हे भारत की भाग्य विधाता देहली ! तुम स्तब्ध न होना;
आ रहे हैं हम “भारत स्वाभिमानी’,तेरे आँगन में;
इतिहास का सबसे बड़ा सत्याग्रह देख कर; हतप्रभ न होना ।
हे देहली ! वैसे तो देखे हैं तुमने अपने जीवन में कई बदलाव,
खांडव प्रस्थ से इन्द्रप्रस्थ,फिर पड़ोस के कुरुक्षेत्र में, सत्यासत्य का टकराव,
धर्मराज का राज्याभिषेक,राजा परीक्षित को सर्पदंश और जन्मेजय का सर्प यज्ञ विशाल,
देखा है तुमने निर्जन वन से राजधानी बनना,बारम्बार उजड़ाव और बसाव,
धैर्य की पराकाष्ठा हो तुम, इसलिए सत्याग्रहियों को देख; विक्षुब्ध न होना,
हे भारत की भाग्य विधाता देहली ………।
बदले हैं तम्हारे नाम भी कई,देखे है कई राजा-महाराज,
शौर्य और क्षमा देखी चौहान की अट्ठारह युद्धों का इतिहास,
गौरी की कायरता देखी धोखा भी; मंगोलों मुगलों का अत्याचार,
नादिरशाह की लूट देखी और देखा, एक ही दिन में क़त्ल किये तीन लाख,
तुगलक ने उजाड़ दिया तुम्हें,बस गयी; फिर बन गयी तुगलकाबाद,
उजड़ गयी तो भी देहली है, वर्तमान में भी कहाँ हो आबाद,
तुम तो केवल तुम ही हो और तुम्हारी पहचान है; "धैर्य न खोना" ।
हे भारत की भाग्य विधाता देहली…………………
देखा है वैभव तुमने देखी है गरीबी बेबशी लाचारी भी,
देश भक्तों की निष्ठा देखी है और गद्दारों की गद्दारी भी,
भाईयों को लड़ते देखा गद्दी के लिए, राजाओं की अय्याशी भी, गुरु तेग बहादुर की देखी बलिदानी,शाह जफ़र की लाचारी भी ,
देहलवियों की खुद्दारी भी देखी , और अंग्रेजों की मक्कारी भी,
सन सैंतालिस में हुयी साजिश देखी,देश को टुकड़ों में बंटती बर्बादी भी, लोकतंत्र में नेताओं की अय्याशी भी देखी तुने, अब देख रही लाचारी भी, इतना सब कुछ सह जाती है
देहली ! इस बार भी क्लांत न होना ,
हे भारत की भाग्य विधाता देहली ! तुम स्तब्ध न होना ; आ रहे हैं हम भारत स्वाभिमानी, तेरे आँगन में, इतिहास का सबसे बड़ा सत्याग्रह देख कर; विक्षुब्ध न होना ।
वक्त सब कुछ झेलवा देता है ... अच्छी ऐतिहासिक रचना ..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लीखा है। मै तो आपका फ़ैन हो गया हूँ।
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