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Sunday, December 11, 2011

भला कोई माँ अपने बच्चों का गला स्वयं कैसे घौंट सकती है ?....

माँ ! सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शायद ही कोई हो; जो अपने बच्चों का गला अपने हाथों घौंट देफिर भारत में तो माँ की महिमा ही निराली हैयहाँ तो कैसी-कैसी मांएं हुयी हैंकहते हैं अपने बच्चों को संस्कार देने में माँओं का बड़ा योगदान होता है। लेकिन ये भी कहा जाता है कि माँ के ज्यादा लाड़-प्यार से बच्चा बिगड़ जाता हैएक चोर ने तो जेल में अपनी माँ का कान ही काट लिया था कि उसने बचपन से ही उसकी चोरियों पर ध्यान क्यों नहीं दिया;आज उसकी वजह से उसे जेल में जाना पड़ा
तो साहब हम बात कर रहे हैं माँ कीमाँ! दरअसल एक व्यक्तित्व के साथ एक प्रवृत्ति भी है इसीलिए तो जरुरी नहीं कि ममत्व का भाव केवल एक स्त्री में ही हो यह पुरुषों में भी होता हैफिर भी माँ शब्द को एक स्त्री के लिए ही प्रयुक्त किया जाता है और जितने भी उदहारण दिए जाते हैं वह स्त्रियों के ही होते हैंकारण ? प्रकृति जननी है और स्त्रीलिंग है, इसे माँ कहा और समझा जाता हैइसीलिए माँ शब्द केवल स्त्रियों के लिए ही प्रयुक्त होता है
प्रकृति के किसी भी प्राणी में कोई भी माँ अपने बच्चों का गला अपने हाथों से नहीं घोटती;कुछ अपवाद हों तो पता नहीं
जैसे कहते हैं नागिन अपने संपोलों को स्वयं खा जाती हैवहीँ बंदरिया अपने बच्चे को मरने के बाद भी तब तक नहीं छोड़ती जब उसमे से दुर्गन्ध नहीं जातीमेरा दावा है लादेन की माँ अगर वहां पर होती तो पहले स्वयं गोली खातीकोई भी हो सद्दाम या गद्दाफी के विषय में भी हम यही कह सकते हैंपर इनके पास शायद माँ जीवित नहीं थी
पर हमारे यहाँ की एक माँ जीवित है; अपने बच्चों की प्यारी और अपने ही बच्चों को जी जान से चाहने वाली, हमारे देश में "कांग्रेस" हैभला वो कैसे चाहेगी कि अपने प्यारे बच्चों का गला घोंट देजो बच्चे उसे अब मालामाल कर रहे हैंचाहे उसकाबड़ा पुत्रभ्रष्टाचार हो यागोद ली पुत्रीव्यवस्था हो, और लोकतंत्र नामक पुत्र को तो उसने पूरी योजनाबद्ध तरीके से पालपोस कर बड़ा किया है इसका इतना डर उसने जनता में बैठा रखा है कि इसके नाम से हर कोई बगलें झाँकने लगता हैऔर माँ कांग्रेस; अपने सब नैतिक अनैतिक धंधे इसकी आड़ में बखूबी कर लेती
पूरी दुनिया एक तरफ; माँ की ममता एक तरफमाँ अपनी जान दे देती है पर अपने बच्चों को बचा लेती है अगर वो सक्षम होवो मर जाये तब कहीं संभव होता है कि उसके बच्चों को कोई मार सके
तो साहब माँ की ममता को समझो ध्यान करो जंगल में एक शेरनी या हथिनी पागल हो जाती है जब कोई उनके बच्चों पर प्रहार करता हैकहीं वैसा ही कांग्रेस के मामले में हो जिसे देखो उसके नाजों पले पुत्र-पुत्रियों को ख़त्म करने की बात करता हैइनके ख़त्म होने से पहले वह पगला जाएगी स्वयं ख़त्म हो जाएगी पर इन्हें अपने जीतेजी ख़त्म नहीं होने देगी आखिर एक अच्छी माँ के प्राण अपने बच्चों में ही तो बसते हैं

Wednesday, December 7, 2011

बड़ी ख़ुशी हुयी ये जानकर........

इंटरनेट साईटों को प्रतिबंधित करने को लेकर समझ आया कि सरकार देखती सुनती सब है; पर करती कुछ नहीं, हाँ; अपने सर पर लगे तो बौखला जाती है।

हम तो मायूस थे कि दुश्मन के कानों में मैल आँखों में कमजोरी है |
बड़ी ख़ुशी हुयी ये जान कर कि वो सब कुछ सुन और देख रहे हैं
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Saturday, December 3, 2011

प्रार्थना; हे भगवान इनको कुमति ही देना !

