इस बार तो मीडिया ने अपना जलवा फिर दिखा दिया, याद करो प्रिंस जब गड्ढे में गिरा था कुछ इसी तरह का अभियान मीडिया चला था और पूरे देश में हर मजहब के लोग अपने तरीके से पूजा में लग गए थे मीडिया आह्वान कर रहा था की प्रिंस के लिए दुआ करो।
इस बार भी मीडिया ने कुछ वही किया वरना अन्ना भी वही और मुहिम भी अगर अधिक पुरानी न भी मानें तो छह महीने पुरानी तो है ही पर मीडिया इतना जागरूक कभी नहीं दिखा, इसके लिए मीडिया को धन्यवाद दूँ तो गलत भी नहीं होगा। क्योंकि दुनिया की नजर में तो उसने सराहनीय काम किया है ।
पर एक शंका है मेरे मन में,और जैसा कि टेंशन देना मेरा काम है। 'कि मीडिया ने इस तरह की मुहीम चला कर कहीं किसी कारण वश इस आन्दोलन को जल्दी तो नहीं पका दिया', जो आन्दोलन सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन का बन सकता था, जो आन्दोलन जन लोकपाल बिल पर केन्द्रित न होकर पूरे संविधान पर बहस का; बन सकता था उस आन्दोलन को कहीं इस मीडिया ने किसी स्वार्थ से या उन नेताओं की चालाकी से तो जल्द नहीं सिमटवा दिया 'जो कल्पना से परे की हद तक चालाक हैं'।
इस शंका का कारण भी है, अभी डेढ़ दो माह पहले दिल्ली में वो विशाल-विशाल दो-दो रैलियां या प्रदर्शन उनमे भी अन्ना हजारे और यही तमाम नेता कार्यकर्त्ता थे, पर इस मीडिया ने एक दो लाईन के समाचार से अधिक कुछ नहीं दिखाया। और आज ही दो महीने बाद क्या हो गया जो मीडिया ने इसे इस तरह पेश किया जैसे इस एक मांग के पूरा हो जाने से पूरा देश एकदम से बदल जायेगा ।
'इसके पीछे सबसे बड़ी भ्रष्ट पार्टी की रणनीति,और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की रणनीति, और उन भ्रष्ट लोगों का पैसा, जिनका विदेशों में है', तो नहीं ? और दिमाग उन विदेशियों का हो जिनका विकिलीक्स के द्वारा पता लगा है कि उन्हें भारत के राजनेताओं में कितनी दिलचस्पी है। ये लोग न चाहते हों कि आन्दोलन मिस्र की तरह हो जाये ।
दाल में कुछ काला तो है। मीडिया के व्यवहार पर प्रश्न चिन्ह तो लगता ही है।
शक तो पहले भी हो रहा था की क्यों बाबा जी 4 दिन बाद जंतर मंतर पहुंचे ओर क्यों मीडिया ने ये मामला इतना हाइलाइट किया शक की सब से बड़ी वजह तो ये मीडिया ही है ( किसी लकीर को छोटी करने के लिए उसके समानान्तर एक बड़ी लकीर खींच दो) येही चाल है
ReplyDelete