मैं बहुत से ब्लॉग देखता हूँ जो देशभक्ति से परिपूर्ण होते हैं | और न केवल देश-समाज-संस्कृति-संस्कारों के उत्थान में लगे हुए हैं; अपितु सभी से इसमें सहयोग क़ी अपेक्षा करते हैं और आह्वान भी करते हैं | इन सबके लिए मैं एक बात कहना चाहूँगा कि; जिस कार्य को आप और हम करना चाह रहे हैं, और पिछले सौ-दो सौ सालों से अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने समय-समय पर इस तरह के आन्दोलन चलाये और कमोबेश सफलता भी प्राप्त करी। पर फिर भी आज हमारी भारत माता की दशा इतनी बुरी है कि भारत में रहने वाले सभी देशभक्त, 'संस्कारवान लोग देश व संस्कृति - समाज का भला चाहने वाले' व्यथित हैं | कैसे भला हो , इसी प्रयास में अपनी-अपनी डफली बजा रहे हैं । दरअसल सैंतालिस के बाद देश की कमान संस्कारवान नेताओं को नहीं मिली ।
हम और आप जैसे लोग जो थोडा बहुत संवेदनशील हैं ; अपना जितना भी प्रभाव रखते हैं उतना, उसे सही करने की सोचते हैं | पर मेरी समझ से यह उसी तरह से है; "जैसे किसी विशाल वृक्ष पर उससे भी विशाल झाड़-झंखाड़ पैदा होकर उसे ढँक लेते हैं और हम एक ब्लेड लेकर उसे काटने-हटाने का प्रयास करें" | आपका -हमारा प्रयास तो सराहनीय है पर स्वयं के लिए भी विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि हम उस ब्लेड या छोटे से औजार की क्षमता जानते हैं ,जो कई बार टूट कर हमें भी लहू लुहान कर देता है ।
मेरी समझ से उसे काटने के लिए एक मजबूत कुल्हाड़ी की आवश्यकता होती है | अगर एक तरफ से कोई उस मजबूत कुल्हाड़ी से उन झाड-झंखाड़ रूपी बुराईयों पर प्रहार करे तो, दूसरी तरफ से केवल खींचतान करके भी कोई अपना सहयोग उससे ज्यादा कर सकता है; जितना वह ब्लेड से करने की कोशिश करके करता है |
यहाँ पर ये ध्यान देना जरुरी है कि वह खींचतान झाड़-झंखाड़ की करे; नाकि कुल्हाड़ी चलाने वाले की | वैसे वह हम लोग कर ही रहे हैं | हम लोग केवल झाड़-झंखाड़ की खीचतान ही तो कर पा रहे हैं |
तो जनाब वास्तव में बात यह है कि"आपके विचारों से पूर्णतया सहमति रखते हुए", 'एक बात पर ध्यानाकर्षण चाहूँगा, कि आज के परिप्रेक्ष में जितना प्रखर व्यक्तित्व स्वामी रामदेव जी जैसा है जो इन सब बुराईयों और भ्रष्टाचार के विरुद्ध पूरी प्रखरता से और पूरे दमखम के साथ न केवल बोल रहे हैं अपितु गाँव-गाँव जाकर जन-जन को भी जाग्रत कर रहे हैं | इस समय पूरे देश में सवा लाख तो योग कक्षाएं चल रही हैं |
और भारत स्वाभिमान के सदस्यों की संख्या भी लाखों में पहुँच चुकी है | वह अपनी कुल्हाड़ी को इतनी बड़ी और मजबूत बना कर इस कार्य में लग गए हैं कि आम जन को भी अब उन पर विश्वास हो गया है। सब यही कहते हैं कि अब तो अगर कोई भला कर सकता है तो बाबा रामदेव हैं |ऐसे में अगर हमारे बौद्धिक ब्लोगर बंधू उन्हें अनदेखा करें तो समझ आना मुश्किल है ।
मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि वैसे तो शायद आप अनभिज्ञ नहीं होंगे अगर हैं भी तो स्वामी रामदेव जी से, उनके संगठन से जुड़िये और "उनकी कुल्हाड़ी को ही शक्ति प्रदान कीजिये" | ऐसी सभी शक्तियों को इस समय भारत स्वाभिमान आन्दोलन का साथ देकर अपने प्रयासों को सार्थक रूप देना चाहिए |
sahi samjhaaya....
