ताजा प्रविष्ठियां

Wednesday, December 31, 2008

नववर्ष

“गया” (एक और साल)
“आया” (एक और साल)
जाने वाले साल से “कुछ” (सीख) लेकर
आने वाले साल की “चिंता”
(टेंशन) कर
इसीलिए तो कहते हैं
"नववर्ष मंगलमय हो" (आपको भी हो )

Saturday, December 20, 2008

हड़ताल

पहले “बे"कार थे (भूखे थे)
तो “कार” (कार्य,रोजी-रोटी),
के लिए
“हड़ताल”
कार
(“नौकरी”)मिल गया; (
“पेट भर गया”)
अब फिर से “कार” (“मोटर” )खरीदने को “पैसे"

(वेतन बढ़ाने) के लिए
हड़ताल
!

Friday, December 19, 2008

बयान

अंतुले ने "बयान" दे दिया, दे दिया तो दे दिया,
बयान देने में कुछ लगता तो है नहीं
उछालने को टी.वी.वाले हैं ही,
अब बेशक "नाक रगड़नी" पड़ जाए
"अपनी सोच" वालों के हीरो तो बन ही गए
"चिंता" तो आने वाले "चुनावों" की है
कि कहीं "पासा उल्टा" न पड़ गया हो,

(अमर सिंह जैसा दिल्ली वाला हाल न हो जाए,उनके प्रत्याशी की जमानत भी जब्त हो गई थी।)
“ क्या अंतुले के वोटर भी समझ पाएंगे”….?

Thursday, December 18, 2008

भेदभाव

"बी. पी. एल." (राशन)कार्ड
देश में बी पी एल कार्डों से
अमीरी-गरीबी का भेदभाव;
मिट रहा है।
बी पी एल कार्ड के इतने लाभ हैं
कि बड़े- बड़े अमीर भी गरीब
बन गए ।
जो स्वयं नहीं बना
उसने माँ-बाप या पत्नी को बना
दिया।
दरअसल गरीब तो गरीब ही रहेगा
तो क्यों न अमीर को गरीब बना
दो राशन कार्डों द्वारा ही सही,
सबका फायदा है।

Wednesday, December 17, 2008

माहौल

माहौल
“माहौल” देख कर लगता है कि,
पाकिस्तान के नेता "युद्ध" चाहते हैं,
पर…. जनता नहीं।
और
भारत की "जनता" युद्ध चाहती है,
पर…. नेता नहीं।
_________________
"पाकिस्तान वालो"
कैसे रहते हो तुम अपने देश में ?
जहाँ सभी तुम्हें बेवकूफ बनाते हैं,
(और मानते हैं )
नेता, सेना, मुल्ला-मौलवी और तुम्हारी आईएसआई ;

हालाँकि
हमारे यहाँ भी ये सब कोशिश तो बहुत करते हैं,
पर इनकी चलती बहुत कम है।
ऐसा करो………….. तुम यहाँ आ जाओ (पूरी जमीन -जायदाद के साथ)।

तुम भी लोकतंत्र का मजा लेना।

Monday, December 15, 2008

"आतंकवादियों से"
आतंकवादियों हत्याएं करने में
“शायद” तुम्हें मजा आता हो,
पर,
कितनी खुशी मिलती है,
एक बार किसी की जान बचा कर देखो।
" पाकिस्तान"
"साँपों" को पालने और पोसने वाला भूल गया,
की ये एक दिन उसी के गले में लिपटेंगे।
"चाँद मोहम्मद"
"नाजायज सम्बन्ध" (कानूनन)
धर्म परिवर्तन से "जायज" बन जाते हैं।
ये कैसा कानून, ये कैसा धर्म ?
"लिव इन……।"
पशुओं में प्रचलित "व्यवहार" को
मनुष्य कानूनी तरीके से सही सिद्ध
कर रहा है …… पर
केवल "श्वान" प्रकृति के लोग ही समर्थन कर रहे हैं।
"बुश को जूता"
अफ़सोस …………… ! (अब जूता भी हथियार की श्रेणी में आ जाएगा)
पत्रकारों को बिना जूतों के वार्ताओं में जाना पड़ेगा।

