किसी व्यस्ततम बाजार में, सब, अपने-अपने क्रियाकलापों में व्यस्त हों भीड़ संभल कर चलने में अपना ध्यान लगाये, चलने में व्यस्त हो ।
ऐसे में किसी का भी ध्यान लोगों के साधारण क्रियाकलापों पर नहीं जाता, ऐसे में किसी ने अपनी ओर सबका ध्यान आकर्षित करना हो तो क्या करे ? जोर-जोर से चिल्लाये या कुछ अजीबोगरीब हरकतें करने लग जाये, अगर फिर भी लोग तवज्जो न दें तो ! साधारणतः हमारे-तुम्हारे जैसा व्यक्ति तो थक-हार कर चुप हो जायेगा, पर जिसे इस तरह की बीमारी हो कि लोगों का ध्यान अपने पर केन्द्रित करवाना ही हो वह नंगा होकर उल-जलूल बोलने लगेगा । और भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसा ही होता है ।
पता लगा कि इस तरह की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति देने वाले का तो खर्चा-पानी ही इससे चलता है । जो अपनी "कमाई के लिए कुछ भी करेगा" वाली तर्ज पर वो सबकुछ करते-कहते हैं जिसे हमारे यहाँ वर्जित माना जाता है।
ये पश्चिमी मानसिकता (या बीमारी) ही है कि "नाम और दाम" के लिए कुछ भी किया-कहा जाये सब ठीक होता है। ये बीमारी इतनी खतरनाक होती है कि इसके बीमार लोग अपने माता-पिता तो क्या अपने चेहरे व शारीर को भी घाव दे देते हैं। इनके लिए देश केवल एक जमीन का टुकड़ा होता है । ये अगर ऐसा न करें तो इनकी तरफ कौन ध्यान देगा कैसे इन्हें "बुकर प्राईज" या अन्य विदेशी उपहार मिलेंगे ? कैसे इनका खर्चा- पानी चलेगा ? खर्चा-पानी चल भी जाता हो तो; कैसे इनके बीमार मन को सकून मिलेगा ?