पिछले दिनों अपनी भांजी के विवाह के अवसर पर दिल्ली में काफी नजदीक से सारी व्यवस्था देखने का अवसर मिला , तो जो नजर आया उसने सोचने विचारने पर मजबूर कर दिया ! लगभग दो सौ किलो से ज्यादा सब्जियों फलों के छिलके के नाम पर खाने योग्य हिस्से (चित्र में गोल घेरे में) और लगभग दो सौ लोगों का पेट भरने लायक तैयार खाद्य सामग्री, लगभग सौ से ज्यादा खाली कोल्ड ड्रिंक की बोतलें और.... और भी बहुत कुछ सब कचरे में गया ! (कचरे के बोझ से दिल्ली दबी जा रही है ) ये एक विवाह में हुआ !
मतलब ! दो परिवारों से लड़का लड़की के विवाह द्वारा एक घर बसा यही सही होता है बाकी तो सब कुछ ..... सबकुछ मतलब तन मन धन और अन्न का नुकसान ही होता है । बड़े बूढ़े कहते थे अन्न का अपमान करोगे तो भूखे मरोगे........ वही हो रहा है; लेकिन इस विचार को दकियानूसी कह कर हंसी में उड़ा देने वाली मानसिकता वाले लोगों द्वारा ऐसे संस्कार जो हमारी शिक्षा में होने चाहिए थे निकाल दिए जिससे आज ये सब हो रहा है।
हलवाई जिस प्रकार से सब्जियां व सलाद बनाता है अगर थोड़ा सा ठीक से प्रयोग करे तो शायद आधे सामान में ही काम हो जाए ---- फूल गोभी पालक मूली गाजर शिमला मिर्च आलू आदि सब्जियां आधी तो छीलने के नाम पर फैंक दी जाती हैं। हलवाई का व्यव्हार (साग सब्जियों के साथ ) देख कर ऐसा लगता है जैसे ये कार्यक्रम करवाने वालों से दुश्मनी है। भोज के नाम पर व्यंजन भी इतने अधिक हो जाते हैं कि मेहमान क्या खाएं क्या न खाएं छप्पन भोग तो अपने शास्त्रों में सुना था पर आजकल तो शायद अस्सी या सौ व्यंजन हो जाते होंगे ऐसे समरोहों में।
तारीफ की बात ये है कि सब्जियां और नाश्ते, फल और जूस आदि जितने खपते हैं उतने ही या उससे थोड़ा बहुत कम ज्यादा बने हुए बर्बाद होते हैं...... जो बच जाते हैं ।
ये केवल धन की ही हानि नहीं है अपितु अन्न की भी हानि है इसके कारण भी महंगाई और बढ़ती है और गरीबों को पेट भरने के लिए यही चीजें दुर्लभ हो जाती हैं।
इन समारोहों में तन की भी हानि हो रही है क्योंकि इतने व्यंजन होते हैं व्यक्ति सभी व्यंजनों को खाने की सोचता है और वो एक दूसरे के विरोधी होते हैं जैसे गोलगप्पे- टिक्की पापड़ी के साथ ही रबड़ी इमरती का स्टाल लगा होता है अब खट्टे के साथ दूध से बनी रबड़ी ! कोल्ड ड्रिंक-कॉफी, दूध- लस्सी, जलजीरा-आइस्क्रीम , ऐसे ही बहुत से व्यंजन खाने में एक दूसरे के विरोधी होते हैं जिनसे व्यक्ति बीमार पड़ता है।
एक तरफ देश में लोग भूख से मरते हैं दूसरी ओर इस प्रकार खाद्य सामग्री बर्बाद होती है..... जिससे मन में एक अपराध बोध जागता है लेकिन मन मसोस कर रह जाते हैं।
सुना है अब हिन्दू+ धर्मावलम्बी भी अपने शुभ कार्यों (विशेष कर विवाह) में होने वाले भोज में मांस परोसने लगे हैं ! मदिरा को तो डिस्टिल्ड वाटर कहकर बहुत पहले से पीना पिलाना चल रहा है .......