Friday, December 12, 2008

चमत्कार

मैं रोज सुबह चमत्कार होते हुए देखता हूँ। कैसे ? आपको भी बताता हूँ।
सुबह पॉँच बजे उठ कर, नित्यकर्मों से निवृत हो कर आस्था चैनल लगा कर प्राणायाम करता हूँ जिसमें “बाबा रामदेव”प्रत्यक्ष रूप से प्राणायाम कराते हैं। ४-५ साल इसी तरह हो गए।
आस्था चैनल पर बाबा के प्राणायाम-योग शिविरों का सीधा प्रसारण होने लगा है, शिविरों में चमत्कार की श्रेणी में आने वाले मामले, "रोगियों के ठीक होने के" देखे हैं। वास्तव में ऐसा होता भी है, मैं अपने पर,व अपने आस-पास भी, देख चुका हूँ। पर फिर भी दुनिया इतनी बड़ी है की १६९ देशों में आस्था चैनल के सीधे प्रसारण के बाद भी कई तरह की बिमारियों से लोग मर रहे हैं। इसका कारण , कुछ लोगों को तो अभी पता ही नहीं है, पर अधिकांश लोगों को पता होने के बाद भी मर रहे हैं या डॉक्टरों के चक्कर लगाते रहते हैं, इसका कारण केवल और केवल बिना कर्म किए अविश्वास करना है।
दरअसल जैसे कुछ प्राणियों को कीचड़ में रहना- खाना पसंद होता है, उन्हें यह पता नहीं होता कि इसके बाहर रह कर अच्छा लगता है, क्योंकि उनकी प्रकृति ही वैसी होती है, इसी तरह मानव भी अलग-अलग प्रकृति के होते हैं। आज के व्यस्तता भरे जीवन में ज्यादातर का तो अपने में पनप रही बीमारी की तरफ ध्यान ही नहीं जाता।
सुबह एक से दो घंटे प्राणायाम करने में नींद तो बेशक त्यागनी पड़ेगी पर आजीवन स्वस्थ रहा जा सकता है। और अगर आस्था चैनल लगा कर किया जाए तो स्वामी रामदेव के ओजस्वी व क्रन्तिकारी विचारों से अपना, समाज का, देश का, दुनिया का भला करने की बातें भी सुनने को मिलें। धर्म के बारे में ज्ञान जायें। मुझे तो लगता है की पूर्व में अवतारों की तरह वर्तमान में स्वामी रामदेव भी अवतार ले कर भूलोक पर आ गए हैं। और वह दिन दूर नहीं जब उनकी एक आवाज पर पूरा देश उठ खड़ा होगा। यह केवल कहने के लिए नहीं कहा उनको देखने सुनने व उनके द्वारा बताये प्राणायाम करने से ही पता लगता है। वास्तव में गुड और गोबर अंधेरे में हो तो पहचानने के लिए उजाला करना ही पड़ेगा मतलब सुबह जल्दी उठना पड़ेगा फिर भी पहचान में नहीं आया तो चखना पड़ेगा। मतलब प्राणायाम करना पड़ेगा। इसलिए; दूर करे सब रोग, बाबा रामदेव का "प्राणायाम और योग"। अपने, देश के,और दुनिया के।

Tuesday, December 9, 2008

ईद

नारायण राणे
सुंदर सपना टूट गया
इसलिए बिल्ला खिसिया गया, खम्भा नोच रहा है।


"ईद" (पाकिस्तान की)
बकरे नही “बकरों”(दहशतगर्द)की माँ कब तक खैर मनाएगी,
तुम मनाओ न मनाओ
दुनिया तुमसे ईद मनवाएगी(पाले हुए बकरे कुर्बान कराने ही पड़ेंगे)।


"नेता"
नेता कैसा भी हो “धरती” पर रहे “दलालों” से न घिरे तो जीतेगा। पार्टी और नेताओं के नाम पर
वोट बार-बार नहीं मिलता।

Saturday, December 6, 2008

शाबास मीडिया

"शाबास मीडिया"
इतनी जिम्मेदार, जागरूक,जान-जोखिम में डालने वाली पत्रकारिता(न्यूज चैनल्स)
और पत्रकार केवल भारत में ही हो सकते हैं। निर्णयात्मकता के साथ-साथ
कहानी बनाने और प्रस्तुतीकरण में भी बेजोड़। बारीक़ से बारीक़ नजर ख़बरों
की तह तक ही नही बल्की जो ख़बर न भी हो उसे भी खबर बना देती है।
नक्शों द्वारा विस्तृत वर्णन;समझाने का ढंग ऐसा कि इसका लाभ हमारी
सरकार के
साथ-साथ आतंकवादी भी उठा सकते हैं। हमारी सुरक्षा कहाँ
कमजोर या चाक- चौबंद है या कौन सेलिब्रिटी बिना सुरक्षा गार्ड के है
सब पर इनकी नजर रहती है। ये सब(शायद) अभी तक निस्वार्थ भावः से ही करते होंगे।
इन्हें किसी की नजर लगे
या
इन पर किसी(भारत-सरकार)की नजर लगे।
क्या कहूँ?