ReplyDeletekunwar ji,
आपने सही दिशा देने की कोशिस की देसभक्त बलागरस को।
ReplyDeleteहम आपसे पूरी तरह सहमत हैं मामला तो सिर्फ इतना है कि क्या स्वामीराम देब जी हमारे जैसे लोगों को अपने संगठन का हिस्सा बनान चाहेंगे भी या नहीं।
सुनील जी यह समझ नहीं आया कि आपको अपने पर अविश्वास है या स्वामी जी पर | क्योंकि स्वामी जी का तो जो भी नियम है सदस्य बनने का,वह शायद कोई भी देश भक्त पूरा करता है | साधारण रूप से सभी के लिए खुला आमंत्रण है |
ReplyDeleteएकदम सही आव्हान है… वैसे कुछ ब्लॉगर भारत स्वाभिमान से जुड़े हुए हैं, लेकिन अपने ब्लॉग पर इस बारे में लिख नहीं रहे… क्योंकि हिन्दी ब्लॉग जगत "बुद्धिजीवियों" का जमावड़ा (बल्कि अखाड़ा) बन चुका है। यह काम जन-जन से जुड़कर ज़मीनी स्तर पर ही चले तो अच्छा… फ़िर भी आपने यहाँ आव्हान किया है यह बहुत अच्छी बात है, शायद कुछ फ़ायदा हो।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद…
हम जुड़े तो हैं भारत स्वाभिमान से लेकिन जितना हम अपने स्तर पर लोगों को न्याय दिलाने में सफल हो रहें है उतना भारत के स्वाभिमान से हमें सहयोग नहीं मिलता है / अब लगता है स्वामी जी भी किसी ब्रांड की तरह आम लोगों से दूर होते जा रहें हैं और जो आन्दोलन आम लोगों के दुःख तकलीफ को दूर करने के वजाय सिर्फ आन्दोलन आन्दोलन चिल्लाएगा तो उसका विकाश नहीं हो सकता / असल संगठन और आन्दोलन वह होता है जो पीड़ित को न्याय या उसकी सहायता के लिए हर सम्भव सहायता पीड़ित व्यक्ति के द्वार तक पहुंचा सके / इस प्रयास में स्वामी राम देव पिछरते दिख रहें हैं जिससे मुझे इस आन्दोलन का भविष्य उज्जवल नहीं दिख रहा है / हमारी प्रार्थना है की भगवान इस आन्दोलन को सच्चा और जमीनी आन्दोलन बनायें जिसके लिए बाबा राम देव जी को हर दबे कुचले और असहाय लोगों की मदद करनी होगी /
ReplyDeleteaaj yh hindoonke jivn mrn ka prshn bn gya hai
ReplyDeletedr. ved vyathit
बहुत सही कहा आपने ।
ReplyDeleteभारत स्वाभिमान एक दम सही है और समय की मांग है.
ReplyDeleteहमें इसपर विश्वास भी हैं और हम अपना योगदान भी कर रहे हैं.
देशभक्त ब्लोगरों के लिए भी जरुरी है एक साथ जुड़े रहना.
बहुत अच्छी बात है... लेकिन देखियेगा कि स्वामी जी में खोट निकालने वाले कितने लोग आ जाते हैं... वैसे जो जनान्दोलन स्वामी जी ने चलाया है वह अद्वितीय है... स्वामी जी कामयाब हों इसकी कामना है..
