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Wednesday, November 2, 2011

क्रिकेट के नाम पर; बर्बादी कम न थी.............

जिस देश में तीस की रफ़्तार से गाड़ी चलाना मुश्किल हो वहां ३०० की रफ़्तार से रेस लगाने का ट्रेक बन जाये तो कुछ सम्भावना आम जनता के लिए भी बनती है , उनके लिए ऐसा क्यों नहीं हो सकता ? आखिर आम जनता ने ऐसे नेताओं, अधिकारीयों का क्या बिगाड़ा है ? हे भगवान सद्बुद्धि दो ऐसे नेताओं-अधिकारीयों को जो अस्पतालों में दवाओं,चिकित्सकों,बिस्तरों या सड़ रहे अनाज के लिए गोदाम बनवाने के लिए और स्कूलों में अध्यापकों के लिए धन का आभाव बता कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं जिनकी बनायीं सड़कों से पूरे देश का यदि रफ़्तार का औसत निकाला जाये तो शायद तीस भी न निकले । और भगवान ऐसे नेताओं को सद्बुद्धि देना असंभव हो तो उस जनता को ही दे देना जो इनके ठगने में आसानी से आ जाती है।

क्रिकेट के नाम पर;

बर्बादी कम थी,

अब फॉर्मुला वन ले आये।

कोई हिसाब लगा कर ये तो बताये;

इन धौनियों सचिनो, या

हीरो-हीरोइनों पर;

पैसे किसने बरसाए ।

धन्य है देश हमारा;

धन्य यहाँ की देश भक्ति,

सीमा पर जवान मर जाये;

हम छक्के पर ताली

बजाएं ॥

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"मानसिक अय्याशों के लिए"

भारत तरक्की कर रहा है,

फॉर्मुला वन रेस को देख कर;

ऐसा लग रहा है

मत याद दिलाओ फांसी झूलते किसानों की,

हस्पतालों में मर रहे बीमारों की,

अनाज को सड़ा रहे गोदामों की,

ये कुछ अच्छा नहीं लग रहा है

भारत तरक्की कर रहा है,

फॉर्मुला वन रेस को देख कर;

ऐसा लग रहा है।

क्यों करते हो आलोचना ?

लगता है तुमने समाचार नहीं सुना,

हुआ है भारत का सम्मान दोगुना ,

क्यों ! ये कुछ अच्छा नहीं लग रहा है ?

भारत तरक्की कर रहा है,

फॉर्मुला वन रेस को देख कर;

ऐसा लग रहा है

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1 comment:

  1. आदरणीय शंकर फुलारा जी, आपकी बात से सौ फीसदी सहमत|
    एक तरह हमारे लिए बनाई सड़कों पर खड्डे हैं या खड्डों में सड़क यह बताना मुश्किल है| ऑफिस के लिए घर से निकलते समय पता भी नहीं होता कि कितना समय लगेगा| किन्तु फॉर्मूला वन रेस के लिए पता नहीं कहाँ से इनके पास इतना धन आ जाता है कि हमारे सड़के तो टूटी रहें और वे आराम से चलते रहें?
    आपकी कविता बेहद पसंद आई...

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