हे भगवान “इनको” कुमति ही देना।

पर "इनसे" हमें और देश को बचा लेना॥

इनकी चाल – चेहरा और चरित्र

सबको समझ आ जाये;

नादानों को ऐसी समझ देना

सब इन्हें जान जाएँ तब तक;

हे भगवान इनको कुमति ही देना

पर;”इन”से हमें और देश को बचा लेना॥

“ये”चरित्र हीनों का सम्मान करें,

अपने लिए चरित्रहीनों का निर्माण करें,

“ये”अबलाओं को तंदूर में भूनें;

या चूना भट्टी में भस्म करें,

“वो” इनकी समर्थक ”पबों” और बारों में मरें,

अबलाओं को समझ आ जाये;

ऐसा सबक देना,

पर इन से हमें और देश को बचा लेना।

हे भगवानइनकोकुमति ही देना।।

Friday, November 25, 2011

जो देश भक्ति की बात करे उसे उपहास की नज़रों से देखा जाता है या उसे पागल ठहरा दिया जाता है

चलो कोई तो आम आदमी निकला, वर्ना कोई इस दल का कोई उस दल का जो किसी दल का नहीं वो दीखता ही नहीं लेकिन इस झापड़ से उसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की है | "इसे" भ्रष्ट हो चुके लोकतंत्र पर, विदेशी कम्पनियों के हाथों बिक चुके मंत्रियों पर, आम आदमी को लूट रही व्यवस्था पर, आम आदमी के तमाचे के रूप में देखना चाहिए |
इस बात को वैसे तो सही नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इस के लिए माहौल भी इन्हीं मंत्रियों की कारगुजारियों से बना है ये वही मंत्री हैं जो अपने बयानों से कभी महंगाई बढ़ाने के लिए जिम्मेदार माने जाते थे, जमाखोरों को इशारा सा करने वाले बयान या टिपण्णी देश भूला नहीं होगा |
दूसरा आप आम आदमी से तो संयम बरतने की अपील और इच्छा करते हो पर स्वयं उन्हें पुलिस के डंडों से बेरहमी से पिटवाते हो जब वो भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े हों तब, जब वो अपने अधिकार के लिए खड़े हों तब, कैसे महिलाओं और बच्चों तक को पुलिस बेरहमी से पीटती है इसे समाचार चैनलों के माध्यम से कई बार हमने देखा है पर किसी मंत्री को पुलिस के द्वारा इस तरह पीटने को लेकर कभी भी लोकतंत्री चिंता व्यक्त करते या इस "डंडे" (अंग्रेजों ने थमाया था) वाली पुलिस के विरुद्ध कुछ करने की बात कहते नहीं सुना | पुलिसिया गोलीबारी में भी कई मारे जाते हैं; क्यों लोकतंत्र तभी याद आता है जब मंत्रियो पर जूते-चप्पल या थप्पड़ पड़ते हैं | क्यों नहीं तब लोकतंत्र याद आ रहा है जब खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश को लेकर संसद और खुद सरकार के मंत्री एक नहीं है |
ये पूरा माहौल सरकार स्वयं बना रही है पिछले पैसठ वर्षों से इन्होने व्यवस्थाओं के नाम पर आम आदमी को केवल झंडा पकड़ा दिया है वो भी अपनी अपनी पार्टियों का | आम आदमी को देशभक्त रहने ही कहाँ दिया वो देशभक्त नहीं पार्टी भक्त हो गया है | जो देश भक्ति की बात करे उसे उपहास की नज़रों से देखा जाता है या उसे पागल ठहरा दिया जाता है वही कुछ इस कांड में हो रहा है केवल ऊपर से इस कृत्य को अलोकतांत्रिक ठहरा दिया जाना केवल इसके सही या गलत पर बहस करना वैसा ही है जैसे कांटा चुभने पर केवल कांटा निकाल फैंकना ये नहीं देखना कि कांटा चुभा क्यों |

Monday, November 21, 2011

बधाई हो ! जन लोकपाल बिल बनने वाला है

जी हाँ ! दोस्तो जन लोक पाल बिल बस कुछ ही दिनों में बन जायेगा। जैसा "सिविल सोसायटी ऑफ सेकुलरों" ने कहा है कुछ-कुछ वैसा ही बनेगा; शायद ! क्योंकि पढता कोई नहीं है इसलिए वैसा ही लगेगा संसद में भी पास हो जायेगा, राष्ट्रपति भी उस पर आँख बंद कर मोहर ठोक देंगी; ओह माफ़ करना हस्ताक्षर कर देंगी मोहर तो उनकाठोकेगा।

