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Friday, May 25, 2012

अभी तो मंथन जारी है !!!!


भारत निर्माण नहीं ! "हो रहा भारत मंथन"
एक पौराणिक कथा सब जानते हैं
; "सागर मंथन" की, जिसमे एक कुर्म (कछुए) की पीठ को आधार बनाया जाता है मंदरांचल पर्वत को उस पर टिकाया जाता है और शेषनाग की डोरी बनाई जाती है तब मंथन होता है और उस मंथन से कई उपलब्धियों के साथ ही अमृत की प्राप्ति भी होती है |
हालाँकि इस कथा का अपनी-अपनी दृष्टि के अनुरूप लोग अर्थ समझते हैं
, और हमारी पौराणिक कथाओं के कई-कई अर्थ होते भी हैं हम चाहें तो उनमे तार्किकता-वैज्ञानिकता ढूंढ़ लें, हम चाहे तो उनमे राजनीतिक जोड़-तोड़ ढूंढ़ लें, हम चाहें तो उनमे समाज सुधार कार्य ढूंढ़ लें,हम चाहें तो उनमे अध्यात्मिक-आस्थाओं का मर्म ढूंढ़ कर जनता को घंटों-घंटों तक सुना सकते हैं और अगर हम नास्तिक हैं या अध्यात्म को मानते ही नहीं तो इन्हें केवल कथा ही समझते हैं |
पर मेरा मानना है कि ये हमारा पौराणिक इतिहास है जिसे प्रतीकात्मक शब्दों-वाक्यों के साथ संसार के मनुष्यों को अनुभव और ज्ञान प्राप्त करने के लिए तब के बुद्दिजीवियों ने (जिन्हें हम ऋषि- मुनि कहते हैं) संसार के कल्याण के लिए लिपिबद्ध किया |
आज भी देश में जो चल रहा है उसे हम "भारत मंथन" कह सकते हैं जो उस "सागर
मंथन" की याद और उससे मिले अनुभवों से शिक्षा लेने को प्रेरित करता है | हो सकता है उस समय उस स्थान का नाम "सागर" हो इसलिए इसे "सागर मंथन" कहा गया हो
जैसा कि देवासुर संग्राम सृष्टि में हर समय चल रहा होता है, अनंत-असीम बाह्य ब्रह्माण्ड से लेकर व्यक्ति के अपने अन्दर तक विचारों-मान्यताओं-परम्पराओं-संस्कृतियों-समाजों-इतिहासों और क्रिया कलापों तक में हम देवासुर संग्राम को अनुभव कर सकते हैं | देव और असुरों का अर्थ तो हम सब जानते ही हैं; इनको विचारों और कर्म के परिप्रेक्ष में समझें तो समझने की दिशा विस्तृत हो जाती है | इन्हीं विचारों और कर्म के आधार पर संसार की संस्कृतियाँ-सभ्यताएं बनी हैं
तो साहब ! आज के इस "भारत मंथन" में भी वही कुछ हो रहा है जो "सागर मंथन" में हुआ था तब भी पहले असुर इसके विरोध में थे फिर सहयोग में आये और जब रत्न मिले तो फिर झगड़ बैठे | तब कुर्मावतार के रूप में भगवान विष्णु ने आधार उपलब्ध कराया था; आज स्वामी रामदेव जी ने आधार उपलब्ध करवा दिया है, तब मंदरांचल पर्वत को मंथन की धुरी (मथनी) बनाया था; आज भ्रष्ट व्यवस्था-राजनीती और उससे से कमाया काला धन जो सब समस्याओं बुराईयों का पहाड़ है उसको धुरी बनाया गया है, और तब भगवान शेषनाग को डोरी बनाया गया मथने के लिए, आज भारत का स्वाभिमान आदोलन इसकी डोर बन रहा है |
भारतीय संस्कृति-संस्कार का प्रतीक भारत स्वाभिमान आन्दोलन सभी भारतीयों का
स्वाभिमान जगा रहा है | इस डोर को एक तरफ से असुरों ने दूसरी तरफ से देवों ने पकड़ रखा है और मंथन जारी है | और इस वैचारिक मंथन से ही विभिन्न प्रकार के रत्न निकलेंगे; जैसे तब निकले थे, रत्न मतलब फल (परिणाम) प्राप्ति; काला धन तो आएगा ही, भ्रष्ट व्यवस्था भी सुधरेगी और देव संस्कृति रूपी सर्वश्रेष्ठ रत्न अमृत भी मिलेगा, लेकिन असुरों की असुरता से सावधान रहना होगा कि उन्हें इस अमृत की प्राप्ति न हो जाये |
समझने वाले समझ गए होंगे कि मेरा आशय वोटों की राजनीती से है
| आम जनता के रूप में समुद्र, कुर्म के रूप में स्वामीजी का बनाया वैचारिक आधार , मथानी के लिए मंदरांचल पर्वत के रूप में समस्याओं-वुराइयों और कुसंस्कृति का पहाड़, शेषनाग के रूप में भारत स्वाभिमान आन्दोलन की डोर | अभी तो मंथन जारी है |

Friday, May 18, 2012

"टेंशन पॉइंट" दैनिक जागरण में !!!!



