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Monday, August 14, 2017

ये वादियाँ ये फ़िज़ाएं बुला रही हैं तुम्हे .. साहिर लुधियानवीं ने ये गाना शायद हमारे उत्तराखंडी लोगों के लिए ही लिखा हो


आज अपने उत्तराखंडी भाई बहनों से एक आह्वान करने को मन कर रहा है ....
ये वादियाँ ये फ़िज़ाएं बुला रही हैं तुम्हे
खामोशियों की सदाएं बुला रही हैं तुम्हे..      
मेरा कहा ना सुनो दिल की बात तो सुनलो
हर एक दिल की दुआएँ बुला रही हैं तुम्हे ...
#साहिर_लुधियानवीं ने ये गाना शायद हमारे #पलायन किये उत्तराखंडी लोगों के लिए ही लिखा हो ...
जी हाँ खुद के पलायन और बूढ़े माँ बाप के स्वर्गवासी होने के बाद #खंडहर होते मकानों से खामोशियों की सदाएं बुला रही हैं तुम्हें |                                         

 जाओ भाई विशेषकर जो आठ दस हजार की नौकरी या शहरी चमक धमक के लिए बड़े शहरों में बहुत ही 
कष्टकारी जीवन व्यतीत कर रहे हैं वो तो जरुर आओ ...       
बहुत रोजगार हैं यहाँ जिससे आप पांच दस पंद्रह बीस #हजार रूपये या अधिक भी मासिक कमा सकते हो |
इतना तो आप यहाँ भी अपना काम करते हुए कमा सकते हो सैकड़ों काम हैं यहाँ अन्य प्रदेशों से लोग यहाँ आकर कमा रहे हैं ऊँचे ऊँचे #महल खड़े कर रहे हैं
क्या उनके बच्चे यहाँ नहीं पढ़ रहे क्या वो यहाँ पर नहीं रह रहे ?
बड़े आराम की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं वो इस स्वर्ग में |
पर 
हम अपने मन से नौकरी और शहरी चकाचौंध का कीड़ा नहीं निकाल पा रहे क्यों ? 
और गाहे बगाहे उन्हें दोष देते हैं कि वो हमें या पहाड़ को लूट रहे हैं |
और जब डींग हांकने का समय मिलता है तो बड़े गर्व से बताते हैं मेरे पिताजी चाचा जी या दादा जी लाखों की मिर्च लाखों के आम हजारों की चौलाई हल्दी गुड नमक आदि का व्यापार करते थे |
यकीन मानो #पलायन का कारण सरकार की ओर से केवल पच्चीस प्रतिशत है !
75 प्रतिशत पलायन तो हमारी मानसिकता के कारण है ! 
और ये कहना भी कि यहाँ रोजगार की कमी है बिलकुल झूठ है सैकड़ों रोजगार हैं कई तो मैं गिनवा सकता हूँ हाँ प्राइवेट नौकरी की जरुर कमी है वो भी हो जाएगी अगर लोग यहाँ आकर रहने लगेंगे तो |
अब तो पढ़े लिखे लोगों के लिए सरकारी नौकरी भी कम नहीं हैं जब मैं दिल्ली छोड़कर आया था तब (उत्तर प्रदेश के समय) सरकारी #नौकरी के बराबर होती थीं |
लेकिन पढ़े लिखे लोग भी जब सरकारी नौकरी मिल जाती है तो अपना स्थानांतरण शहर की ओर कराने के लिए लाखों की #रिश्वत देने को तैयार रहते हैं पर अपने घर गाँव इलाके में नहीं रहना चाहते ! छोड़कर चले जाते हैं अपने स्वर्ग को ! आखिर क्यों ? पलायन की मानसिकता |
काम ...?
तो काम मैं आपको बता दूँ .....रोज कम से कम एक एक दरवाजे 
(#रामनगर_हल्द्वानी_कोटद्वार_देहरादून_हरिद्वार_टनकपुर_पिथौरागढ़ आदि) से हजारों की संख्या में विभिन्न सामान के सप्लायर पहाड़ के बाजारों में अपना सामान सप्लाई करने आते हैं आप भी कोई चुन सकते हो | #बिसाता_खेल_बेकरी_मोबाइल_कंप्यूटर_स्टेशनरी_रेडीमेड_टाफी_गोली_बिस्कुट_आचार_मुरब्बे_जूते
#चप्पल आदि और भी बहुत कुछ तो सप्लाई के #बिजनेस में है |
फिर #कृषि_बागवानी_डेयरी_फार्मिग_ मशरूम_ जैविक सब्जियों में अपार संभावनाएं हैं !