लो बन गया कानून ! मीडिया अभूत पूर्व ख़ुशीमनवाएगाकानून की एक-एक खूबी गिनवायेगा, सिविल सोसायटी के अंध भक्त भी बम-पटाखे फोड़ेंगे, किसी की जय-जयकार से गली-गली गूंजेगी, महिलाएं भी नाचेंगी क्योंकि टी.वी. में दिखेंगी। ऐसा माहौल बनाया जायेगा जैसे आजादी मिल गयी हो। इसके आगे सबकुछ धुन्धला दिया जायेगा। इस कानून से कैसे गरीब को रोटी मिलेगी,कैसे बेरोजगारों को काम मिलेगा,भ्रष्टाचारी कैसे पकडे जायंगे कैसे रिश्वत खोरी बंद हो जाएगी सब दिखाया जायेगाहाँ ! जो चार सौ लाख करोड़ काले धन की बात जनता में है उसे कोई याद नहीं दिलाएगा।

बस सब कुछ मिल गया जैसे; ऐसा दिखाया जायेगा।

सब खुश ! सिविल सोसायटी ऑफ सेकुलर "ब" (कांग्रेस समर्थक), कहेंगे हमने इसलिए कांग्रेस के विरोध को गलत बताया था। सिविल सोसायती ऑफ सेकुलर "अ"(कांग्रेस विरोधी) बोलेंगे कि हमने दबाव बनाया तभी ये बिल आया। जो भी हो अब सब कांग्रेस के गुण गायेंगे, धन्यवाद करेंगे और बताएँगे कैसे इस कांग्रेस ने समय-समय पर कौन सा कानून दिया है जैसे सूचना का कानून जैसे १८ वर्ष में मताधिकार का कानून, शिक्षा का अधिकार कानून,रोटी का अधिकार कानून…… इत्यादि- इत्यादिइन कानूनों द्वारा जनता को बेशक मूर्ख बनाया जा रहा है; पर कानून तो बना है ना !

और ख़त्म होती कांग्रेस को संजीवनी मिल जाएगी इसी के बीच में आम जनता को पता लगेगा कि युवराज को नेता (पी.एम के लिए) चुन लिया गया है, बस; हो गयी ख़ुशी दोगुनी ! जनता फिर से धन्य हो जाएगी जैसे १९४७ में हुयी थी।

क्योंकि यहाँ आदमी वो भी भारतीय तो कोई है ही नहीं। हिन्दू है, मुस्लमान है,दलित है,सवर्ण है, भजपा-बसपा-सपा-कांग्रेस-जद वाला है या अकाली-मराठी-मद्रासी-बंगाली इत्यादि है पर; भारतीय नहीं है। ऐसे लोगों पर राज करना कांग्रेस ने अपने भगवान (अंग्रेजों) से सीखा है। इसलिए उसे कोई डर नहीं; कोई भी कितना ही बड़ा आन्दोलन चला ले कितना ही दम लगा ले नई आजादी मिलेगी नई व्यवस्था बनेगी, काले धन को तो लोगों को तो भुला ही जायेगा। क्योंकि भारत के लोग बहुत भुलक्कड़ होते हैं जो अंग्रजों के अत्याचार भूल गए उनकी गुलामी को भूल उनके गुण गाते हैं।

Monday, November 14, 2011

महंगाई समस्या नहीं;समाधान है; गरीब कम करने का |

महंगाई को समस्या समझने वालों के लिए एक नयाचिंतन बिंदुपेश कर रहा हूँ;विचार करने के लिए। जो लोग महंगाई को समस्या समझ कर सरकार और महंगाई को कोसते हैं उन्हें इस पर जरुर विचार करना चाहिए। और जो महंगाई के लिए कांग्रेस का विरोध करते हैं उन्हें, और जो कांग्रेस के जन्मजात-आंख बंदबंधुआ”,समर्थक, बुद्धिजीवी,गुलाम हैं उन के लिए तो मेरा ये विचार संजीवनी का काम करेगा। अपनी नाक और साख बचाने में असफल कांग्रेस और उसके "थिंक टैंक"के लिए ये बात बहुत विचारणीय है। उनको कुछ सूझ नहीं रहा अपनी "राजमाता और राजकुमार"की शान में एक शब्द भी नहीं बोल सकते; तो आखिर कैसे अपने को सही ठहराएँ। पेट ख़राब होने से अतिसार नामक बीमारी तो हमने सुनी है पर दिमाग ख़राब होने "मुखातिसार नामक रोग"कैसा होता है वो इसके ही नेता प्रस्तुत कर रहे हैं(इसको बेकारी का सदुपयोग भी कह सकते हैं।), ऐसे नेता नेता मेरे इस विचार से जनता में कुछ सकारात्मक बात कह सकेंगे।

