एक युवक की उसके इंजीनियरिंग संस्थान में रेंगिंग में हत्या, एक बच्चा अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही से मरा,एक गर्भवती महिला दो अस्पतालों से रेफर हो कर तीसरे अस्पताल तक नहीं पहुँच पाई उसने रास्ते में ही दर्द से तड़प कर जान देदी ,
अस्पताल में वी.आई.पी. की सुरक्षा के कारण एक छोटे बच्चे ने गेट पर ही माँ की गोद में दम तोड़ दिया,एक दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को सज्जन लोग अस्पताल तो पहुंचा देते हैं पर वहां डॉक्टरों और पुलिस के विवाद से वह अधिक खून बहने से मर गया, कई तो रोड़ पर ही मर जाते हैं; कानून के डर से कोई अस्पताल भी नहीं पहुंचाता,कई अरमानों से एक जवान किसी सुरक्षा बल में भर्ती हुआ पर पांच साल में ही एक नक्सली हमले में अपने सौ साथियों के साथ मारा गया, प्रधान मंत्री के काफिले की सुरक्षा के कारण जाम में एक दिल का मरीज मारा गया,एक ही परिवार के दो बच्चे जहरीले सेव खा कर मर गए,एक पूरे परिवार को शराबी ट्रक ड्राइवर ने रौंद दिया,साथियो उपरोक्त घटनाएँ हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में धटती रहती हैं न जाने कब हमारा नंबर आ जाये | सभी इस बात से डरे-डरे रहते हैं | क्या ये सुखी जिंदगी है ? क्या हमने कोई पाप किये हैं ?
पहले जिन बातों को गाली माना जाता था और अगर कोई हमारे लिए बोल दे तो लड़ने-मरने को तैयार हो जाते थे, आज हमारे साथ घट रहीं हैं। परिवार बिखर रहे हैं , बच्चे कुसंस्कारी हो जा रहे हैं , पहले लड़के बेशर्म माने जाते थे अब लड़कियां बेशर्म होने की जिद पर हैं;उन्हें अपने भले-बुरे का पता ही नहीं है । ऐसे में शायद ही कोई हो जो अपनी जिंदगी से संतुष्ट हो; संतुष्ट होने की बात तो छोडिये शायद ही किसी को सुख,संतुष्ट,स्वस्थ जीवन की परिभाषा का पता हो । हममें से जिनके बच्चे हैं क्या हमें उनका भविष्य उनके इंजीनियर-डॉक्टर या और कुछ बन जाने में सुरक्षित समझना चाहिए । जबकि इस देश में दो नहीं तीन प्रधान मंत्री अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरे; मारे गए। कोई कितना ही धनवान हो, वो ये सोच कर धोखे में है कि मुझे क्या लेना मैं सुरक्षित हूँ। उसे ये नहीं पता जब शरीर के किसी हिस्से में दर्द से परेशानी होती है तो गोली मुहं के रास्ते पेट में ही डाली जाती है या; सुई बाजू या कुल्हे में ही लगायी जाती है । ऐसे ही हमारा देश एक शरीर की तरह ही है , कोई खाने को फैंके और कोई भूखा मरे ये अधिक दिन नहीं चलेगा । इसीसे समाज में लूटपाट छीना झपटी बढ़ती जाएगी जीवन जीना नरक के सामान हो जायेगा । ये सब भोगने के लिए; हमने क्या पाप किये हैं ? और अभी करे जा रहे हैं ये सोचने का,चिंतन करने का समय हमें निकालना पड़ेगा ।
बिल्कुल हमने पाप किए हैं। एक सच्चे मालिक के आदेश को छोड़कर हम हर वह काम कर रहे हैं जिसे करने के लिए हमारा मन चाहता है। यही हम बड़े कर रहे हैं और यही हमारे बच्चे कर रहे हैं। जब मालिक का सीधा सच्चा रास्ता छोड़ ही दिया है तो फिर ठोकरों और ज़िल्लत के सिवा हाथ क्या आना है ?
ReplyDeleteआपकी यह उत्तम रचना सोमवार को हमारे साथ आप देख सकते हैं ब्लॉगर्स मीट वीकली में। आपका स्वागत है।
http://www.hbfint.blogspot.com/
सहमत हूं एक एक पंक्तियो से ...
ReplyDeletesahi kaha aapne
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