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Sunday, May 1, 2011

धधकते अंगारे को कितनी देर कपडे से ढँक सकते हो

इस महान देश के अन्दर साजिशें करने में कुछ खानदानी नेताओं,पार्टियों और उनके समर्थकों ने इतनी महारत हासिल कर ली है कि उस सीमा तक सोचने में आम आदमी तो आम ही रह जाता है;
अपने
को खास और कुलीन समझने वाले लोग (बुद्धिजीवी) भी सोच नहीं पाते।

महानता
जहाँ सरकारें ही साजिशों में लिप्त हों, साजिशों से टिकी रहें, साजिशों से घोटाले और देश को लूटने का अभियान चलाती रहें, और एकाध साल से नहीं, कई शदियों से इस लूट को अंजाम दिया जा रहा हो फिर भी......
अपना देश वाकई महान है कि टुकड़े हो गए पर जीने का जज्बा फिर भी केवल बरक़रार है; अपितु दौड़ में सबसे आगे रहने का हौसला भी है।

कारण ?
हम सर्वव्यापी भगवान को मानते हैं, मंदिरों में चाहे किसी भी मूर्ति की पूजा करें या किसी भी देवी-देवता के नाम से उपवास करें, पर सबके पीछे एक ही भगवान होता है; जिसे सर्वव्यापी माना जाता है ये हमारे संस्कार हैं और इन्हीं संस्कारों से संस्कृति बनी है।
और यही इस देश की ताकत है। पूर्व से पश्चिम तक,उत्तर से दक्षिण तक, एक डोर से भारत बंधा हुआ है। आज भारत में बसने वाले किसी भी धर्म-संप्रदाय के लोग कुछ सौ साल पहले अपने पूर्वजों की खोज करें तो सभी उस संस्कृति से अपने को जुड़ा पाएंगे
और यही भाव जन-जन में स्वामी रामदेव जी ने जाग्रत कर दिए।

साजिशों की पोल
ये सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतनाएं; जिन्हें वैसी ही महान शातिर साजिशों से (जैसी ऊपर लिखीं हैं कि कोई समझ ही पाए) भुला दिया गया था। शिक्षा में साजिश, संस्कारों को समाप्त करने की साजिश,आध्यात्म को ख़त्म कर भौतिकवाद- अनैतिकता को बढ़ावा देने की साजिश, और तो और धार्मिक उपदेशों द्वारा गरीबी में संतोष करके जीवन चलाने की बात मानने की साजिश, और इन सबके लिए लोगों को आपस में लड़ाये रखने कीसाजिश और महारत’, इन सबकी पोल स्वामीजी ने खोल दी है।

स्वाभिमान
भारतियों में स्वाभिमान जगा दिया, उन्हें धर्म का वास्तविक अर्थ बता दिया, आजादी का वास्तविक अर्थ बता दिया, संतोष का वास्तविक अर्थ बता दिया,उन्हें बता दिया है कि ग्रंथों में लिखा है कि चोर और बेईमान लोग हम पर राज करें, और सबसे बड़ी बात; देश की एक सौ साढ़े बीस करोड़ आबादी को अब ये समझ में गया है किकेवल पचास लाख अनैतिक और भ्रष्टलोगों के कारण (जो हद से ज्यादा बेईमान हैं) पूरा देश नर्क बना हुआ है
सुख का अहसास
कितना भी पैसे वाला आदमी हो वो सुखी नहीं है क्यों कि खाने के लिए बिना मिलावट का कोई खाद्य पदार्थ
नहीं, चलने के लिए अच्छी सड़क नहीं जिस पर वह बिना हिचकोले खाए चल सके, स्वस्थ रहने के लिए वातावरण ठीक नहीं, अस्पतालों की आर्थिक लूट को वहन कर सकता है पर फिर भी आज किसी पर भी विश्वास नहीं कि कब उसके शारीर का कोई अंग निकाल लिया जाये, उसका कोई सम्मान नहीं कि कब कौन उसे डरा धमका दे या अपहरण करले ( अब तो ये नेताओं का व्यवसाय भी बन गया), और अब तो एक सबसे बड़ा खतरा जो इन पैसे वालों के लिए तो अधिक ही है कि अगर किसी पडोसी देश ने आक्रमण कर दिया तो कैसे अपने महलों-बंगलों और अपनी रक्षा कर पाएंगे। ये सब बातें अब देश के आम से कुछ खास लोगों की समझ में रहा है। जिसे जगाने के लिए स्वामी रामदेव जी ने पिछले पांच वर्षों में बहुत मेहनत की है। और लोगों में एक क्रांति का, और जाग्रति का भाव भर दिया है।

किंकर्तव्य विमूढ़ता
जिससे कुछ समय तक तो ये सारी महाशक्तियां एक दम हक्का-बक्का थीं। पर पिछले दिनों इन सबको एक अवसर मिल गया। इनके हाथ अन्ना हजारे लग गए। और जैसा कि इनमे होता है "अघोषित एकता"और "आपसी समझ" इतनी विकसित हो गयी है कि जो जहाँ पर है वहीँ से अपनी चालें चलेगा, और उसके दूसरे साथी अपने आप समझ जायेंगे कि अब उसे कौन सी चाल चलनी है। सबका उद्देश्य एक, लेकिन लड़ने के तरीके में एक दम से भिन्नता,कोई तो साथी बन कर पीठ में छुरा भौकने का काम करेगा, कोई सामने से आकार ध्यान बंटायेगा , कोई सरकार का डर दिखायेगा या धमकी देगा, कोई सरकार की तरफ से आश्वासन देगा... बेचारा ! साधारण जन, अपनी दाल-रोटी में ही व्यस्त है,गरीब को कोई मतलब ही नहीं, वह तो चुनावों का इंतजार करता है कि उन दिनों कमसेकम पेट भरके खाना और दारु तो मिल जाती है।