जी हाँ कल 17 मई मेरे एक मित्र का फोन आया कि आज तो
आपके टेंशन पॉइंट का और आपका फोटो दैनिक जागरण में
छाया हुआ है | मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन जब दैनिक जागरण
समाचार पत्र मंगवा कर देखा तो वाकई बहुत अच्छा फोटो और
समाचार; दैनिक जागरण के पत्रकार श्री ब्रिजेश तिवारी ने
छपवाया था |
इसके लिए मैं दैनिक जागरण समाचार पत्र को और पत्रकार
श्री ब्रिजेश तिवारी को धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने टेंशन पॉइंट
की भावना और महत्त्व को समझा और सम्मान दिया |

Friday, May 11, 2012

भारत का मीडिया सकारात्मक होता तो ….. ! , भारतीयता से बैर क्यों ?

हम आये दिन समाचार देखते-सुनते हैं कि; ‘चिकित्सा विज्ञान ने नई खोज की 'मोटापे के लिए जिम्मेदार जींस को खोजा, या केंसर कैसे पनपता है उसकी कोशिका को जान लिया, या नींद अधिक क्यों आती है, या डाईटिंग करने से मोटापे पर काबू पाया जा सकता है,या अधिक खाने से बीमारियाँ होने का खतरा होता है,या किसी चिकित्सक ने सफलता से कोई ओपरेशन कर लिया,या किसी कंपनी ने किसी रोग की दवा खोज ली' आदि-आदि
इसमें भी अधिकतर समाचार विदेशी होते हैं जिन्हें कभी-कभी हमारे समाचार विक्रेताओं द्वारा विशेषज्ञों के साथ बैठ कर दिन भर घंटों-घंटों चर्चा का विषय बनाया जाता है कभी आँख को बचाने के लिए,कभी दिल को बचाने के लिए, कभी मोटापे से बचने के लिए और भी जाने कैसी-कैसी चर्चाएँ करायी जाती हैं। लाभ ….? “वही ढाक के तीन पात हमने कभी ये सुना कि; किसी का दिल बिना ओपरेशन के ठीक हुआ, हमने ये सुना कि मशीन पर खड़े होने से मोटापा कम हुआ, किसी का बंद कान खुलने या कमजोर दृष्टि को बढ़ते हुए सुना, पर फिर भी पिछले कई वर्षों से उसी पद्दति के गुणगान सुनते-देखते रहे हैं। हाँ ! विज्ञापनों में अवश्य अविश्वसनीय दावे देखने को मिल जाते हैं; "इन्हीं" माध्यमों से। पर हमने कभी नहीं देखा या सुना कि किसी की बी.पी या शूगर की दवाईयां छूट गयी हों
ये सब सुनना-देखना हमारी मज़बूरी है ! क्योंकि हमारामीडियापाश्चात्य संस्कृति के प्रति अनुकूल है, सकारात्मक है। "ये" भारत की कुछ व्यर्थ और गलत परम्पराओं के विषय को तो खूब परिहासात्मक तरीके से चर्चित कर सकता है, पर जो हमारी स्वस्थ और मानव के लिए कल्याणकारी संस्कृति की अच्छाईयाँ है उन्हें या तो अनदेखा कर देता है या फिर उन्हें इस तरह से अविश्वसनीय बना कर दिखाता है कि वैसा हो ही नहीं सकता।
अब गौर करिये ! पिछले कई वर्षों से योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में जो लोग कार्य कर रहे हैं उन्हें हमारा मीडिया कितना दिखाता है ? और ; अगर कभी दिखाया भी तो आधे-अधूरे ज्ञान या विदेशियों के बताये ज्ञान के विशेषज्ञों को बिठा कर खानापूर्ति सी कर दी जाती है। योग को केवल शारीरिक अभ्यास मात्र के रूप में प्रचारित कर योगासनों की जटिलता को जन साधारण के मन मस्तिष्क में बिठा दिया गया। जिससे आम जन योग-आयुर्वेद से दूर हो गए; इसे बहुत ही जटिल विद्या मानने लगे।

