अभी तो मंथन जारी है !!!!
भारत निर्माण नहीं ! "हो रहा भारत मंथन"
एक पौराणिक कथा सब जानते हैं ; "सागर मंथन" की, जिसमे एक कुर्म (कछुए) की पीठ को आधार बनाया जाता है मंदरांचल पर्वत को उस पर टिकाया जाता है और शेषनाग की डोरी बनाई जाती है तब मंथन होता है और उस मंथन से कई उपलब्धियों के साथ ही अमृत की प्राप्ति भी होती है |
हालाँकि इस कथा का अपनी-अपनी दृष्टि के अनुरूप लोग अर्थ समझते हैं , और हमारी पौराणिक कथाओं के कई-कई अर्थ होते भी हैं हम चाहें तो उनमे तार्किकता-वैज्ञानिकता ढूंढ़ लें, हम चाहे तो उनमे राजनीतिक जोड़-तोड़ ढूंढ़ लें, हम चाहें तो उनमे समाज सुधार कार्य ढूंढ़ लें,हम चाहें तो उनमे अध्यात्मिक-आस्थाओं का मर्म ढूंढ़ कर जनता को घंटों-घंटों तक सुना सकते हैं और अगर हम नास्तिक हैं या अध्यात्म को मानते ही नहीं तो इन्हें केवल कथा ही समझते हैं |
पर मेरा मानना है कि ये हमारा पौराणिक इतिहास है जिसे प्रतीकात्मक शब्दों-वाक्यों के साथ संसार के मनुष्यों को अनुभव और ज्ञान प्राप्त करने के लिए तब के बुद्दिजीवियों ने (जिन्हें हम ऋषि- मुनि कहते हैं) संसार के कल्याण के लिए लिपिबद्ध किया |
आज भी देश में जो चल रहा है उसे हम "भारत मंथन" कह सकते हैं जो उस "सागर मंथन" की याद और उससे मिले अनुभवों से शिक्षा लेने को प्रेरित करता है | हो सकता है उस समय उस स्थान का नाम "सागर" हो इसलिए इसे "सागर मंथन" कहा गया हो |
जैसा कि देवासुर संग्राम सृष्टि में हर समय चल रहा होता है, अनंत-असीम बाह्य ब्रह्माण्ड से लेकर व्यक्ति के अपने अन्दर तक | विचारों-मान्यताओं-परम्पराओं-संस्कृतियों-समाजों-इतिहासों और क्रिया कलापों तक में हम देवासुर संग्राम को अनुभव कर सकते हैं | देव और असुरों का अर्थ तो हम सब जानते ही हैं; इनको विचारों और कर्म के परिप्रेक्ष में समझें तो समझने की दिशा विस्तृत हो जाती है | इन्हीं विचारों और कर्म के आधार पर संसार की संस्कृतियाँ-सभ्यताएं बनी हैं |
तो साहब ! आज के इस "भारत मंथन" में भी वही कुछ हो रहा है जो "सागर मंथन" में हुआ था तब भी पहले असुर इसके विरोध में थे फिर सहयोग में आये और जब रत्न मिले तो फिर झगड़ बैठे | तब कुर्मावतार के रूप में भगवान विष्णु ने आधार उपलब्ध कराया था; आज स्वामी रामदेव जी ने आधार उपलब्ध करवा दिया है, तब मंदरांचल पर्वत को मंथन की धुरी (मथनी) बनाया था; आज भ्रष्ट व्यवस्था-राजनीती और उससे से कमाया काला धन जो सब समस्याओं बुराईयों का पहाड़ है उसको धुरी बनाया गया है, और तब भगवान शेषनाग को डोरी बनाया गया मथने के लिए, आज भारत का स्वाभिमान आदोलन इसकी डोर बन रहा है |
भारतीय संस्कृति-संस्कार का प्रतीक भारत स्वाभिमान आन्दोलन सभी भारतीयों का स्वाभिमान जगा रहा है | इस डोर को एक तरफ से असुरों ने दूसरी तरफ से देवों ने पकड़ रखा है और मंथन जारी है | और इस वैचारिक मंथन से ही विभिन्न प्रकार के रत्न निकलेंगे; जैसे तब निकले थे, रत्न मतलब फल (परिणाम) प्राप्ति; काला धन तो आएगा ही, भ्रष्ट व्यवस्था भी सुधरेगी और देव संस्कृति रूपी सर्वश्रेष्ठ रत्न अमृत भी मिलेगा, लेकिन असुरों की असुरता से सावधान रहना होगा कि उन्हें इस अमृत की प्राप्ति न हो जाये |
समझने वाले समझ गए होंगे कि मेरा आशय वोटों की राजनीती से है | आम जनता के रूप में समुद्र, कुर्म के रूप में स्वामीजी का बनाया वैचारिक आधार , मथानी के लिए मंदरांचल पर्वत के रूप में समस्याओं-वुराइयों और कुसंस्कृति का पहाड़, शेषनाग के रूप में भारत स्वाभिमान आन्दोलन की डोर | अभी तो मंथन जारी है |
Great post Sir. Very well written. My full support is with Baba Ramdev And Bharat Swabhimaan.
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