सदियों से सोया ;
“मैं” अन्धकार में।
कोई आयेगा;
मुझे जगायेगा,
जैसे ;
इसी इंतजार में।
(खैर…! मैंने,
कबूतर को उठाया;
तो वह "थोड़ा फड़फड़ाया",
उसके फड़फड़ाने से,
“ये बच जायेगा” ;
मैंने, "कुछ अंदाज" लगाया
)।
वैसे तो बचपन से घायल पक्षियों को बचाने के बहुत से अवसर मिले एक दो बार तो दिल्ली में लालकिले के सामनेजैनमंदिर (पक्षियों का अस्पताल) भी उन्हें लेजाने का अवसर आया क्योंकि नजदीक थे ; पर तब ब्लोगिंग नहींहोती थी; और मैं बिना शादी और बच्चे के था । स्वयं बच्चा था । कल किसी पक्षी को बचाने का अवसर मिला तोवाकई दिल को सुकून मिला । कभी मैंने इन पक्षियों के कारण ही पतंग उड़ना बहुत कम कर दिया था। बिलकुल नके बराबर। आज तो पतंग उड़ाने का समय नहीं मिलता और फिर मैं पहाड़ों में रहता हूँ जहाँ पतंग उड़ाने के अनुकूलहवा भी नहीं होती । अगले बरामदे में कबूतर घायल, पिछले बरामदे बिल्ली और उसके बच्चे, दोनों का भला होनाचाहिए । कल शाम जब मैं घर पहुंचा ,
बरामदे के कौने में कोई पक्षी;"दुबका"सा दिखा।
पहले नजर पड़ी मेरे बच्चे की,
आश्चर्य मिश्रित स्वर निकला;
'पिताजी ! यह "कबूतर","नीचे क्यों है बैठा' ।
अँधेरा था, धुन्धलका सा;
कुछ – कुछ, जरा ।
ध्यान से, रौशनी करके;
जब मैंने देखा ।"एक कबूतर";
डरा-सहमा सा,
"निरीह",
पंख; कुछ लहू से सना ।'पिताजी इसे ऊपर रख दो,
वरना; रात को बन जायेगा;
बिल्ली का निवाला' ।
बच्चे का डर मिश्रित स्वर;
फिर निकला ।'पिछले बरामदे में,‘बिल्ली ने बच्चे देकर;
अपना डेरा है डाला’;
पत्नी ने भी तभी बताया।
एक तरह से;
"मुझे चिंता में डाला"।
खैर…! मैंने,
कबूतर को उठाया;
तो वह "थोड़ा फड़फड़ाया",
उसके फड़फड़ाने से,“ये बच जायेगा” ;
मैंने, "कुछ अंदाज" लगाया ।
और; उसे उठा कर;
घर के अन्दर ले आया,
कहाँ रखूं ... ?
कुछ; समझ नहीं आया ।
कई स्थानों के बारे में;
पत्नी व बच्चे ने भी सुझाया ।
अपने बंद पड़े स्नानघर में ,"निरापद स्थान";
समझ रख आया ।
पानी का कटोरा,
एक मुट्ठी चावल;
मेरा बेटा रख आया ।
अब ! "शायद ये बच जाये";
सोच कर,
"हम तीनों ने सुकून पाया"।
सुबह देखा,
सबसे पहले मैं ही उठा,
पक्षी कुछ स्वस्थ सा लगा ।
पत्नी ने कहा,
'अब इसे छोड़ देना चाहिए'।
मैंने कहा,
"कुछ और स्वस्थ";
हो जाना चाहिए ।
पत्नी ने पूछा,
'बिल्लियों को भगा दूँ' ।
मैंने कहा,
बच्चों को बड़ा होने दो।
कबूतर भी स्वयं उड़ेगा ,
बिल्लियाँ भी स्वयं चली जाएँगी।
"किसी की भी जरुरत में,
काम आना चाहिए" ;
यही है "खुशहाल" ,
"जिन्दगी का फलसफा"।
“नक्सल समस्या का समाधान” इस तरह नहीं होगा जैसे हमारे नेता या सरकार चाह रही हैहै है लिए हमारे राजनैतिक और सामाजिक नेताओं को आगे आना होगा। आगे आने का मतलब ! ‘ऐसे नहीं जैसे अभी तक आते रहे हैं’। ‘ टी.वी.स्टूडियो में बैठ कर, उनके समर्थक बनकर, या पत्र-पत्रिकाओं में उनके समर्थन में लेख लिख कर आते रहे हैं’।
“आगे आने का मतलब”प्रत्यक्ष रूप से आगे आना होगा, सेना को मोर्चे पर भेजने के साथ-साथ स्वयं भी उसके आगे लगना होगा । अरे भई जब समर्थन करना है तो मैदान में उतर कर करो न ! सरकार को नियम बना कर उन सभी की सूचि बनानी चाहिए, “जिनका नैतिक समर्थन इन दुष्टों को है” फिर सेना के आगे-आगे इन्हें
समूह में भेजना चाहिए। "जिनके लिए ये दलाली करते हैं" उन्हें भी तो पता लगना चाहिए कि उनके समर्थक कौन-कौन हैं।
'दूसरे के सम्बंधियो के मरने पर वैसा दुःख नहीं होता जैसा अपने सम्बन्धी के मरने पर होता है। और किसी सम्बन्धी के मरने का जो डर होता है; उससे कहीं ज्यादा अपने मरने का डर होता है' ।
तो साहब हमारा सरकार से निवेदन है; कि यह नियम बनाया जाये कि नेताओं को सुरक्षा बलों के आगे-आगे चलना चाहिए मोर्चे पर, फिर वहां पर वह अपना 'समर्थन और विरोध' जो जिसके पक्ष में करना चाहे करें। इससे दो लाभ होंगे। देशवासियों का अपने नेताओं पर विश्वास बढेगा। ‘ जो दुष्ट (नक्सलवादी) हैं वह भी अपने नेताओं-समर्थकों पर विश्वास करेंगे, और जो सज्जन हैं वह भी।
