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Wednesday, June 1, 2011

@हताश, इण्डिया अंगेस्ट करप्शन वाले.......


जनता पिछले साठ सालों से भ्रष्टाचार के विरोध में हो रहे आन्दोलनों को देख कर वास्तव में ऊब चुकी है इसीलिए अब तो किसी को विश्वास नहीं होता कि भ्रष्टाचार समाप्त भी हो सकता है | अब सवाल उठता है कि क्यों नहीं हुआ और क्यों नहीं हो सकता , जवाब मैं बताता हूँ; उसका कारण है "इस देश में लागू व्यवस्था" | जिस तरह किसी कंटीले वृक्ष की केवल शाखाएं काट कर रास्ते को कंटक विहीन नहीं कर सकते | उसी तरह जब तक भारत की व्यवस्था वही रहेगी जो अंग्रेजों ने अपने लिए लूटने को बनायीं और लागू करी थी तो तब तक यहाँ भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं हो सकता | और आज तक जितने भी आन्दोलन हुए हैं अधिकांस केवल पत्ते छांटने तक सीमित रहे, यहाँ तक कि आजादी का आन्दोलन भी वही साबित हो गया; क्योंकि गांधीजी की बातें मानी ही नहीं गयी |
ये अन्ना हजारे वाला आन्दोलन भी उन सब आन्दोलनों की तरह ही था | देश के अधिकतर सुविधा भोगी लोग ऐसे ही आन्दोलनों को समर्थन देकर फिर हार कर हताश होते रहते हैं | ऐसे लोगों में आज के पत्रकार टाईप के लोग भी होते हैं | क्योंकि ये लोग सुविधा भोगी होते हैं परिश्रम और जुझारूपन,सहनशीलता,विश्वास तो इनमे होता नहीं |
"ऐसे ही लोगों" को स्वामी रामदेव जी का 'पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए क्रांतिकारियों जैसा जज्बा पहले स्वयं स्वस्थ होओ फिर देश और समाज के लि उपयोगी बनो वाला विचार समझ नहीं आ रहा' ऐसे ही लोग भारत स्वाभिमान के आन्दोलन पर अविश्वास कर रहे हैं | उन्हें नहीं पता कि इस आन्दोलन क़ी असली भावना क्या है वो समझना भी नहीं चाहते | भारत स्वाभिमान से जुड़े लोग वो हैं जो अपना लाभ-हानी नहीं देखते अपितु क्रांतिकारियों क़ी तरह अपना लुटाने को लालायित हैं इसीसे सभी भ्रष्ट चिंतित हैं और विश्वास नहीं कर पा रहे कि इस भ्रष्ट भारत में ऐसा भी हो सकता है | वो लोग अन्ना को लेकर मैदान में आ डटे जिससे अधिकतर लोग हताश हो कर बैठ जाएँ पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि अन्ना के साथ भी अधिकांस समर्थक भारत स्वाभिमान के ही कार्यकर्त्ता थे | (बेशक उन्हें मीडिया ने नजरंदाज किया ) , इसीसे अन्ना के समर्थक निराश होकर बैठ सकते हैं पर भारत स्वाभिमान के कार्यकर्त्ता अब तो सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए कमर कसे हुए हैं उसीका पहला सफल सत्याग्रह होने जा रहा है दिल्ली के रामलीला मैदान पर | सरकार घुटने टेक-टेक कर प्रार्थना कर रही है स्वामीजी से, कि स्थगित कर दीजिये पर स्वामीजी झुकने वाले नहीं हैं | कहने का मतलब ये है कि अब देश जाग गया है हताश होने की आवश्यकता नहीं | उस कंटीले वृक्ष की जड़ पर और जोर से प्रहार करने की आवश्यकता है जो अंग्रेज लगा गए थे |

7 comments:

  1. कोई फर्क नहीं है अन्ना और स्वामी में। दोनों ही भीड़ के आंदोलन हैं। जो भीड़ छंटते ही फिस्स हो जाते हैं। क्रान्तियों के लिए ईमानदार, श्रमशील और कर्मठ कार्यकर्ताओं के मजबूत संगठन और उस पर जनता का विश्वास होना आवश्यक है। जिस का देश में दूर दूर तक पता नहीं है।

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  2. अन्ना अग्निवेशों व सरकार के बीच फंस कर रह जायेंगे | अभी अन्ना ने अग्निवेश जैसे मौकापरस्त लोगों से छुटकारा नहीं पाया तो आने वाले दिन में लोग अन्ना पर जूतियाँ फैकेंगे |

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  3. आपसे सहमत हूँ ! आज तक जितने भी आन्दोलन हुए हैं सब पत्ते छांटने तक ही सिमित रहे हैं, महज एक सूखी हुई डाली को काट देने या फिर उसका उपचार कर देना ही काफी नहीं है , मेरा मानना है की यदि उपचार ही करना है है तो सम्पूर्ण बृक्ष का एक साथ उपचार करना होगा,
    शुभकामनाये ............................

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  4. दिनेश जी बिना भीड़ का आन्दोलन हो ही नहीं सकता;अगर हुआ भी तो कोई तवज्जो नहीं पा सकता | अब ये अलग बात है कि भीड़ किस तरह की है | हम तो इस आन्दोलन के विषय में जानते हैं कि पिछले पांच वर्षों से योग के माध्यम से स्वामी जी ने भीड़ नहीं तैयार की, अपितु योद्धा तैयार किये हैं और पिछले नौ महीने से तो उनकी परीक्षा ली जा रही थी कि ये मैदान में उतारने लायक बने हैं या नहीं अब उसीकी निर्णायक घडी आ गयी है | जो आपको दिल्ली के रामलीला मैदान पर दिखने जा रहा है |

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  5. हम भी तैयार हैं, योद्धाओं का बल और क्षमता देखने के लिए। हम भी चार तारीख को कोटा में चल रहे समर्थन आंदोलन में अपनी शिरकत करेंगे। लेकिन जो तामझाम रामलीला मैदान दिल्ली में दिखाई दे रहे हैं वे आंदोलन के कम राजमहल की सीढ़ियाँ तय करने के अधिक दिखाई दे रहे हैं।
    अभी तो यह पता नहीं कि बाबा के सैनिक कैसे हैं? उन का चरित्र क्या है? पहली बार उन का परीक्षण होगा।

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