जिस देश के अधिकांश बुद्धिजीवी (आदर्श[सेलेब्रिटी] समझे जाने वाले व्यक्ति), लगभग मानसिक रोगी होने की सीमा तक भारतीयता को भुला बैठे हों।
जिस देश के अधिकांश राजनेता और अधिकारी, "बेशर्म, बेईमान, बेदर्द और मूर्खता की सीमा को आगे बढ़ाये जा रहे हों।
जिस देश के उद्योगपति, अपनी अय्याशियों के लिए किसी भी सीमा तक "अनैतिक तरीके" से धन अर्जित करने के लिए सरकारों तक को खरीद लें।
जिस देश का आम आदमी अपना और अपने परिवार के जीवन को चलाने में इतनाव्यस्त रहने को मजबूर हो कि उसे देश और समाज में क्या हो रहा है इसका पता ही न चले।
तो इस देश का भला कैसे होगा ?
पर ! होगा; भला होना निश्चित है। न जाने कितनी बार इससे पहले इससे भी बुरी स्थिति हुई है। फिर भी भला हुआ है। असुरता मिटी है देवत्व पुनर्प्रतिष्ठित हुआ है। ये प्रकृति का,श्रष्टि का नियम है। यहाँ सब कुछ एक चक्र में बंधा हुआ चल रहा है उससे कोई नहीं बच सकता।
स्थिति चाहे कितनी ही बुरी क्यों न हो इस देश में, पर "देवत्व का बीज" बचा रहता है इसीलिए जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब भगवान स्वयं जगत का कल्याण करने की इच्छा करने लगते हैं। और तब सब कुछ उनके अनुकूल होने लगता है।
जैसा इस समय हो रहा है;अगर बुराईयाँ चरम पर हैं तो अच्छाईयाँ भी बढ़ रही हैं। एक ओर ऐसे उद्योगपति हैं जो अपने तीन-चार जनों के परिवार के लिए सत्ताईस मंजिला भवन बनवा रहे हैं या जनता को लूटने के लिए सरकारों से साठगांठ करते है, तो दूसरी ओर ऐसे भी हैं जो अपना "सर्वस्व"समाज के लिए दान कर रहे है।
अपराध-भ्रष्टाचार में इतना अधिक बढ़ावा हो गया है कि कभी सही भी होगा ये विश्वास नहीं होता, पर दूसरी ओर इसके विरोध में उठने वाले स्वरों और हाथों को देख कर लगता है कि ये अधिक दिन का मेहमान नहीं है। एक ओर हमरे नवयुवा नशेड़ी और संस्कार हीन होकर इन राजनैतिक पार्टियों के सदस्य बनने को लालायित हैं; (क्योंकि इन्हें हराम की खाने का लालच है), और अभारतीयता के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति की ओर दौड़ लगा रहे हैं; तो दूसरी ओर ऐसे युवा भी हैं जो सुबह-सुबह तीन बजे से "स्वामी रामदेव जी " के योग शिविर में हजारों की संख्या में पहुँच कर भारत की सभ्यता-संस्कृति नशे-वासनाओं से दूर रहना और स्वच्छ राजनीति का पाठ पढ़ रहे हैं।
और अब तो अति हो भी गयी है जब से "विकिलीक्स" के द्वारा ये पता लगा है कि दुनिया के नेता हमारे देश और नेतओं के बारे में कैसे विचार रखते हैं। इसी लिए मैंने इन नेताओं को बेशर्म कहा है; क्योंकि इनके हास्यास्पद क्रियाकलापों से हमारे देश की, संसार के देशों में क्या स्थिति है; इसे देख-सुन कर देश के लोगों का खून खौल जाता है। जब समाचार पत्रों में पढने को मिलता है कि अमेरिका में हमारे राजनयिकों या नेताओं तक को जाँच के नाम पर अपने कपडे भी उतारने पड़ते हैं, तो खून खौल जाता है; सर शर्म से झुक जाता है।धिक्कार है उन नेताओं और अधिकारियों को और उन लोगों को जो फिर भी अपनी और देश की बेइज्जती नहीं समझते।
और धिक्कार है उन लोगों को, जो देश के इतना बुरा हाल बना देने वाली राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्त्ता बनने को आतुर दीखते हों । जो पढ़े लिखे होने के बाद भी गुलाम की तरह इनके खानदानी नेताओं के झंडे ढोने को और इनसे हाथ छू जाने को अपना सौभाग्य समझते हों, जो ये सोचने का प्रयास नहीं करते हैं;कि आखिर इस देश का ये हाल ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में कोई भी सुखी नहीं रह पायेगा चाहे कितना ही बड़ा करोडपति क्यों न हो।
जो पढ़े लिखे होने के बावजूद भी ये सोचने का प्रयास नहीं करते कि ये इतना बुरा हाल ! हुआ क्यों । इसलिए धिक्कार है उनकी शिक्षा-दीक्षा को, धिक्कार है उनके उन शिक्षण संस्थानों को और उन शिक्षकों को, और धिक्कार है उन माताओं-पिताओं को, जिनके द्वारा "वो निर्लज्ज" "मूढ़ मति" इस संसार में आये।
उन्हें जो पढाया गया उसे ही आँख बंद कर सच मानने वाली जो शिक्षा इस देश में नहीं चलती थी, ये उसे ही लागू रखने का परिणाम है ।
आज भारत कि स्थिति ऐसी है जैसे "चौबे जी चले छब्बे जी बनने रह गए दूबे जी" ।
वास्तव में आजादी के नाम पर हुआ समझौता देश के लोगों के साथ धोखाधड़ी है। जिन लोगों ने ये किया वो पापी थे, और जिन्होंने उनका साथ दिया या उन्हें वोट दिया उन्होंने भी जाने-अनजाने पाप किया।
अब इन "पाप सने हाथों" को धोने का समय आ गया है और अवसर भी मिल रहा है जिनके पूर्वजों ने ये पाप किया था वो भी उनके पाप से अपने को उरिण कर सकते हैं।
नई आजादी नई व्यवस्था के लिए नया आन्दोलन चल रहा है "भारत स्वाभिमान" जिसके आगामी चुनावों में सफल होने के अब तो दो सौ प्रतिशत सम्भावनाये हैं जैसा कि बिहार में दिख गया है, और राष्ट्रीयता जो उफान पर है उसे देख कर तो लगता है कि इस बार न विदेशी तौर-तरीका(सिस्टम) बचेगा न विदेशी सोच और सोचने वाले बचेंगे।
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