ऐसा शायद इसलिए हुआ है कि हिन्दुओं को पिछले सौ डेढ़ सौ सालों से अपनी सभ्यता संस्कारों संस्कृति से शिक्षा व फिल्मो विज्ञापनों के माध्यम से दूर किया जा रहा है... उसीका परिणाम है।
जिस संस्कृति में विवाह को धार्मिक आयोजन मानते हैं वर को नारायण और वधु को लक्ष्मी मानते हैं उनकी पूजा होती है यहाँ तक कि गणेश पूजा होने से जब तक कार्यक्रम पूर्ण होकर पारायण नहीं हो जाता तबतक समय को भी शुभ मानते हैं ऐसे में मांस पके और परोसा जाए ..... हो सकता है कुछ गंभीर प्रकार की दुर्घटनाएं इसीलिए होती हों ... कालांतर में वर वधु में अलगाव इसी कारण होता हो , विचार का विषय है ।
मतलब ! दो परिवारों से लड़का लड़की के विवाह द्वारा एक घर बसा यही सही होता है बाकी तो सब कुछ ..... सबकुछ मतलब तन मन धन और अन्न का नुकसान ही होता है । बड़े बूढ़े कहते थे अन्न का अपमान करोगे तो भूखे मरोगे........ वही हो रहा है; लेकिन इस विचार को दकियानूसी कह कर हंसी में उड़ा देने वाली मानसिकता वाले लोगों द्वारा ऐसे संस्कार जो हमारी शिक्षा में होने चाहिए थे निकाल दिए जिससे आज ये सब हो रहा है।
हलवाई जिस प्रकार से सब्जियां व सलाद बनाता है अगर थोड़ा सा ठीक से प्रयोग करे तो शायद आधे सामान में ही काम हो जाए ---- फूल गोभी पालक मूली गाजर शिमला मिर्च आलू आदि सब्जियां आधी तो छीलने के नाम पर फैंक दी जाती हैं। हलवाई का व्यव्हार (साग सब्जियों के साथ ) देख कर ऐसा लगता है जैसे ये कार्यक्रम करवाने वालों से दुश्मनी है। भोज के नाम पर व्यंजन भी इतने अधिक हो जाते हैं कि मेहमान क्या खाएं क्या न खाएं छप्पन भोग तो अपने शास्त्रों में सुना था पर आजकल तो शायद अस्सी या सौ व्यंजन हो जाते होंगे ऐसे समरोहों में।
तारीफ की बात ये है कि सब्जियां और नाश्ते, फल और जूस आदि जितने खपते हैं उतने ही या उससे थोड़ा बहुत कम ज्यादा बने हुए बर्बाद होते हैं...... जो बच जाते हैं ।
ये केवल धन की ही हानि नहीं है अपितु अन्न की भी हानि है इसके कारण भी महंगाई और बढ़ती है और गरीबों को पेट भरने के लिए यही चीजें दुर्लभ हो जाती हैं।
इन समारोहों में तन की भी हानि हो रही है क्योंकि इतने व्यंजन होते हैं व्यक्ति सभी व्यंजनों को खाने की सोचता है और वो एक दूसरे के विरोधी होते हैं जैसे गोलगप्पे- टिक्की पापड़ी के साथ ही रबड़ी इमरती का स्टाल लगा होता है अब खट्टे के साथ दूध से बनी रबड़ी ! कोल्ड ड्रिंक-कॉफी, दूध- लस्सी, जलजीरा-आइस्क्रीम , ऐसे ही बहुत से व्यंजन खाने में एक दूसरे के विरोधी होते हैं जिनसे व्यक्ति बीमार पड़ता है।
एक तरफ देश में लोग भूख से मरते हैं दूसरी ओर इस प्रकार खाद्य सामग्री बर्बाद होती है..... जिससे मन में एक अपराध बोध जागता है लेकिन मन मसोस कर रह जाते हैं।
सुना है अब हिन्दू+ धर्मावलम्बी भी अपने शुभ कार्यों (विशेष कर विवाह) में होने वाले भोज में मांस परोसने लगे हैं ! मदिरा को तो डिस्टिल्ड वाटर कहकर बहुत पहले से पीना पिलाना चल रहा है .......
ऐसा शायद इसलिए हुआ है कि हिन्दुओं को पिछले सौ डेढ़ सौ सालों से अपनी सभ्यता संस्कारों संस्कृति से शिक्षा व फिल्मो विज्ञापनों के माध्यम से दूर किया जा रहा है... उसीका परिणाम है।
जिस संस्कृति में विवाह को धार्मिक आयोजन मानते हैं वर को नारायण और वधु को लक्ष्मी मानते हैं उनकी पूजा होती है यहाँ तक कि गणेश पूजा होने से जब तक कार्यक्रम पूर्ण होकर पारायण नहीं हो जाता तबतक समय को भी शुभ मानते हैं ऐसे में मांस पके और परोसा जाए ..... हो सकता है कुछ गंभीर प्रकार की दुर्घटनाएं इसीलिए होती हों ... कालांतर में वर वधु में अलगाव इसी कारण होता हो , विचार का विषय है ।
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