क्योंकि मेरे पास कार तो है नहीं; एक पुराना स्कूटर है जिसमे महीने में सात सौ का पेट्रोल लगता है जो दो साल पहले तक तीन सौ का लगता था,मैं अपने को अमीर नहीं कह सकता हाँ ३२ रूपये से ऊपर वाला अमीर हूँ लेकिन पेट्रोल मुझे गरीब बना देगा। जितने कर हिंदुस्तान में लगाये हुए हैं उनसे क्या-क्या होता है ? ये जानने कि इच्छा होने लगी है क्योंकि इन की अय्याशी किसी से छुपी नहीं है, कहीं अपनी अय्याशी कम होने के डर से ही तो ये महंगाई नहीं बढ़ाते।
है बेशक यह एक मजाक, हो सकता है इसमें कहीं कोई सच्चाई हो।

जनसंख्या ! वो भी गरीबों की। दरअसल एक बड़ी समस्या है; संसार में सक्षम लोगों के लिए वैसे ही संसाधनों की कमी पड़ रही है इन गरीबों के कारण इसलिए बहुत दबाव है कि जनसंख्या कम करो, फिर गरीबी कम करो; ये दोनों ही कम होंगे तो सक्षम लोगों के ऐश आराम की वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हो जाएँगी। दूसरा; अगर कहीं गरीबों को समय रहते सक्षमों की अय्याशी समझ में गयी तो बड़ा विद्रोह हो जाये। इसलिए; जनसंख्या कम करो।

अब जनसंख्या कम करनी है ! गरीबी कम करनी है,गरीब* कम करने हैं। जरा ध्यान देना ! केवल कम करने हैं; खत्म नहीं करने, क्योंकि ख़त्म कर दिए तो इनके (सक्षमों के) लिए काम कौन करेगा ? तो साहब एक तीर से कई निशाने लगाने का सबसे अच्छा हथियार है "महंगाई"वैसे तो कई प्रकार के जो"कर"लगाये हुए हैं वह भी गरीबी बनाये रखने के लिए हैं। दूसरा; अपनी अय्याशी कम हो जाये इसलिए भी करों की आवश्यकता पड़ती है।
बहुत कोशिश करी;अस्पतालों में चिकित्सक और दवाएं ही नहीं रखे। जिससे गरीब मरें, अपने लिए तो अलग अस्पताल हैं अलग दवाएं और विशेषज्ञ चिकित्सक हैं पर गरीब फिर भी कम नहीं हो रहे,कम ही लोग मर रहे हैं लोग किसी तरह कर्ज लेकर ही सही अपना इलाज करवा ले रहे हैं। इन्होने क्या नहीं किया गरीबों को कम करने के लिए उनकी जमीनें छीनी, उन्हें कर्ज में फंसाया, उनके लिए पढने को अध्यापक नही रखे, बेरोजगारों को काम ही नहीं दे रहे, सड़कों तक पर गड्डे इसीलिए छोड़े जाते हैं कि उनसे होने वाली दुर्घटनाओं से गरीब ही मरते हैं। नक्सलवादी, आतंकवादी घटनाओं में गरीब ही मरते हैं पर फिर भी इनकी संख्या बढती ही जाती हैं। क्या-क्या नहीं किया गरीबी कम करने के लिए; अंत में हार कर गरीबी रेखा को ही इतना नीचे खींच दिया कि उससे ऊपर सब अमीर माने जायेंगे। पर उसमे भी घपला हो गया, क्योंकि कुछ गरीब जो पढ़-लिख गए हैं वह इनकी साजिश को समझ गए।
गरीबों की संख्या है भी बहुत साहब; जहाँ देखो गरीब ही मरता है नकली दारू,नकली दवा,नकली खानपान की वस्तुएं, घर में मरे या सीमा पर मरे, खेत में मरे या सड़क पर मरे, बिना दवा के मरे या बिना चिकित्सक के मरे, अनपढ़ मरे या पढ़ा-लिखा मरे,नक्सलवादी या आतंकवादी हमले में मरे या हमला करके मरे, मतलब मरता गरीब ही है। हमने तो साहब बहुत कम अमीरों को मरते देखा है। जैसे गांधीजी, नेहरूजी,इदिराजी,…. इत्यादि-इत्यादि। मतलब करोड़ों गरीबों पर एक अमीर। अब देखा जाये तो उनकी संख्या है ही उतनी।
अब ये एकमात्र हथियार है जिससे गरीबी और गरीब दोनों नियंत्रण में रहते हैं, शिक्षा महँगी करदो,चिकित्सा महँगी करदो,रोटीमहँगी करदो अब हर चीज को अलग-अलग महंगा करेंगे तो लोग इन्हें मारने जाएँ इसलिए सबसे आसन उपाय है पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दो। एक बार नहीं थोड़ा-थोड़ा करके कुछ सालों में इतने बढ़ा दो कि अब अगर कम करने का दबाव भी पड़े तो कुछ कम करने पर भी कोई फर्क पड़े। क्योंकि इनकी अपनी हिस्सेदारी भी होगी;वो भी घाटे में जायेहै न आसान उपाय ?