युवराज ! तुम बहुत भाग्यवान हो,कि भारत में…….. हो;(पैदा तो पता नहीं कहाँ हुए होगे)। मुहँ में सोने का चम्मच (हीरे-मोती जड़ा) लेकर पैदा हुए हो। भाग्य तुम्हारा ऐसा प्रबल है कि अपने कुल-खानदान का पता न होते हुए भी एक महात्मा के खानदान से जाने जाते हो। उनके अपनों ने कभी उनका नाम अपनी पहचान के लिए पता नहीं लिया या नहीं; पर तुम्हें उसके लिए पूरा अधिकार और मान्यता इसी देश में मिल सकता है। युवराज ! इससे अधिक भाग्य की प्रबलता क्या होगी कि;तुम्हारे आगे-पीछे “मनुष्य रूपेण श्वान सम” प्राणियों की ऐसी भीड़ रहती हो जो तुम्हारे खंखारे हुए को भी अपनी जिव्ह्या पर अटकाने को आतुर हों, तुम शौच करो और वो धो दें। इतना संम्मान ! फिर भी शर्मिंदगी ? राम...राम.... । कितने भाग्यवान हो तुम युवराज ! बिना किसी राज-पाट के युवराज माने जाते हो । इस देश के जितने राजा थे उनके वास्तविक युवराज तुम्हारे आगे पानी भरते हैं, तुम्हारा अनुसरण करते हैं अपना आदर्श मानते हैं। आखिर बिना कुछ किये कराये किसे इतना मान-सम्मान मिलता है ?
संपत्ति इतनी कि; बे हिसाब ! यहाँ की सरकारी कोठियों से लेकर देश-विदेश के बैंकों तक,एक नंबर से लेकर दस नंबर तक की कमाई सब तुम पर न्योछावर, तुम स्वयं अंदाजा न लगा पाओगे, हम क्या बताएं। कभी तिनका तोड़ने की जहमत भी नहीं; बिना कुछ किये धरे ही इतना कुछ, राम.. राम.... । बिना कुछ कर्म किये जिस देश में खाने को हराम माना जाता है पर तुम्हारे लिए नहीं । तुम्हारे लिए ये देश अपनी मर्यादाएं भी ताक पर रख देता है ।
तुम्हारे अनुसरण कर्ता (फैन, विचित्र प्राणी,कार्यकर्त्ता या मनुष्य रूपेण श्वान सम) उन सारी मर्यादाओं को बिलकुल नहीं मानते । तभी तो अपने माता पिता को अपमानित करदें या होते हुए देख लें पर तुम्हरी अभ्यर्थना में खड़े रहते हैं। युवराज फिर भी तुम शर्मिंदा हो ! राम..राम .... । तुम अगर बाहर निकल जाओ तो कैसे मीडिया तुम्हें सर आँखों पर बिठा लेता है, इसे तुमने जरुर देखा होगा। देखना जरुरी भी है क्योंकि ये मीडिया वाले किसी के नहीं होते 'जब तक तुमसे उम्मीद है तब तक तुम्हारे',उम्मीद खत्म तो तुम्हारा खेल ख़त्म। हालाँकि तुमसे कभी ना उम्मीदी की उम्मीद उन्हें नहीं है क्योंकि तुम्हारे पास उन्हें उम्मीदों से अधिक होने उम्मीद है। हो भी क्यों नहीं पिछले पचास साल राज किया है परिवार ने और परिवार के स्वामिभक्तों ने; दोनों हाथो से लुटाओ तो भी पांच सौ वर्षों तक कमी ना पड़े, इतना तो देश में ही होगा, विदेश का और फिर अपने ननिहाल का हिसाब आप स्वयं जानो । इसलिए भी मीडिया वाले कुछ अति करने लगते हैं, क्या करें अपनी "काक प्रवृति" से इसे छोड़ भी नहीं सकते।
स्वामिभक्त श्वान को उसका स्वामी कितना भी दुत्कारे यहाँ तक कि पीट-पीट कर भगा दे फिर भी उसकी प्रकृति है स्वामी भक्ति, कुछ ऐसे ही तुम्हारे भी स्वामिभक्त यहाँ अपने- आप तैयार हो गए; फिर भी तम्हें शर्म ! .... कांटे को फूल और फूल को कांटा बना दे ऐसा प्रचार तंत्र और ऐसा जनमानस तुम्हें कहाँ मिलेगा ? फिर भी तुम..... राम... राम ... राम.... ।
युवराज ! हमने सुना है अमेरिका के किसी राष्ट्रपति की लाडली चौराहों पर समाचार पत्र बेचती है, और इसे अपना स्वाभिमान समझती है और यहाँ ! यहाँ तो तुम्हारे जैसे प्रेरणास्रोत व्यक्तित्वों से आदर्श मिलता है जो हराम का मिले वही स्वाभिमान है नेता पुत्र ने अगर काम कर लिया; तो थू है नेता गिरी पर। काम छोड़ो वहां का मीडिया भी इस बात को उस तरह से नहीं उछालता जैसे यहाँ तुम्हारे एकाध (खाली )तसले को अपने कंधे पर उठाने का फोटो मीडिया वालों ने इस तरह से अपनी विशेष संदूकची में बंद कर रखा है जिसे जब चाहे तब आसानी से निकाल कर दिखा दें ।
