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Sunday, October 18, 2009
साइंटीफिक दिवाली
नया जमाना है, विज्ञान का (माफ़ करना) साइंस का। हिन्दी में सबको अच्छा नहीं लगता इसलिए अंग्रेजी को हिन्दी में लिख देते हैं।साइंस ने कितनी प्रोग्रेस कर ली है यह इस बार दिखा; या ये कहना चाहिए कि सरकार को इस बार दिखा, क्योंकि ये तरक्की तो विज्ञान ने दशकों पहले कर ली थी। अब तो आम आदमी ने इस विज्ञान का उपयोग करना सीख लिया है। अगर विज्ञान इतनी प्रोग्रेस नहीं करता तो शायद हम आज खोये की मिठाईयों की सूरत और नाम भी भूल चुके होते स्वाद तो भूल ही गए हैं। मिठाई तो छोड़ो, गाय व भैंस का शुद्ध दूध का स्वाद शायद ही किसी को याद हो, हाँ रंग सफ़ेद होता है यह हमें विज्ञान के उपयोग से बने दूध से ही पता लगता है। अब ये बात और है कि इस आधुनिकों के विज्ञान में ये कमी रह गई कि इन्होने दूध और खोया अखाद्य वस्तुएं मिला कर बनाया फ़िर भी हम तो इसे विज्ञान की उपलब्धि ही कहेंगे कि उसके द्वारा अखाद्य वस्तुओं को मिला कर खाद्य वस्तु बना ले रहे हैं । वरना एक जमाना था कि इसको पाप समझते थे और इसका फल दूसरे जन्म में मिलने से डरते थे ,इस डर को आज के विज्ञान ने ख़त्म कर दिया ये क्या कम उपलब्धि है । अभी तो देखते रहो , ये आधुनिकों का आधुनिक विज्ञान क्या-क्या दिन दिखलायेगा ,जिसे कानून भी नहीं रोक पायेगा । खैर इनसब बातों के बीच अपने पौराणिक पर्व दीपावली की शुभकामनायें तो देना भूल ही गया सभी को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें , इस मिलावटी, बनावटी, दिखावटी और नकली विज्ञान के ज़माने में भी हमारे पौराणिक विज्ञान की सार्थकता को सिद्ध करते हमारे त्यौहार हमारा उत्साह अनंत समय तक बढ़ाते रहें।
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सर विज्ञान अपनी जगह है और दूसरी चीजें अपनी जगह.. इसका दोष विज्ञान को नही बल्कि आदमी की सोच और लाभ की लालसा को देनी चाहिए.. अब आपके पास अगर एक चाकू है तो इससे सब्जी भी काटी जा सकती है और किसी की गर्दन भी.. ये तो आदमी पर ही निर्भर करता है....
ReplyDeleteमुझे लगता है आप मेरी बात से सहमत होंगे...
वैसे आपका व्यंग्य बहुत खूबसूरत है
बहुत सही!!
ReplyDeleteदीपोत्सव की शुभकामनाएँ.
दीपावली की हार्दिक शुभकामना
ReplyDeleteसटीक बात कम शब्दों में
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