ReplyDeleteजो संस्कृति विरोधी होगा विरोध के प्रश्न पर और जो संस्कृति समर्थक होगा तो समर्थन के प्रश्न पर, उनके विचार परस्पर आधारभूत समानता दर्शाएंगे मौलिक विविधता उस विषय पर कार्यान्वयन के विकल्प प्रस्तुत करती है!हमारे लक्ष्य एक होकर भी आपके पास विकल्प टेंशन पॉइंट है मेरे पास विविध विषयों पर 25 ब्लाग की शृखला,उनके समायोजन हेतु संकलक (सभी राष्ट्र भक्तों का मंच) देशकीमिटटी.फीडक्लुस्टर.कॉम जिसमे आपके जैसे 36 अन्य ब्लाग संकलित हैं! स्वामी राम देव सम्मानित/प्रतिष्ठित व श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं किन्तु सुनील जी की बात को दूसरे ढंग से कहता हूँ! 10 वर्षों से राष्ट्रीय साप्ताहिक युगदर्पण का संपादक उससे पूर्व भारतीय मजदूर संघ के मुखपत्र का सह संपादक रहा हूँ! कई बड़े बड़े सरकारी कार्यक्रमों पत्रवार्ताओं में आमंत्रित रहा हूँ! बात पुरानी है दिल्ली में स्वामी जी का पहला बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ,सोचा देखें व जुड़ें, पंजीकरण की भारी राशी, मेरे जैसा व्यक्ति जो व्यावसायिक नहीं मिशन पत्रकारिता करता हो...! केवल प्रभावशाली लोगों के अतिरिक्त अनुसरणकर्ता ही चाहिए! फिर हम अपने मिशन में पिल गए!
ReplyDeleteLive traffic feed की भांति हमारा एक gadget कुछ दिन आपके ब्लाग पर भी दिखा था वह संकलक से जुड़े 70 ब्लाग की नवीनतम प्रविष्ठियां एक जगह दर्शाता है कृ पुनः लगा लें साथ ही ब्लाग वाणी की भांति प्रतीक चिन्ह देश की मिटटी संकलक का भी है उपयोगी रहेगा! सादर वन्दे मातरम
तिलक जी सदर नमस्कार | आपके विचार मिले , अच्छे लगे , बाकि मैं तो एक बात जनता हूँ कि ; मुझे न तो कोई भारी राशि देनी पड़ी और न स्वामी जी के विचारों को अपने पूरे समर्थन से कोई छोटे पन का अहसास होता है | वर्ना जो विचार या मुद्दे स्वामीजी ने आज उठाने आरम्भ किये हैं कोई भी देशभक्त और संवेदनशील व्यक्ति जब होश संभाल लेता है तभी से उन के विषय में सोचने लगता है | मैं भी जब छटी कक्षा में पढता था तभी से यही सब बिंदु और छोटी-छोटी बातें उद्वेलित करती थी |
ReplyDeleteखैर ये सब व्यक्तिगत मामला है कि किससे परहेज किया जाये किससे नहीं | किसकी माला जपी जाये किसकी छोड़ी जाये|
यह अपने- अपने विचार के बिंदु हैं | मुख्य तो वह रास्ता है जिस पर पहुँच कर हमें मंजिल मिलनी है वह आपका भी सही है हमारा भी | बस उस रास्ते पर हमारा काफिला बहुत बड़ा हो गया है, और आप वाला काफिला बहुत छोटा और छितराया हुआ दीखता है | लेकिन क्योंकि आप बहुत समय से उस रास्ते पर चल रहे हैं आपको वह ही सहज लगता है, और अपनी महत्ता का भी ध्यान रखना पड़ता ही है | आपके देशभक्ति के जजबे को प्रणाम है | हम जिस कार्य में लगे हुए हैं वह भी कम नहीं है |
फुलारा जी हमें अपने पर विस्वास नहीं
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