Wednesday, December 3, 2008

बेचारा नेता

बेचारा नेता (मु०अ०नकवी सभ्य;शालीन)
"फँस गया मीडिया (टी० वी०न्यूज चैनल्स) प्रायोजित"
"फंदे में"
"नेताजी"
(नकवी जी और अन्य भी)
"ये न्यूज चैनल हैं" (पहले कलम की धार वाली कहावत थी अब कैमरा और माइक की मार वाली कहावत बनानी पड़ेगी)
"दोधारी तलवार" (विलेन को हीरो बना दे, हीरो को ०००००)
"वैसे"
"आपने सोचना था" (टी० वी० पर दिखने के लिए क्रीम-पावडर लगाने की परम्परा तो है ही और टाई-कोट तो केवल सभ्य लोग ही पहनते हैं , आप तो अनुभवी हैं )
की न्यूज चैनल्स पर दिखने के लिए सजना-संवरना पड़ता ही है
चाहे शोक- मार्च हो या
(लोकतंत्र विरोधी नारों के साथ)
शान्ति- मार्च ------ फ़िर बटन तो उनके (न्यूज चैनल)
ही हाथों में है । ये अपनी मर्जी की बात दिखायेंगे तभी तो शहीदों की चिताएं ठंडी भी नहीं हुई थी की इन्होंने उन्ही पर विवाद (बेमतलब का ) बढ़ा दिया ।(इनकी पत्रकारिता की जिम्मेदारी है )
जो बात ये कहते हैं की ग़लत है उसे बार-बार (शिल्पा-गेर चुम्बन मामला) दिखाते हैं।
क्योंकि इनकी मर्जी -------- और मर्जी किसकी होती है ------?
आपको पता होना चाहिए ।

Tuesday, December 2, 2008

दाउद

दाउद को सौंपे पाक
(भारत ने कहा )
अब उसकी खातिरदारी हम करेंगे
(कानूनी तौर पर )
नेता भी बना सकते हैं ।
उसके साथी
(जो कई साल पहले आ गए थे )
यहाँ अकेला महसूस कर रहे हैं ।
जल्दी भेजो
मुंबई में हमला
सभी नुकसान में रहे
आम आदमी, नेता, भवन, सुरक्षाबल, अधिकारी, कर्मचारी
यहाँ तक की ख़ुद आतंकवादी भी।
पर

कोई फायदे में भी रहा-----
कौन?
आप अंदाजा लगाइए में आपको सुझाता हूँ ,
१. उनके हाथ महामुद्दा लग गया है।
२. उनके सामने अपार विषय खुल गए हैं।( बहस पेश कराने को)।
३. कई तरह के अजीबोगरीब तरीकों से प्रस्तुतीकरण करके बात का बतंगड़ बनाने का पुराना तरीका अब अपडेट हो रहा है।
४. किसी भी साधारण बात या घटना को अपने तरीके से अर्थ बनाने में काफी माहिर होते है, मतलब, “ख़बर का गोबर- और गोबर की
ख़बर”बनाना इनको सबसे पहले सिखाया जाता है।
५.
नेता उनके सबसे ज्यादा शिकार होते हैं, क्योंकि बात का बतंगड़ नामक तीर ये उन्ही पर आजमा पाते हैं । हालाँकि कभी- कभी ये साधारण आदमी और सरकारी अधिकारी- कर्मचारी के भी कपड़े उतार देते है।
६.
अपने मन से किसी बात का अर्थ -अनर्थ करने के साथ ही ये विशेषज्ञ और विशलेषकों को बुलाते हैं ताकि लोग इन्हें ग़लत न समझें।
७. इस समय भारत में इनसे ज्यादा चालाक और नैतिक-अनैतिक कमाई करने वाला शायद ही दूसरा कोई हो, क्योंकि ये सगाई से लेकर शादी तक और तलाक भी दिखा देते है।
(अगर मोटी पार्टी हो)।
जी हाँ लगता है अब आप समझ गए (मैंने कुछ ज्यादा ही टिप्स दे दिए)
कुछ टी.वी. न्यूज चैनल आप भी यही समझे थे न?