लेकिन जब स्वामी रामदेव जी को पता लगा कि योग में जो "प्राणायाम" है उससे रोग दूर हो रहे हैं तो उन्होंने उसकी और बारीकियां जानकर लोगों पर प्रयोग किये; जो सकारात्मक निकले, और जनता को उनसे मिलने वाले लाभ बिजली की तेजी से "रोगों से त्रस्त समाज" में फ़ैल गए। ये सब किसी विज्ञापन में नहीं हमें अपने आस-पास दिखाई देने लगे, अंधे को आँख- कोड़ी को काया मिलने लगी। दिल के मरीज, केंसर के रोगी,पेट के बीमार ठीक होने लगे; ये पूरी दुनिया में एक चमत्कार था, लेकिन हमारा राष्ट्रीय समाचार जगत इस पर मौन रहा। हमारे राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बुद्दिजीवी-पत्रकार इस पर चुप्पी साधे रहे; आज तक साधे हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में इतने बड़े चमत्कार ! जिस केंसर या दिल के रोगी को चिकित्सकों ने घर जाकर आराम करने और मृत्यु की प्रतीक्षा करने को छोड़ दिया कि दो-तीन माह का मेहमान है; वह बाबा जी द्वारा बताये प्राणायाम से स्वस्थ जीवन जी रहा है। हो सकता है कुछ आयुर्वेद की भी सहायता ली हो। लेकिन अपनी आयु तो बढ़ा ली न। जब ऐसे लोगों की संख्या हजारों-लाखों में होने लगी; मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि हमारा वो भारतीय मीडिया जो मानवता का दंभ भरता है,जो पर्यावरण के लिए अपनी चिंता दर्शाता है, जो बच्चों को स्कूल जाने के लिए मुहिम चलता है,किसी गरीब के लिए जनता से अपने खातों में दान मांगता है, दांतों की सुरक्षा के लिए विशेषज्ञों के साथ घंटे गुजारता है, या; जो सलमान की छींक, कैटरिना की चाल,शकीरा के लटके-झटकों पर अपना समय पैसे बटोरने में लगाता है (विज्ञापनों से), जो किसी धनाढ्य जोकरों की शादी पर अपने संवाद दाताओं को घंटो उसके दरवाजे पर....... इनके लिए क्रिकेट टीम को गधा कहने वाले चर्चा के पात्र बनते हैं, "उस" मीडिया ने आज तक इस "योग और प्राणायाम" या बाबा रामदेव के इन कार्यों पर कभी चर्चा नहीं करायी; जो लोगों को जिंदगी देने का काम कर रहा है। ये किसी "मृतप्राय नेता" को उन्हें ठग कहते हुए तो दिन भर दिखा सकता है पर उनकी उस ठगी की वास्तविकता को बिल्कुल नजरंदाज कर देता है क्योंकि उससे कईयों को जीवन दान मिल रहा है

हमारासमाचार जगतक्यों भारत और भारतीयता से बैर रखता है ? क्या इसीलिए वह योग और आयुर्वेद को नजर अंदाज करता है कि ये शुद्ध भारतीय विद्या है ? जबकि विदेशियों को इन पर पूरा विश्वास हो रहा है। और उनके नियम के अनुसार क्लिनिकल ट्रायल को भी बाबा रामदेव ने कर के दिखाया है और रिसर्च भी कर रहे हैं। फिर भी.......
समझ नहीं आता कि जिस भारतीय विधा को आज पूरा विश्व सर आँखों पर बिठा रहा है उसे हमारा मीडिया क्यों नजर अंदाज कर रहा है ? साथियो ! जरा सोचिये ! अगर हमारा यही मीडिया भारत-भारतीयता के प्रति सकारात्मक होता तो ....! पिछले सात-आठ वर्षों में कितना परिवर्तन स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो जाता। आज कई "प्रकार के ज्वरों" से लोग मारे जा रहे हैं,कभी किसी बीमारी का प्रकोप कभी किसी बीमारी का हमला, अगर बाबा जी और आचार्य बालकृष्ण द्वारा बताये विशेष औषधीय योगों का प्रचार होता तो.......! प्राणायाम का ही सही तरीके से प्रचार होता तो....... !
लेकिन ये मीडिया तो इतना बेगैरत है कि किसी की गलती को भी हमारी संस्कृति और रहन-सहन पर सवाल उठाने से नहीं शर्म करता। ' किसी ने कडवी लौकी का जूस पीकर जान देदी और मीडिया उसे रामदेव और भारतीयता का विरोध करने का हथकंडा बना ले' ऐसा दिखाई दे जाता है पर बाबा रामदेव जो लोगों को जिंदगी दे रहे हैं वह नहीं दीखता
किसी भी देश की धर्म ,संस्कृति सभ्यता को बनाये रखने के लिए उसके जो बुद्दिजीवी हैं वह सही मानसिकता के होने चाहिए अगर नहीं हैं तो.......... किसी से भी कुछ कहने से पहले उन्हें अपने गिरहबान में झांकना चाहिए। क्योंकि जब कभी इन पर हमला होता है तो ये अपनी अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देते हैं लेकिन इससे समाज का सहयोग इन्हें नहीं मिलता, कारण; वही है ये समाज के भले के लिए काम नहीं करते, अपितु शुद्ध रूप से अपने आर्थिक हित के लिए काम करते हैं पर; कुछ भी दिखाना या दिखाना इनकी प्रतिष्ठा को कम कर देता है।