सभी चिल्लाने में लगे हैं;
भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार,
घोटाला-घोटाला,
अपराध-अपराध,
महँगाई-महँगाई,
नक्सलवाद-नक्सलवाद,
माओवाद-माओवाद,
आतंकवाद-आतंकवाद,
सभी प्रकार की;
सामाजिक, धार्मिक,
राजनैतिक, पारिवारिक;
बुराईयाँ-बुराईयाँ,
कितनी तरक्की करली है;
मेरे सीधे-सादे,
भोले-भले, ईमानदार,
संस्कारवान भारत के
खानदानी राजनेताओं ने,
बुद्धिजीवियों ने,
समाजशास्त्रियों ने,
पत्र-पत्रिकाओं और
पत्रकारों ने,
न्यूज चैनल’स और
रिपोर्टरों ने,
अपनी रोजी-रोटी का साधन बना लिया है ।
“ये” इन सब बुराईयों को समाप्त नहीं करना चाहते क्योंकि इन्हें डर है अगर "ये सब" समाप्त हो गया तो इनकी रोटी कैसे चलेगी ?
इसलिए केवल गाल बजाते हैं करते कुछ नहीं।
sahi likha
ReplyDeletePublic is corrupt thats why !
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने। आभार।
ReplyDeleteभूत अच्छा है चाचा भूत दिनों बाद आज पड़ने को मिला आपका पोस्ट अच्छा लगा . भूत दिन हो गए आप डेल्ही नि आए .
ReplyDeleteमकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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