि बिना समाज और मर्यादाओं के सुखपूर्वक जीवित रहना सरल नहीं है। तो उन्होंने समाज और संस्कृति का निर्माण किया और समाज सही प्रकार से चलने लगा। ये लोग देवता कहलाये। सब सही चलता रहा पर समाज जड़ होने लगा; क्योंकि सृष्टि का चक्र पूरा हुए बिना कैसे चलेगी, इसलिए खुदा को मंजूर नहीं हुआ उसने कुछ लोगों में असुर प्रव्रत्ति पैदा कर दी; जिन्होंने अपना आदर्श जंगली पशु और जीवन को समझा, और उसी का अनुकरण करते हुए जीने लगे और चलने लगे। और देवताओं को परेशान करने लगे , जिससे दोनों में; देवता और असुरों में बैर उत्पन्न होने लगा। दो संस्कृतियाँ बन गयी नाम चाहे कुछ भी लेलो एक देव संस्कृति एक असुर संस्कृति दोनों में तनाव चलता रहता है पर जीतते आखिर में देवता ही हैं। सृष्टी का चक्र पूरा होता रहता है। जो जैसे कर्म करेगा वैसा फल भुगतेगा ये बात वैज्ञानिक तरीके से भी सिद्ध होती है। क्योंकि इस ब्रम्हाण्ड से बाहर का न कुछ यहाँ आ सकता है न यहाँ से बाहर जा सकता है। जब यहीं के जीव यहीं पैदा हो रहे हैं तो उनका सम्बन्ध उनके कर्मों से कुछ न कुछ होगा; तभी तो उसके जीवन में सुख-दुःख रूपी अंतर होता है। इसका मतलब यह है कि खुदा को ये मंजूर है कि भारत का भला होना चाहिए क्योंकि ये जो देवताओं और असुरों का वैचारिक युद्ध चल रहा है उसमे विजय निश्चित देवताओं की होनी है । ये मैच फिक्स होता है और हजारों बार हो चुका है पर असुर इतने मूर्ख होते हैं कि समझ नहीं पाए आज तक, ये भारत देव भूमि है यहाँ असुर और असुरता दिखें चाहे कितनी ज्यादा पर निर्णय देवताओं के पक्ष में ही होगा। असुर भी देवता बनजाते हैं जब भगवन मोहिनी बन नचाते हैं। तो साहब ये असुर जो हम पर राज कर रहे हैं ; जिनका न चरित्र है न संस्कार वह हम पर राज कर रहे हैं और अपने नशे में चूर हैं उन्हें इस भारत से भारत की जनता से कुछ लेना ही लेना है ये दे कुछ नहीं सकते ये इनकी असुर प्रवृति है । और असुरों को समाप्त करने के लिए सभी देव प्रकृति वाले लोग एक हो रहे हैं यही खुदा को मंजूर है ।
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