कृषि आधारित उद्योग सहकारी समिति महिला समित के माध्यम बहुत संभावनाएं हैं आप व्यावसायिक तरीके से कई प्रकार की बड़ियाँ भुजे(पेठे) ककड़ी, लौकी, पिनाऊ (गढ़ेरी) आदि की बनवा सकते हैं कईयों को रोजगार भी मिलेगा बस बाजार बनाने और उत्पादन कुछ मेहनत तो पड़ेगी |
केवल एक भैंस के दूध से ही पांच हजार रूपये महीना कमा सकते हैं और डेयरी फ़ार्म से तो कईयों को नौकरी भी दे सकते हो |
आप अपने हाथ के तकनीकी काम सीख कर भी यहाँ आकर कमा सकते हो जिसको अधिकांस बाहर से आये लोग ही करते हैं जैसे वैल्डिंग गेट ग्रिल दरवाजे बनाना, कारपेंटर (लकड़ी) का काम, हेयर ड्रेसर, राज मिस्त्री, मकानों में पुट्टी पेंटिंग रंग रोगन, प्लंबिंग, बिजली, बेकरी उद्योग केक पेस्ट्री आदि, आइसक्रीम, स्क्रीन प्रिंटिंग का काम, स्कूटर मोटर साइकिल रिपेयर बड़ी छोटी गाड़ियों की मरम्मत आदि के कुशल मिस्त्री (टैक्नीशियन) की यहाँ बहुत जरुरत है  | 
काम कोई छोटा बड़ा नहीं होता मकसद उससे रोजी रोटी चलना चाहिए दूसरों की चाकरी में भी तो हम कुछ भी करने को तैयार रहते हैं | 
पहाड़ों में निजी विद्यालयों में अच्छे अध्यापको की कमी रहती है विभिन्न विषयों में आप बेहतर वेतन में साथ ही #ट्यूशन पढ़ाकर अच्छा रुपया कमा सकते हो करने वालों के लिए अब बहुत से काम हैं अब यहाँ भी पर्याप्त पैसा हो गया है यहाँ कोरियर सर्विश नहीं मिल पाती आप वह कर सकते हो अब तो सरकार ने सी एस सी सेंटर खोल दिए हैं फिर भी व्यक्तिगत तौर पर लोग दूर ग्रामीणों के बिजली पानी टेलीफोन आदि के बिल भर कर उनसे अपनी सेवा के रूप में कुछ धन लेकर भी व्यक्तिगत सेवा दुकान चला रहे हैं अभी मेडिकल से जुड़े बहुत से व्यवसाय हैं क्या क्या गिनाऊं महिलाओं के लिए लेडीज टेलर ब्यूटी पार्लर तक बाहर के लोग खोले बैठे हैं जिसको हमारी बहनें बहुत अच्छे से कर सकती हैं लेकिन ......पलायन की मानसिकता |
अभी सरकार #सोलर_एनर्जी के क्षेत्र में स्वयं के रोजगार को बल दे रही है जिसमे कुल मिलाकर नब्बे प्रतिशत तक सरकार धन सब्सीडी के रूप में दे रही है बिजली बनाओ सरकार को दो काम तो सरकार के इंजिनियर आदि कर के जायेंगे आपने देखरेख करनी है | #टूरिज्म में होम स्टे योजना का लाभ उठाओ अपनी टूरिज्म कंपनी खोल कर लोगों को उत्तराखंड घुमाने का काम में बहुत संभावनाएं हैं ...बाकी ठेकेदारी तो यहाँ सदाबहार रोजगार है ही किसी नेता को पकड़ लो या बिना नेता के भी ठेकेदारी में अपार संभावनाएं हैं |
क्यों अपने गाँव पहाड़ को दूसरों के हवाले कर रहे हो ?
