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Wednesday, May 14, 2014

विकास के नाम पर चुनाव का ढिंडोरा एक साजिश के तहत पीटा गया है वर्ना इस बार का चुनाव तथाकथित देशभक्ति (सेकुलरिज्म) और वास्तविक राष्ट्रवाद का देवासुर संग्राम था इसीलिए इसे "धर्म युद्ध 2014" नाम दिया गया।

लोग हार जीत को पार्टियों की नजर से देख रहे हैं ! मतलब ऊपरी तौर पर देख रहे हैं !
 अगर वास्तव मे सही विश्लेषण किया जाएं तो ……  
तो ये हार है !
तथाकथित सेकुलरिज्म की।   
ये हार है ! खोखले विकासवाद वाद की ; जिसमे आंकड़ों का खेल ही सरकार की कामयाबी मान लिया जाता है। 
ये हार है ! खोखली देशभक्ति की ; जो सिनेमा हॉल से बाहर निकल कर भुला दी जाती  है। 
ये हार है ! भ्रष्टाचार को सदाचार मानने वालोँ की। 
ये हार है ! उन विदेशी कम्पनियों, विदेशी सरकारोँ, विदेशी सस्थाओं की जो भारत मे अपनी संस्कृति को बढ़ावा दे रहीं हैं।  

विकास के नाम पर चुनाव का ढिंडोरा एक साजिश के तहत पीटा 

गया है वर्ना इस बार का चुनाव तथाकथित देशभक्ति (सेकुलरिज्म) 

और वास्तविक राष्ट्रवाद का देवासुर संग्राम था इसीलिए इसे "धर्म 

युद्ध 2014"  नाम दिया गया।   

इस चुनाव में बहुत कुछ विशेष हुआ है ! उसका कारण मानो या ना मानो  ! भारत स्वभिमान आन्दोलन और परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज का  अथक परिश्रम रहा है। उनके ही प्रयासों से मोदी जी जैसा तैयार नेतृत्व सर्व मान्यता, सर्व व्यापकता पाकर चन्द्रगुप्त की भूमिका निभाने को पूरे पराक्रम से 300 से ज्यादा सीटें जीत कर भारत को पूनः विश्व गुरु बनाने का गौरव प्राप्त करेंगे। 
प पू. स्वामीजी ये कह कर  अपने सभी अनुयायीयों को समझाते रहे हैं कि जैसा नेतृत्व देश को वर्तमान मे चाहिए उसे तैयार करने मे पचास साल लग जाएँगे जो क्षमता , जो गुण , जो दृढ़ता , जो निर्भीकता इतनी बड़े देश के प्रधान मन्त्री मे होने चाहिए वो सब अधिकांस नरेन्द्र मोदी मे हैँ। इसीलिए नरेंद्र मोदी को देव इच्छा मान कर सभी स्वाभिमानी भाई - बहन स्वामी जी आदेश को पूरा करने मे लग गये।  
   अब इन्तजार है फैसले की घड़ी का; इस उम्मीद के साथ कि कांग्रेस अपने सफाये की ओर है, और ये श्राप उसको चार जून २०११ को राम लीला मैदान में मिला था जब उसने वहाँ बर्बरता का नंगा नाच नाचा था।     
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