आज किसलिए रो रहे हैं हम ? "जब बोया पेड़ बबूल का हो आम कहाँ से होय"।
ये न्याय व्यवस्था का वृक्ष तो अंग्रेजों ने अपने को छाया देने के लिए लगाया था। जब हम आजाद हुए थे तब ये वृक्ष हमारे नेताओं ने उखाड़ कर एक नया वृक्ष लगाना चाहिए था। जिसके नजदीक जाने पर अपराधियों को डर लगता।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस न्याय व्यवस्था में तो अपराधी बचने के लिए इसकी शरण में जाते हैं और सज्जन इससे डरते हैं । क्योंकि ये व्यवस्था अंग्रेजों ने अपनी सुरक्षा और भोली जनता को ये दिखाने लिए; कि ‘देखो हम कितने न्यायप्रिय हैं अपने लोगों पर भी मुकदमा चलाते हैं’। क्योंकि उस समय अधिकांश अपराधिक मामले उनके अपने; या अपने पिट्ठुओं के ही होते थे, और उन्हें बचाने का; तथा जनता में विरोध न हो, इसके लिए उन्हें इसी तरह के कानून की जरुरत थी । जो आजादी के बाद तक चला।
और अब तो लगभग हर मामले में यही अंधेर देखने को मिल रहा है । शायद हमारे तब के नेताओं को ये आभास होगा कि आने वाले समय में हमारे वर्ग के लोगों को या अपनी आने वाली पीढियों को बचाने के लिए उन्होंने ये व्यवस्था लागू रहने दी ।
लेकिन अभी भी चिड़िया ने पूरा खेत नहीं चुगा है, इसलिए पछताने से कोई लाभ नहीं बल्कि एक आन्दोलन की फिर से जरुरत है , जिसमे सब बदल देना होगा न्याय व्यवस्था, कानून व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था, वो सारा अंग्रेजी तरीका जो हमारे यहाँ फिट नहीं बैठता ।
"हमें चाहिए न्याय" जिसमे हत्यारे, मिलावट खोर, बलात्कारी, भ्रष्टाचारी और देशद्रोही को दो महीने के अन्दर फांसी की सजा हो जाये । तब ये न्याय होगा वरना ये पीड़ित के प्रति अन्याय है ।
आईये जानें ....मानव धर्म क्या है।
ReplyDeleteआचार्य जी
WELL SAID
ReplyDeleteसही कहा आपने...आज इस देश में न्यायप्रणाली और शिक्षा इन दोनों में आमूलचूल बदलाव की बहुत सख्त दरकार है....
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