दूसरा;(लाभ) "देश में जो बौद्धिक नक्सलवाद चल रहा है", ‘ताल ठोकने के बदले गिड़गिड़ाने लगेगा’ उन्हें अपने बिसराए हुए मां-बाप, भाई-बहन , नानी-दादी के वंसज याद आ जायेंगे । मानवता का सही अर्थ समझने के लिए उनकी बुद्धि के कपाट खुल जायेंगे । इनकी बुद्धि जिस परदे से ढंकी है वह हट जायेगा। और यकीन मानो कई पीढ़ियों तक उनके संस्कार शुद्ध रहेंगे ।
मैं बहुत से ब्लॉग देखता हूँ जो देशभक्ति से परिपूर्ण होते हैं | और न केवल देश-समाज-संस्कृति-संस्कारों के उत्थान में लगे हुए हैं; अपितु सभी से इसमें सहयोग क़ी अपेक्षा करते हैं और आह्वान भी करते हैं | इन सबके लिए मैं एक बात कहना चाहूँगा कि; जिस कार्य को आप और हम करना चाह रहे हैं, और पिछले सौ-दो सौ सालों से अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने समय-समय पर इस तरह के आन्दोलन चलाये और कमोबेश सफलता भी प्राप्त करी। पर फिर भी आज हमारी भारत माता की दशा इतनी बुरी है कि भारत में रहने वाले सभी देशभक्त, 'संस्कारवान लोग देश व संस्कृति - समाज का भला चाहने वाले' व्यथित हैं | कैसे भला हो , इसी प्रयास में अपनी-अपनी डफली बजा रहे हैं । दरअसल सैंतालिस के बाद देश की कमान संस्कारवान नेताओं को नहीं मिली । हम और आप जैसे लोग जो थोडा बहुत संवेदनशील हैं ; अपना जितना भी प्रभाव रखते हैं उतना, उसे सही करने की सोचते हैं | पर मेरी समझ से यह उसी तरह से है; "जैसे किसी विशाल वृक्ष पर उससे भी विशाल झाड़-झंखाड़ पैदा होकर उसे ढँक लेते हैं और हम एक ब्लेड लेकर उसे काटने-हटाने का प्रयास करें" | आपका -हमारा प्रयास तो सराहनीय है पर स्वयं के लिए भी विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि हम उस ब्लेड या छोटे से औजार की क्षमता जानते हैं ,जो कई बार टूट कर हमें भी लहू लुहान कर देता है । मेरी समझ से उसे काटने के लिए एक मजबूत कुल्हाड़ी की आवश्यकता होती है | अगर एक तरफ से कोई उस मजबूत कुल्हाड़ी से उन झाड-झंखाड़ रूपी बुराईयों पर प्रहार करे तो, दूसरी तरफ से केवल खींचतान करके भी कोई अपना सहयोग उससे ज्यादा कर सकता है; जितना वह ब्लेड से करने की कोशिश करके करता है |यहाँ पर ये ध्यान देना जरुरी है कि वह खींचतान झाड़-झंखाड़ की करे; नाकि कुल्हाड़ी चलाने वाले की | वैसे वह हम लोग कर ही रहे हैं | हम लोग केवल झाड़-झंखाड़ की खीचतान ही तो कर पा रहे हैं | तो जनाब वास्तव में बात यह है कि"आपके विचारों से पूर्णतया सहमति रखते हुए", 'एक बात पर ध्यानाकर्षण चाहूँगा, कि आज के परिप्रेक्ष में जितना प्रखर व्यक्तित्व स्वामी रामदेव जी जैसा है जो इन सब बुराईयों और भ्रष्टाचार के विरुद्ध पूरी प्रखरता से और पूरे दमखम के साथ न केवल बोल रहे हैं अपितु गाँव-गाँव जाकर जन-जन को भी जाग्रत कर रहे हैं | इस समय पूरे देश में सवा लाख तो योग कक्षाएं चल रही हैं |और भारत स्वाभिमान के सदस्यों की संख्या भी लाखों में पहुँच चुकी है | वह अपनी कुल्हाड़ी को इतनी बड़ी और मजबूत बना कर इस कार्य में लग गए हैं कि आम जन को भी अब उन पर विश्वास हो गया है। सब यही कहते हैं कि अब तो अगर कोई भला कर सकता है तो बाबा रामदेव हैं |ऐसे में अगर हमारे बौद्धिक ब्लोगर बंधू उन्हें अनदेखा करें तो समझ आना मुश्किल है । मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि वैसे तो शायद आप अनभिज्ञ नहीं होंगे अगर हैं भी तो स्वामी रामदेव जी से, उनके संगठन से जुड़िये और "उनकी कुल्हाड़ी को ही शक्ति प्रदान कीजिये" | ऐसी सभी शक्तियों को इस समय भारत स्वाभिमान आन्दोलन का साथ देकर अपने प्रयासों को सार्थक रूप देना चाहिए |