हे भारत माता (भारतीयता) ! हम बड़भागी हैं जो तेरे जैसी माँ की गोद में हमने जन्म लिया। तेरे द्वारा वैदिक पावन ऋचाओं को सुन हमने आँखें खोली। तेरी गायी लोरियों को सुन हम सोये। तेरे खुशहाल हरे-भरे आँगन में खेलकर बड़े हुए। तेरे दिए हुए संस्कारों से अपने जीवन को सफल किया | तेरी दी हुयी शिक्षाओं से हम धन्य हुए |
इसीलिए तो माँ ! जब-जब तुझ (हम) पर संकट आया तेरे अधिकांश लाडलों ने मिलकर दुश्मन को ललकारा और संकट से निजत पाई। तेरा भेजा कोई दूत आता है और तेरी सोयी संतानों को जगा जाता है ।
पर माँ ! एक दुश्मन बहुत खतरनाक आया; उसके वंशजों को तो हमारे पूर्वजों ने बेशक भगा दिया, पर उसने तेरे द्वारा दिए जा रहे संस्कारों-शिक्षाओं में जो बदलाव किये उनके कारण आज तेरे लाडले निकम्मे हो गए हैं। उस कु शिक्षा के कारण सही-गलत की पहचान नहीं कर पा रहे। कुशिक्षा का प्रभाव देखो; जो मालिक थे सेवक बनना अपना अहो भाग्य समझ रहे हैं। योग्यता छोड़ आरक्षण के लिए झगड़ रहे हैं |
हे माँ ! उस कुशिक्षा के कारण उन्हें आकाश पाताल का भी अंतर पता नहीं। आकाश की ओर थूक कर खुश होते हैं और दुष्टों के सम्मुख पाताल तक झुक जाते हैं। नशा करने लगे हैं; दुर्व्यसनों में फंस चुके हैं; माता ! इस कुशिक्षा का प्रभाव देखो ! जो जितना अधिक शिक्षित है वो उतना ही अधिक भ्रष्ट है न केवल आर्थिक रूप से; अपितु नैतिक चारित्रिक और व्यावहारिक रूप से भी।
उस कुशिक्षा के प्रभाव से पढ़ लिख कर तेरी शश्य-श्यामला कोख में जहरीले रसायन वाले खाद और कीट नाशक डाल कर तुझे जहरीला बना दिया है। तेरी सदानीरा नदियों को गंदे नालों में बदल दिया है। झीलों को सुखा दिया है। इस सबका कारण है धन, जिस धन को तेरे श्रंगार में लगना था उसे विदेशों में जमा करवा दिया है। तेरा श्रंगार कैसे हो माँ ? कैसे तू अपने बच्चो को पाले ?
हे माँ ! हमें ये कहते हुए खेद होता है कि तेरी देशभक्त स्वाभिमानी संतानों में से आज अधिकांश निकम्मे हो गए हैं। उनमे उस शिक्षा का प्रभाव बहुत गहरा हो गया है। कुछ जो जरा संभल गए हैं वो वैसे पालों में बंट गए हैं कोई किसी नेता की जय में मस्त है कोई किसी पार्टी की जय में, कोई तेरे नाम की जय बोल कर विदेशियों के हाथों की कठ पुतली बन जाते हैं। कोई भी अपनी माँ की भावनाओं को नहीं समझ रहा।
ऐसा कब तक चलेगा माँ ? तेरे आँगन में कब तक बच्चे भूख और बीमारी से मरेंगे ? कब तक चिकित्सक कसाई की भूमिका निभाएंगे ? कब तक लोग मरते समय छाती पर धन ले जायेंगे ? दुष्टों को समझने की बुद्धि आम लोगों में कब आएगी ?
हे माँ ! तेरी संतानों का रक्त इतना गन्दा तो नहीं हो सकता । पहले भी तो संकट आये हैं तब तो ऐसा नहीं देखा सुना। गद्दार तो थे पर गिने चुने ही थे आज तो गद्दारों की गिनती नहीं होती माते ! ............ । क्या करें ?
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