पर इस सबका तुम्हें कैसे पता लगेगा युवराज ? तुम तो भाग्यशाली हो ना ! सोने का चम्मच मुहं में लिए इस धरती पर आये हो । तुम्हें थोड़े ही कभी राशन की लाईन या बस की भीड़ में धक्के खाने पड़े हैं। तुम्हें क्या पता गैस का सिलेंडर न मिलने पर कैसे वहां पर झगड़ा हो जाता है उलटे पिटने की नौबत आ जाती है। तुम्हें तो ये भी नहीं पता होगा कि कैसे स्कूल या कॉलेज में दाखिला न मिलने पर पिताजी कई महीनो तक इस बात को सुनाते रहते हैं कि नंबर कम लाये, अब जैसा मिले वैसे में पढो, तुम्हें क्या पता बेरोजगार युवा की मानसिक स्थितियों का, (किसी की नजर में बेचारा किसी की नजर में आवारा)। युवराज तुम्हें तो लगा लगाया पेड़ मिला है बस फल तोड़ने हैं और खाने हैं । फिर भी तुम्हें शर्म राम...राम... ।
क्या करें युवराज ! आज भारत की स्थिति ऐसी बन गयी है कि "गरीब की जोरू सबकी भौजाई" वाली हालत है । अपने हों या पराये, सब आते हैं हराम का खाते हैं पीते हैं और हंसी भी उड़ा जाते हैं। तुमने और राजमाता ने तो केवल शर्मिंदगी अनुभव की; वरना कई तो ऐसे आते हैं कि धमकी दे देते है देश टूटने की या तोड़ने की । जिन्हें ये हालात बदलने चाहिए वो केवल 'ऐसा होना चाहिए वैसा होना चाहिए', या 'हम ये करेंगे हम ऐसा चाहते हैं' बयान देकर ही अपना कर्तव्य पूरा समझ लेते हैं । उनमें तुम और तुम्हारे पूर्वज(पिताजी,नानाजी,दादीजी) सभी वही निकले। देश ने तुम पर और तुम्हारे नाना जी पर बहुत भरोसा किया पर आज पता लग रहा है कि क्या गलती कर गए । युवराज आज की पीढ़ी अपने उन पूर्वजों को कोस रही है जिन्होंने ऐसा भारत बनने दिया, आँख बंद कर तुम्हारे पूर्वजों पर भरोसा किया । क्या ऐसे ही भारत की कल्पना की थी क्रांतिकारी शहीदों ने या गाँधीवादी नेताओं ने जरा उनके लिखे विचार पढ़कर के तो देखना ; पर तुम्हें पढने का समय कहाँ; तुम तो किसी से पढ़वा लेना । फिर युवराज तुम्हें देश पर नहीं अपने पर शर्म आएगी ।
क्या करें ? अब तो हमें शर्म आने लगी।
पर युवराज ये भी सच है कि तुम्हारे ही भाग्य से फिर भी इस देश में ऐसे युवा हैं जो तुम्हें अपना आदर्श मानते हैं । वे भी इसी तरह से हराम का मिलने को लालायित रहने वाले युवाओं का प्रतिनिधित्व करते और चाहते हैं। उनको हमारे इस देश के संस्कार इसीलिए अच्छे नहीं लगते कि इसमें हराम की खाने को गलत माना जाता है, उन्हें इस देश का इतिहास, संस्कृति,मान्यताएं,परम्पराएँ कुछ भी नहीं भाता। वो येन केन प्रकारेण जीतने को ही सही मानते हैं। जो जीता वही सिकंदर वाला विचार उन्हें अच्छा लगता है ।
इसलिए युवराज ! इस तरह शर्म न किया करो अपनी राजमाता को भी समझा देना । वो भी भाग्य की प्रबलता में किसी से कम नहीं हैं । फिर भी शर्म की बात करते हुए आप दोनों को ही शर्म नहीं आती, कहीं देश के लोग इस बेशर्मी को समझ गए तो क्या होगा ? ये तो सोचो ।
शंकर जी बहुत ही शानदार व्यंग...आपके इस आलेख की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है...
ReplyDeleteसच में युवराज को शर्म आती है देश पर, हमें शर्म आती है युवराज पर...
सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत धन्यवाद...
युवराज ! अर्थात नई पीढ़ी के आदर्श ! जैसी नई पीढ़ी वैसा उसका आदर्श ! एक दिन जब किसी चेंनेल वाले ने एक नाचने- गाने वाली अभिनेत्री से पूछा की "आपका पसंदीदा नेता ? तो तपाक से जवाब मिला ???????? ,वाह क्या पसंद है ? लेकिन दुःख तब होता जब युवराज के दादा सामान कोई नेता युवराज में अपना खेवैया ( तारणहार )की छवि देखने लगता है , सोचो दादा सामान उस नेता से क्या उम्मीद की जा सकती है ?
ReplyDeleteआभार ! उपरोक्त पोस्ट हेतु ......................
युवराज ही नहीं उनका पूरा कुनबा (भूत और भविष्य का) भाग्यवान है |
ReplyDeleteयुवराज तुम्हे और तुम्हारी महारानी माँ को तब शर्म नहीं आती जब वो इस गरीब देश के टैक्स payers के पैसे में से १८८० करोड़ रुपये ३ वर्ष में अपनी विदेश यात्राओं पर उड़ा देती हैं . हमें तो बहुत शर्म आती है इस हरामखोरी पर. लेकिन ये तो तुम्हारे परिवार का चरित्र है . कुछ न करो और फ्री की खाओ.
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