वर्तमान समय "दिखावे" (फैशन) का चल रहा है,जिस बात का चलन हो जाये वह चलेगी फिर चाहे वह असुविधा करे या हानि पहुंचाए। "विज्ञापन का दौर है ना"जो उछलेगा वो दिखेगा।
आज के समय में मनुष्य कितना सुविधेच्छु,संक्षीप्तेच्छु, (शॉर्टकट) तुरंतेच्छु (इंस्टेंट) हो गया है;देख कर कुछ अंदाजा नहीं लगता कि और दस-बीस साल बाद क्या होगा ? कोई बात इन गुणों से छूटी नहीं है। बड़ा आश्चर्य होता है; जब हम यही गुण देशभक्ति में देखते हैं। क्या कहें ? कुछ कह भी नहीं सकते। क्योंकि ये उसी तरह से है; “मम्मी.. भूख लगी; बस दो मिनट…..” और नूडल्स तैयार, खाओ भूख मिटाओ। दोबारा भूख लगे; उसके लिए दो-चार पैकेट और रख लो उबालो खा लो।
इस तुरंत-फुरंत(इंस्टेंट) वाले तरीके में कोई यह नहीं देखता कि केवल स्वाद-और जल्द बाजी के चक्कर में वह भोजन के उन गुणों से वंचित रह गया जिनकी शारीर को आवश्यकता होती है। एक सम्पूर्ण भोजन में जो पोषण मिल सकता है वो एक उबाल दिए नूडल्स में कहाँ ? लेकिन उसमे "मम्मी"को मेहनत पड़ेगी बच्चे को इंतजार ।
लेकिन; आज के “पिज्जा बॉयज” को कौन समझाए ? बच्चे तो बच्चे; मम्मियों को कैसे समझाएं उन्हें भी तो सुविधाजनक लगता है फोन करो पिज्जा हाजिर। कुछ सालों बाद चाहे मोटापे और अन्य बिमारियों से पीड़ित होकर कुछ भी न खा पायें पर पिज्जा का स्वाद तो भरपूर ले लिया। तब इन्हें भारतीय मशाले और भोजन बबाल लगता था लेकिन अब भी इन्हें वह बबाल लगता है क्योंकि डाक्टर ने परहेज बता दिया है।
"ऐसा ही कुछ" आज के दौर में देशभक्ति और आंदोलनों के विषय में होने लगा है। हम एक हाथ से "विदेशी हट"के बाहर पिज्जा खाते दूसरे हाथ से ड्रिंक ( सोफ्ट या हार्ड) पीते हुए बाईकों ( वो भी विदेशी) पर बैठकर एक समुह में किसी विदेशी धुन पर हिलते हुए भी देशभक्त कहला सकते हैं । और टी वी में छा सकते हैं क्योंकि वो भी इसी तरह के देश भक्त हैं ; हमारे ही बीच से तो निकले हैं ।
इन्हें “भारतीय” होने की बात बेकार लगती है। या ये उसे समझना नहीं चाहते, क्योंकि उसे समझने में समय भी लगेगा मेहनत भी लगेगी। इसलिए इन्डियन कहलाना पसंद करते हैं । हमारे क्रांतिकारियों(जिन्होंने जान दे दी) की बातें इन्हें चलन से बाहर (आउट डेटड) वाली लगती हैं ।
ये विदेशी संक्षिप्त परिधान पहने “हाय-हाय गर्ल” “हैलो बॉय” और इनके सम्बन्धी मोमबत्ती जुलुस निकालने में बड़े जागरूक होते हैं। हमारे एक ब्लोगर मित्र ने तो इन्हें नाम दिया है “मोमबत्ती ब्रिगेड”। इनकी खासियत ये है कि इनके कुनबेदार मीडिया में सभी जगह घुसे हुए हैं। इनके देशभक्ति गाने भी गिटार-मिटार के साथ कुछ-कुछ अंग्रेजी धुनों में लिपटे-चिपटे,जैसे च्युंगम चबाते हुए बोल रहे हों, होते हैं ।
