जैसे राजनीतिक नेता अपने प्रति लोगों को आकर्षित करने के लिए कोई विवादित और संवेदनशील विषय को बिना गंभीरता के; केवल वोट लेने के लिए अपना मुद्दा बनाते हैं और अपने समर्थक और अपनी सभाओं में भीड़ जुटाते हैं, वैसे ही ये सब हथकंडे हिंदी के ब्लौगर भी अपनाते हैं।
इसमें देखने में आ रहा है की सबसे संवेदनशील मुद्दा वही है, जो राजनीति का पसंदीदा मुद्दा है, “धर्म”।
“धर्म” ब्लौगिंग का मुद्दा बने यहाँ तक तो ठीक है, लेकिन; धर्म के “भ्रम” में "जो अधर्म है" उसको; एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए मुद्दा बनाया जाना तो गंभीर ब्लौगिंग नहीं है। और इसलिए तो और भी गलत है कि इससे कुछ टिप्पणियां अधिक होंगी या फौलोवर बढ़ेंगे।
ब्लौगर भी समाज का ही एक व्यक्ति है; एक-दुसरे पर धर्म के नाम पर खींचातानी करने से उसके आस-पास के समाज पर उसके द्वारा बुरा असर भी पड़ सकता है ।
क्योंकि कोई भी बुराई पहले मन में जन्म लेती है फिर क्रियान्वित होती है।
सभी धर्मों-संस्कृतियों के मूल में जो वास्तविक धर्म है; वह सबका एक ही है। अन्य जो व्यवहार जनक और दिखने वाले कर्म हें; वह देश काल परिस्थिति वश अलग-अलग हो गए हैं, जैसे पूजा पद्दति, रहन-सहन, भाषा-संस्कार,मान्यताएं-परम्पराएँ और, “कुछ बुराईयाँ और अच्छाइयां भी”।
ब्लौगिंग , चाहे कहानी- कविता हो या विचार, गजल हो या गाने या हो कोई पाककला, एक सकारात्मक संदेश देने वाली हो तो सार्थक है; चाहे दस झने ही देखें, और कोई टिप्पणी न मिले तब भी, वरना निरर्थक और नकारात्मक।
यहाँ भी कुछ टीआरपी के भूखे है जो विवादस्पद लिख कुछ पाठक बटोरना चाहते है पर वे यह नहीं सोच पाते कि इससे वे देश व समाज का कितना नुकसान कर रहे है | ईश्वर उनको सदबुद्धि दे !
ReplyDeleteइस पोस्ट में आप अपने उद्धेश्य में सफ़ल हुये ! दे दिया टेंशन धार्मिक पोस्ट लिखने वालों को!
ReplyDeletekafi acchi chot di hai aapne .
ReplyDeletelekin issi bhi ek bhram hota hai aap sabhi jin 2 blogron ke bare men baat kar rahe hai jinka blog yuddh sabhine dekha or yeh bhi samjha ki kon sahi or kon galt tha par fir bhi kisi ka naam nahi leni ke kaaran bhi yeh dharna to banti hi hai ki dono hi galat the jabki unmen se ek ke lekh ko aapne kulish ji ke samaan bataya tha
बिल्कुल सही कहा....टिप्पणी कोई पैमाना नहीं साथर्कता का...मुद्दा संदेश है वो सार्थक होना चाहिये.
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