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Monday, July 12, 2010

अब भी जिसका खून न खौला…..

मैं और मेरे साथ सारे देश वासी अभी तक यही समझते रहे कि सन 1947, 14 अगस्त की रात को हमारा देश स्वतन्त्र हुआ था, “उन लुटेरे अंग्रेजों से”। इसी लिए हम 15 अगस्त के दिन स्वतंत्रता दिवस मानते हैं

लेकिन ;

जब मुझे ये पता लगा; कि वास्तव में उस दिन हम स्वतन्त्र नहीं हुए, वरन हमारीपरतंत्रता के भवनको कुछ खंभों के द्वारा और मजबूती प्रदान कर दी गयी थीतो मुझे बड़ा धक्का लगा

हालाँकि ;

पहले भी कभी लेखों में पढता था कि भारत स्वतन्त्र नहीं हुआ, या स्वराज नहीं मिलापर यह सोचता था कि ये सब यहाँ के भ्रष्टाचार, गरीबी और अव्यवस्थाओं से ग्रस्त होने के कारण कहा जाता होगाशायद लिखने वाले लिखते भी यही सोच कर होंगे

पर ;
जब वास्तव में ये पता लगेगा; देश के लोगों को, कि; सन 1947 की 14 तारीख की रात को देशवासियों की आँख में धुल झोंकने का समझौता हुआ थादेश के उन दुश्मनों से मिल कर एक शर्तनामे पर सहमति बनी, जिन्हें देश से खदेड़ने के लिए हमारे अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपनी आहुति दीविरोध में सशस्त्र क्रांति ने तो मिशालें कायम कीं ही; अहिंसा वादी आन्दोलन ने भी दुनिया भर में नाम कमाया

आखिर कहाँ थे तब पूज्य महात्मा गाँधी जब इन सब शर्तों पर हस्ताक्षर किये जा रहे थे ? कि शिक्षा, चिकित्सा, कानून, न्याय, अन्य भी सभी व्यवस्थाएं वही रहने दी जाएँगी ; जैसे तब तक अंग्रेज चला रहे थे
उन्होंने क्यों नहीं रोका जब सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा सौंपने की सहमती पर हस्ताक्षर हुएकहीं ऐसा तो नहीं; कि इन सबका विरोध बापू जी ने किया हो पर कुछ लोग नहीं माने और इसी कारण बापू की हत्या हुयी हो जिसमे निमित्त नाथुराम गौडसे बन गया हो; क्या पता ? अब तो शक पक्का होने लगा है

इतनी सब जानकारी हालाँकि पहले भी कुछ- कुछ उड़ते-उड़ते सुनाई दे जाती थीपर ; विश्वास नहीं होता थापर अब स्वामी रामदेव जी ने ये सारी जानकारी दस्तावेजों के रूप में पतंजलि योगपीठ में मंगवा कर रखी है

और दोस्तो आज देश का जो हाल हो गया है, उसकी जड़ में यही सब समझौते जिम्मेदार हैंजिनके कारण आज भी अजीबोगरीब समझौते करने पड़ रहे हैं । वही व्यवस्था है कि यहाँ पेट्रोल नेपाल से लगभग तीन गुना महंगा है पाकिस्तान से दोगुना महंगा है । हम अपराधों में बहुत आगे हैं भ्रष्टाचार में तो सिरमौर हैं शर्म और नैतिकता तो कहीं दिखाई ही नहीं देती , जितने अधिक शिक्षित होते हैं उतने अधिक अभारतीय होकर या संस्कार हीन होकर अपने को सभ्य मानने लगते हैं । पहले कहते थे कि शिक्षित लोग अपराधी होते हैं पर आज देख लो जितने ज्यादा पढ़े लिखे हैं वही अपराधी हैं चाहे डॉक्टर हों या इंजिनियर, और भी कोई हों भारत और भारतवासियों की पहचान मिटती जा रही हैयही अंग्रेज चाहते थे

और अभी भी केवल बुराईयों के पत्ते ही छांटने का प्रयास हो रहा है मूल पर कोई ध्यान नहीं दे रहासबसे ज्यादा भ्रष्ट मीडिया हो गया है जो अपने को जन सरोकारों का सबसे बड़ा हितैषी बताता है, पर इस बात पर कोई बहस नहीं छेड़ता