घर पर नहीं रहना माँ बाप के साथ नहीं रहना इसमें बहनों(पत्नियों) ने भी बहुत बड़ी भूमिका निभानी होती है वह नहीं चाहती घर पर #सास_ससुर के साथ रहे एकल परिवार में अपनी मन मर्जी के मालिक बनकर रहने की इच्छा , साथ ही ये डर भी कहीं सास के साथ खेत पर गुडाई निराई के लिए जाना पड़ जाये या कहीं गोठ से गाय भैंस का गोबर निकालना पड़ जाए और फिर ये सब करे तो लोग कहेंगे सास इतना काम कर रही है और बहु बैठे बैठे खा रही है इस सब से तो बच्चो की पढाई का बहाना बनाओ हल्द्वानी रामनगर देहरादून दिल्ली को निकल लो वर्ना पारिवारिक जीवन में असंतोष फैलाएगी | फिर बच्चे चाहे असली दूध मिले वो असली दही छाछ का स्वाद ही जान पायें अपने जीवन में तरस जाएँ ...... शहरों में उनका भी जीवन जीवन कहाँ केवल #धन_संपत्ति से जीवन #जीवन नहीं होता अगर आप अपनी जड़ों से कट गए तो | 
जीवन तो वैसे ही छोटा होता जा रहा है तीस साल के युवाओं को वो बीमारियाँ होने लगी जो अस्सी साल के बुजुर्ग को होती थी कहाँ है उसका जीवन क्योंकि वो शुद्ध खान पान वो हवा तो मिली नहीं ना जो गाँव में होती थी ?
आना पर शराब पीकर बरबाद मत होना क्योंकि जैसे ही कमाई शुरू हुयी हमारा पहाड़ी सबसे पहले शराब पीना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझने लगता है अपने साथ दो और लोगों को बरबाद करता है फिर बदनाम होता है पहाड़ पहाड़ी और शराब |
कमसेकम वो लोग जो सरकारी सेवा से निवृत्त हो रहे हैं वो तो अपने घर गाँव में आकर रह सकते हैं वो अपने को साठ बासठ साल के बाद क्यों निकम्मा समझने लगते हैं समझ नहीं आता ! 
जबकि वो और बीस साल तक स्वस्थ सक्रिय रह कर अपने घर गाँव को आबाद रख सकते हैं अपने धन का सदुपयोग कर यहाँ रोजगार को बढ़ावा दे सकते हैं जब यहाँ जनसँख्या घनत्व बढेगा तो सुविधाओं के लिए भी सरकार को सोचना पड़ेगा देना पड़ेगा चाहे अस्पताल में डॉक्टर हो या स्कूलों में मास्टर या गाँव तक लिंक करता मोटर मार्ग हो |
तो साथियो मत छोडो पहाड़ को दूसरों के भरोसे | 
इन पहाड़ों ने अतीत में हमारे पूर्वजों को आश्रय दिया था हम उन्हें सराहते हैं कि उन्होंने धर्म बचाया संस्कृति बचायी और इसे स्वर्ग सा बनाया ...भविष्य में जब हमारे वंशजों को इनकी जरुरत पड़ेगी तो यहाँ सबकुछ बंजर खंडहर देखकर वो हमें कोसेंगे ! उन वंशजों में बहुत से हम ही पुनर्जन्म प्रक्रिया में पैदा हुए होंगे |
पलायन के लिए कोई सरकार को दोष देता है कोई हालात को तो कोई बच्चों की शिक्षा चिकित्सा सुविधाएँ होने को; जो आंशिक ही सही है बड़ी बात तो ये है कि अपनी (उत्तराखंड की ) मानसिकता ही पलायन की है या पहाड़ की नियति ही पलायन है यहाँ का मिटटी पानी जवानी सबकुछ पलायन करता है और मैदानों को जाकर संवारता है | इन्हें बिना बांध बनाये नहीं रोका जा सकता | और बाँध हमें स्वयं बनाने होंगे वो सरकार के हाथ मे नहीं हैं हमें अपने मन में बांध बनाने होगे स्वयं के रोजगार करने के लिए मेहनत करने के लिए सब्र करने के लिए शराब पीने से खुद को रोकने के लिए और मन से नौकरी का भूत निकालना पड़ेगा  चकाचौंध का भूत निकालना पड़ेगा
एक बार जरुर इन विचारों को पढ़कर विचार करें और अगर सही लगे तोशेयर भी करें कुछ तो ऐसे लोग होंगे जो इसपर गंभीरता से सोचेंगे ...चलो अब इस गीत को पूरा सुनते यकीन मानो एक एक लाइन दिल को झकझोरती है
तरस रहें हैं जवां फूल होंठ छूने को
मचल-मचल के हवाएं बुला रहीं हैं तुम्हें  
ये वादियाँ ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हे
तुमहारी ज़ुल्फों से खुशबू की भीख लेने को 
झुकी झुकी सी घटाएं बुला रही हैं तुम्हे 
खामोशियों की सदाएँ ...
हसीं चम्पाई पैरों को जबसे देखा है
नदी की मस्त अदाएं बुला रही हैं तुम्हे            
खामोशियों की सदाएँ ...
ये वादियाँ ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हे ...