कभी हम बचपन में क्रांतिकारियों की कहानियां पढ़ते थे तो अकसर गद्दारों का जिक्र आता था | तो हम सोचते थे कैसे होते होंगे वो गद्दार ? उन्हें क्यों नहीं समझ में आती होगी वो बात ? जो देशभक्त क्रांतिकारियों को समझ में आती है |
आज वैसा ही सब कुछ हमारे सामने घट रहा है हमें गद्दार देखने को मिल रहे हैं | और देख कर ये सोच कर दिमाग भन्ना जाता है कि तब आजादी की लड़ाई वास्तव मे कितनी मुश्किल रही होगी; जब ना फोन था ना फेसबुक था ना अन्य संचार के इतने साधन थे, ना त्वरित गति वाले आवागमन के साधन थे |
एक अंतर है तब के गद्दार विदेशियों की गुलामी को सही मान कर उनके द्वारा पोषित सम्मानित होते थे; अब के गद्दार अपनों द्वारा लुट भी रहे हैं अपना सब कुछ (संस्कार-चरित्र गया तो सबकुछ गया) गँवा भी रहे हैं फिर भी उन्हें सही मान कर उनके ही पीछे चल रहे हैं |
अब के गद्दार बहुत चालक हैं |
मतलब ये है कि वो अपनी गलती छुपाने को; चाहता था कि सभी नकटे बन जाएँ | वही हाल आज के गद्दारों का है | जो कुसंस्कृति के समर्थक हैं, जिनको इस व्यवस्था से हराम का खाने को मिल रहा है, ऐसे लोग; ये पता होते हुए भी कि वो गलत हैं; आज गद्दारी कर रहे हैं उनकी देखा-देखी साधारण व्यक्ति भी उनका अनुसरण करके अपना ही नुकसान कर रहा है | कहीं कहीं उसकी मज़बूरी भी है कि उसे इनका समर्थन करना पड़ रहा है |
इतिहास स्वयं को दोहरा रहा है.....
ReplyDeleteस: परिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं.....
लेकिन तब लोग इतने पढ़े-लिखे न थे, इतने कुतर्की न थे, इतने विधर्मी न थे. यदि होते तो आजादी न मिलती.
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