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Sunday, April 27, 2014

इनके लिए तो स्वामी रामदेव जी सबसे बड़े दुश्मन हैं ! क्या करें कैसे बदला लें ! मौके की तलाश मे थे !

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बड़ी बेचैनी है स्वामी रामदेव जी के विरोधियों में ! विशेषकर कांग्रेस मे इतनी खिसियाहट है कि अपने बालों के साथ अपना चेहरा भी नौंचने लगती है ! 
कि रोक तो नहीँ पाए हम इन स्वामी जी को; लगभग पूरे चुनाव निकल गये हैं !
इन स्वामी जी ने बहुत ज्यादा नुकसान इन्हें (कांग्रेस +)पहुंचा दिया है !
इसलिए कम से कम बदला तो लिया जाये। 
इनके लिए तो स्वामी रामदेव जी सबसे बड़े दुश्मन हैं !
क्या करें कैसे बदला लें ! मौके की तलाश मे थे !
जो भी दांव फैंकते हैं उल्टा ही पड्ता है !
किंकर्तव्य विमूढ़ता की स्थिति बनी हुयी थी !
ऐसे में किसी (न्यूज ट्रेडर) पत्रकार ने स्वामी जी के शब्दों (बयान) मे से हनीमून, दलित, विवाह आदि को पकड़ कर बाल की खाल निकाल दी।
वर्ना; हम तो पिछले सात - आठ सालों से स्वामी जी को देख सुन रहे हैं ! दिल्ली के रामलीला मैदान की घटना के बाद से ही स्वामी जी के शब्दों मे
घोर कड़वाहट आई है देश के दुश्मनों के प्रति; विशेषकर कांग्रेस के प्रति लेकिन इन्हीं न्यूज चैनलों व इनके पत्रकारों ने कभी इस तरह से शब्दोँ को नहीं उछाला !
स्वामी जी अपने शिविरो मे, पत्रकार वार्ताओं मे कठोर और चुभने वाली बातें बोलते रहे हैं आज तक किसी का ध्यान नहीं गया !
हनीमून शब्द हो सकता है पहले भी प्रयोग मे आया हो क्योंकि केवल घूमने के लिये जाना, या तफ़रीह के लिये कहीँ जाना, पिकनिक मनाने के लिये जाने को भी किसी को कटाक्ष करने के लिये कह देते हैं कि 'हनीमून मना के आ रहा है क्या' ! या 'हनीमून मनाने जा रहा है क्या' ! या ' हनीमून मनाके आ गया क्या ' ! या ' वो तो मौज करने जा रहा है जैसे हनीमून मनाने जाते हैं ' ! तो हनीमून शब्द को जिस प्रकार उपयोग किया गया है उसके उलट ऊसका शाब्दिक अर्थ के रुप मे परिभाषित करने का काम पहले उस पत्रकार और न्यूज चैनल ने किया।
अब दूध के धुले कांग्रेसी और उनक़ी अंगुली पकड़ के चलने वाले दलित रक्षक कर रहे हैं !
जबकि स्वामी रामदेव जी अपने बयान के लिये खेद व्यक्त कर चुके हैं।