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Sunday, October 30, 2011
बुरा न मानना; अगर गधा बन गए तो !
Wednesday, October 26, 2011
खोखली शुभकामनायें

दीपावली की शुभ कामनाएँ करें स्वीकार।
"ये" और इस प्रकार की शुभ कामनाएं अब खोखली सी लगने लगी हैं | चाहे कोई हमें दे या हम किसी को दें, केवल औपचारिकता जैसा ही लगता है | दरअसल आजकल के मीडिया ने हमारे पर्वों-त्योहारों का इतना बाजारीकरण कर दिया है कि उनकी वास्तविकता को ही लोग भूल गए हैं |
पहले हम शुभकामना देते हैं;फिर सावधानी बरतने की नसीहत भी देनी पड़ती है। न जाने कौन सी मिठाई जहरीली या बीमार करने वाली निकल जाये । विदेशी कम्पनियों की चौकलेटों का भी क्या भरोसा ? कैसे-कैसे केमिकल मिले होते हैं।
अजी साहब घर में मिठाई बनाने के लिए भी कौन सा सामान है जो असली मिल जाये ? ऐसे में नसीहतें देने के आलावा क्या कर सकते हैं ? नसीहत भी केवल सावधान रहने की ही दे सकते हैं क्योंकि और तो अपने हाथ में कुछ नहीं है
Sunday, October 23, 2011
क्या पता प्रधान मंत्री भी जेल में हों ?
साथियो बदलाव का दौर चल रहा है, एक दिन में हीरो और कुछ ही घंटों में हीरो से विलेन बन जाने में कुछ भी विशेष प्रयास नहीं करना पड़ रहा। बस केवल जबान चलानी है जैसे अपने भूषण जी ने चलायी, वैसे देखा जाये तो वे अलगाव वादियों के तो हीरो बन गए। अलगाव वादियों का प्रसिद्धि क्षेत्र बड़ा है। उससे इनाम मिलने के चांस ज्यादा हैं और इनाम अंतर्राष्ट्रीय होते हैं इसके लिए अगर अपने देश में विलेन भी बन गए तो क्या ? वैसे बड़ा दुर्भाग्य है ! कोई अपने-आप विलेन बन रहा है किसी को सरकार विलेन बनाना चाह रही है, एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। पर ये तो उस बदलाव पर निर्भर है किसे क्या बनाना है। अलबत्ता सरकार अपने भोपू (न्यूज़ चेनल्स) के माध्यम से प्रयासरत है ।
बदलाव करने में सरकार कसर नहीं छोड़ रही। ३-३,४-४ मंत्री जिसकी अगवानी करने पहुंचें; सोचो ! कितना मान दिया होगा ? फिर उसी के विरुद्ध रामलीला मैदान में आधी रात को लठ चलवा दिए। ये भी बदलाव का ही हिस्सा है जो कल तक मंत्री थे वो अब जेल में हैं। क्या पता बदलाव थोड़ा और बढे तो प्रधान मंत्री भी जेल में हों। क्योंकि पूरे विश्व में इस समय बुराई के विरुद्ध एक आक्रोस तो पनप ही रहा है । सबसे बड़ी बात ये है कि "बुरों" का कोई वश नहीं चल रहा इन लड़ने वालों के विरुद्ध।
पूरे विश्व में एक बदलाव का दौर चल रहा है। मौसम अपने सुहाने पूर्ववर्ती दौर में करवट बदल रहा है, बड़े-बड़े तानाशाह धराशायी हो रहे हैं। कभी चालीस-चालीस साल तानाशाही करी वे तक कुत्ते की मौत मारे जा रहे हैं। पीढियॉ की पीढियॉ ख़त्म हो रही हैं।
एक बड़ा अंतर है दुनिया के तानाशाहों में;और भारत के तानाशाहों में, उन्होंने ताकत के दम पर अत्याचार करके अपनी तानाशाही कायम रखी, इन्होने एक शातिर ठग की तरह अपने देश वासियों पर तानाशाही कायम रखी। मौतें वहां बेशक प्रत्यक्ष हुयी पर मौतें यहाँ भी कम नहीं हुयी चाहे भोपाल गैस कांड हो या हमेशा बाढ़ से मरने वाले हों, या कोई अन्य कारण हों मरने के, सब पर इन्होने अपनी चालाकी और ठग बुद्धि से जनता को भ्रमित किया है। और जिस तरह से लूट मचाई है वह किसी तानाशाह से कम नहीं है।
हमारे यहाँ तो इस तरह भगवान कृष्ण ने कंस को मारा था उसके बाद तो किसी की इस तरह की मौत हमने सुनी नहीं । हाँ; सिनेमा में जरुर देखने को मिल जाती है।