अब आज के “चाउमीन चौपर” और ‘ड्रिंक-पोट” प्रकार के युवाओं को कुछ समझा भी नहीं सकते क्योंकि बात तो देश भक्ति की कर रहे हैं। ये जरुरी थोड़े ही है कि उन्हें संस्कृति-संस्कार,स्वदेशी-विदेशी खाद्य-अखाद्य,स्वास्थ्य शिक्षा की बाते पसंद आयें।उन्हें तो ये सब उबाऊ बातें लगती हैं ; कौन सुबह पांच बजे उठे और "मुह धोये" फिर दंड बैठक पेले ? उन्हें तो आठ बजे उठकर आधुनिक जिम में जाना किसी अंग्रेजी धुन पर ऐसी मशीन पर खड़ा होना या लेटना भाता है जिसमे इन्हें कुछ न करना पड़े। रही शारीर सौष्ठव की बात; तो कई प्रकार की गोलियां दुकानों पर मिल जाती हैं ।
अब ऐसे लोगों के लिए सुविधाजनक आन्दोलन भी होने लगे हैं. इन आन्दोलनों से मीडिया का भला क्योंकि विदेशी कम्पनियों और सरकारों के विज्ञापनो से हो रही कमाई कम होने का खतरा नहीं, इनसे विदेशी कम्पनियां खुश; क्योंकि उनका विरोध करने वाले नेपथ्य में धकेले जा रहे हैं । इसके लिए उन्हें कुछ खर्च भी करना पड़ रहा है तो क्या, ऐसे आन्दोलनों से नशा व्यवसायी खुश; वरना उनके पेट पर भी लात लग रही थी। ऐसे आन्दोलनों से दवा व चिकित्सा माफिया भी खुश; ये उनका भी विरोध नहीं करते। ऐसे आन्दोलनों से खाद और कीट नाशक कम्पनियां भी खुश उनका भी बाजार "वास्तविक बदलाव" वाला आन्दोलन बंद करे दे रहा है, शिक्षा माफिया नहीं चाहते कि अंग्रेजी का वर्चस्व ख़त्म हो वो भी ऐसे सुविधाजनक “एक कानून वाले आन्दोलन” को उछालना चाहते हैं। सबसे बड़ी बात पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति को श्रेष्ठ समझने वाले नहीं चाहते कि भारत का स्वाभिमान वाला आन्दोलन सफल हो;क्योंकि उनके लिए तो ये संस्कृतियों का युद्ध है अगर इसमें भारत सफल हो गया तो सम्पूर्ण विश्व में उसीका डंका बजेगा। जैसा दो हजार वर्ष पूर्व होता था। वो नहीं चाहते कि भारतीयों की हीन भावना समाप्त हो जाये ।
उसमे हमारे देशभक्त “पिज्जा बॉयज” और “हाय-हाय गर्ल” भ्रमित हो रहे हैं। क्योंकि वे अभी इण्डिया और भारत का अंतर नहीं जानते । कुछ तो मानते हैं ‘बाबा रामदेव जी ने सारे मुद्दे एक साथ उठा दिए हैं; खिचड़ी बना दी’ एक एक कर मुद्दे उठाने चाहिए थे, जैसे हमारे पास चार-पांच सौ साल का समय हो कि लड़ते रहो लड़ते रहो।
कारण वही है समझना चाहते ही नहीं या "इन्डियन" मानसिकता से ग्रसित हैं "भारतीय" लोग तो जानते हैं; खिचड़ी की पौष्टिकता क्या होती है । ये उस प्रकार से तुरंत नहीं बनती जैसे नूडल्स तैयार हो जाते हैं लेकिन उतनी देर भी नहीं लगाती जितना अलग-अलग खाना बनाने में लगती है।
अब इन्हें लगेगा कि हम विरोधी हैं , हम विरोधी नहीं हैं समर्थन तो हमारी मज़बूरी है; भ्रष्टचार केवल एक बुराई है हम तो सभी बुराईयाँ खत्म करने वाला आन्दोलन चला रहे हैं;"व्यक्ति का अपना सुधार फिर राष्ट्र निर्माण"। फिर भी जो देशभक्त है बेशक एक ही मुद्दे पर लड़ रहा है हम उसके साथ हैं; और अन्ना(&कंपनी) देशभक्त तो हैं ही।
वर्तमान परिदृश्य का सजीव चित्रण,
ReplyDeleteआभार............