महंगाई को समस्या समझने वालों के लिए एक नया “चिंतन बिंदु” पेश कर रहा हूँ;विचार करने के लिए। जो लोग महंगाई को समस्या समझ कर सरकार और महंगाई को कोसते हैं उन्हें इस पर जरुर विचार करना चाहिए। और जो महंगाई के लिए कांग्रेस का विरोध करते हैं उन्हें, और जो कांग्रेस के जन्मजात-आंख बंद“बंधुआ”,समर्थक, बुद्धिजीवी,गुलाम हैं उन के लिए तो मेरा ये विचार संजीवनी का काम करेगा। अपनी नाक और साख बचाने में असफल कांग्रेस और उसके "थिंक टैंक"के लिए ये बात बहुत विचारणीय है। उनको कुछ सूझ नहीं रहा अपनी "राजमाता और राजकुमार"की शान में एक शब्द भी नहीं बोल सकते; तो आखिर कैसे अपने को सही ठहराएँ। पेट ख़राब होने से अतिसार नामक बीमारी तो हमने सुनी है पर दिमाग ख़राब होने "मुखातिसार नामक रोग"कैसा होता है वो इसके ही नेता प्रस्तुत कर रहे हैं(इसको बेकारी का सदुपयोग भी कह सकते हैं।), ऐसे नेता नेता मेरे इस विचार से जनता में कुछ सकारात्मक बात कह सकेंगे।
क्योंकि मेरे पास कार तो है नहीं; एक पुराना स्कूटर है जिसमे महीने में सात सौ का पेट्रोल लगता है जो दो साल पहले तक तीन सौ का लगता था,मैं अपने को अमीर नहीं कह सकता हाँ ३२ रूपये से ऊपर वाला अमीर हूँ लेकिन पेट्रोल मुझे गरीब बना देगा। जितने कर हिंदुस्तान में लगाये हुए हैं उनसे क्या-क्या होता है ? ये जानने कि इच्छा होने लगी है । क्योंकि इन की अय्याशी किसी से छुपी नहीं है, कहीं अपनी अय्याशी कम होने के डर से ही तो ये महंगाई नहीं बढ़ाते।
है बेशक यह एक मजाक, हो सकता है इसमें कहीं कोई सच्चाई हो।
जनसंख्या ! वो भी गरीबों की। दरअसल एक बड़ी समस्या है; संसार में सक्षम लोगों के लिए वैसे ही संसाधनों की कमी पड़ रही है इन गरीबों के कारण । इसलिए बहुत दबाव है कि जनसंख्या कम करो, फिर गरीबी कम करो; ये दोनों ही कम होंगे तो सक्षम लोगों के ऐश ओ आराम की वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हो जाएँगी। दूसरा; अगर कहीं गरीबों को समय रहते सक्षमों की अय्याशी समझ में आ गयी तो बड़ा विद्रोह न हो जाये। इसलिए; जनसंख्या कम करो।
अब जनसंख्या कम करनी है ! गरीबी कम करनी है,गरीब* कम करने हैं। जरा ध्यान देना ! केवल कम करने हैं; खत्म नहीं करने, क्योंकि ख़त्म कर दिए तो इनके (सक्षमों के) लिए काम कौन करेगा ? तो साहब एक तीर से कई निशाने लगाने का सबसे अच्छा हथियार है "महंगाई"। वैसे तो कई प्रकार के जो"कर"लगाये हुए हैं वह भी गरीबी बनाये रखने के लिए हैं। दूसरा; अपनी अय्याशी कम न हो जाये इसलिए भी करों की आवश्यकता पड़ती है।
बहुत कोशिश करी;अस्पतालों में चिकित्सक और दवाएं ही नहीं रखे। जिससे गरीब मरें, अपने लिए तो अलग अस्पताल हैं अलग दवाएं और विशेषज्ञ चिकित्सक हैं पर गरीब फिर भी कम नहीं हो रहे,कम ही लोग मर रहे हैं । लोग किसी तरह कर्ज लेकर ही सही अपना इलाज करवा ले रहे हैं। इन्होने क्या नहीं किया गरीबों को कम करने के लिए उनकी जमीनें छीनी, उन्हें कर्ज में फंसाया, उनके लिए पढने को अध्यापक नही रखे, बेरोजगारों को काम ही नहीं दे रहे, सड़कों तक पर गड्डे इसीलिए छोड़े जाते हैं कि उनसे होने वाली दुर्घटनाओं से गरीब ही मरते हैं। नक्सलवादी, आतंकवादी घटनाओं में गरीब ही मरते हैं पर फिर भी इनकी संख्या बढती ही जाती हैं। क्या-क्या नहीं किया गरीबी कम करने के लिए; अंत में हार कर गरीबी रेखा को ही इतना नीचे खींच दिया कि उससे ऊपर सब अमीर माने जायेंगे। पर उसमे भी घपला हो गया, क्योंकि कुछ गरीब जो पढ़-लिख गए हैं वह इनकी साजिश को समझ गए।
गरीबों की संख्या है भी बहुत साहब; जहाँ देखो गरीब ही मरता है नकली दारू,नकली दवा,नकली खानपान की वस्तुएं, घर में मरे या सीमा पर मरे, खेत में मरे या सड़क पर मरे, बिना दवा के मरे या बिना चिकित्सक के मरे, अनपढ़ मरे या पढ़ा-लिखा मरे,नक्सलवादी या आतंकवादी हमले में मरे या हमला करके मरे, मतलब मरता गरीब ही है। हमने तो साहब बहुत कम अमीरों को मरते देखा है। जैसे गांधीजी, नेहरूजी,इदिराजी,…. इत्यादि-इत्यादि। मतलब करोड़ों गरीबों पर एक अमीर। अब देखा जाये तो उनकी संख्या है ही उतनी।
अब ये एकमात्र हथियार है जिससे गरीबी और गरीब दोनों नियंत्रण में रहते हैं, शिक्षा महँगी करदो,चिकित्सा महँगी करदो,रोटीमहँगी करदो अब हर चीज को अलग-अलग महंगा करेंगे तो लोग इन्हें मारने न आ जाएँ इसलिए सबसे आसन उपाय है पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दो। एक बार नहीं थोड़ा-थोड़ा करके कुछ सालों में इतने बढ़ा दो कि अब अगर कम करने का दबाव भी पड़े तो कुछ कम करने पर भी कोई फर्क न पड़े। क्योंकि इनकी अपनी हिस्सेदारी भी होगी;वो भी घाटे में न जाये। है न आसान उपाय ?
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