साजिश
तो साहब इन्होने अन्ना हजारे,किरण बेदी जैसों को स्वामीजी से मिलने का अवसर उपलब्ध करवाया। उन्हें बीच में डाला
गया। क्योंकि इनकी अपनी विश्वसनीयता तो थी नहीं। कोई आर टी आई कार्यकर्त्ता बना फिर रहा था तो कोई गुड़ खाना चाहता था पर गुलगुलों से परहेज कर रहा था, इसलिए इनके इण्डिया वाले संगठन को कोई नहीं मुहं लगा रहा था। बहुत अच्छा अवसर था कि "भारत स्वाभिमान" के करोड़ों लोगों को अपना नाम चमकाने के लिए इस्तेमाल किया जाये मतलब एक तीर से कई निशाने, सरकार भी खुश, बुद्धिजीवियों और मीडिया का अहम् भी पूरा, जो अनैतिकता चाहते हैं वह भी खुश, जो धर्म के नाम पर अपनी अय्याशी चला रहे हैं वह तो बढ़-चढ़ कर आरोप लगाने के लिए हौसला पा गए, मतलब हर वो बुराई खुश, जो इस आन्दोलन को सफल होते नहीं देखना चाहती
अपने को बुद्धिजीवी समझने वाले और जिम्मेदार मानने वाले लोग, इसे स्वामीजी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बता कर दुष्प्रचार करने लगे या भ्रमित होने लगे, एक और तरीका निकाला इन लोगों
ने, विशेषकर मीडिया से जुड़े लोगों ने और सरकार ने; कि चाहे कितना ही बड़ा आन्दोलन क्यों हो (स्वामीजी द्वारा) नजरंदाज करो, वही किया भी। लेकिन इण्डिया वालों का आन्दोलन को खूब प्रचारित करो; जिससे भारत स्वाभिमान का आन्दोलन कम नजर आने लगे

गुलाम
ऐसा लगता है उनमे (बुद्धिजीवियों में से) से अधिकांस उन्हीं लोगों का दिया खाते हैं जिनके विरोध में ये जाग्रति आई है। इसी लिए इन्होने सम्पूर्ण बदलाव की बात को दबा कर केवल जन लोकपाल बिल पर ध्यान बंटाना चाहा और इन्हींके बीच के लोगों ने उस पर और उसके सदस्यों पर आरोप
लगाये,ताकि विवाद सुर्ख़ियों में रहे, जिससे भारत स्वाभिमान का आन्दोलन जो सम्पूर्ण क्रांति का आन्दोलन है; की धार कुंठित हो जाये। सब सक्रिय हो गए किसी ने अन्ना को तैयार किया होगा, किसी ने इन सबको उकसाया होगा, किसी ने इस मामले को मीडिया में कैसे उछले इसकी रणनीति बनायीं होगी और कैसे उलझे ये मामला ,कोई इस पर भी काम कर रहा है क्योंकि सबके हित प्रभावित हो रहे हैं जो संस्कृति-संस्कारों,आध्यात्म-नैतिकता के विरोधी हैं,जो राजनीतिक-सामाजिक,धार्मिक सुचिता के विरोधी हैं सब अघोषित रूप से एक हैं

क्या
ये धधकती आग को कपडे से ढँक पाएंगे ?
नहीं ! ये अंदाजा नहीं लगा पा रहे कि देश के कितने लोग स्वामी जी का साथ देंगे। इनके जन लोकपाल बिल का भविष्य तो वर्तमान की पी.ए.सी. में दिख गया है केवल लट्ठ और गोलियां नहीं चली बाकी सब कुछ हो गया।
इनका जन लोकपाल उसी तरह बन रहा लगता है जैसे किसी कांटेदार वृक्ष से कांटे फैलने से रोकने के लिए उस पर कपड़े से जाल की तरह बांध रहे हों और स्वामी जी का चलाया आन्दोलन उस वृक्ष को जड़ से उखाड़
कर उसकी जगह स्वादिष्ट फलदार वृक्ष लगाने का है जिसे स्वामीजी ने अपनी योग की अग्नि ऐसा धधका दिया है कि अब उसे दबाने की चेष्टा वैसे ही है जैसे आग को कपड़े से ढंकने की कोशिश करना पर ये ऐसा नहीं कर पाएंगे अपितु ये आग उस कपड़े को जला कर और तेजी से धधक उठेगी

2 comments:

  1. आम आदमी क्या पढ़े लिखे बुद्धिजीवी कहलाने वाले भी जन लोकपाल को कितना समझ सकेंगे और यह कितना कारगर हथियार साबित होगा, यह कोई नहीं कह सकता........ फ़िलहाल इतने उम्मीद तो की ही जा सकती हैं की कुछ तो अच्छी शुरवात हो... शुभारम्भ भले ही छोटे छोटे कदमों से हो लेकिन वह रुकना नहीं चाहिए बस ......
    सच को बखूबी उधेडा है आपने ...सार्थक आलेख प्रस्तुति के लिए बधाई

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  2. बहुत सुन्दर लेख...सही कहा आपने मात्र एक जन लोकपाल विधेयक पारित करके बाबा रामदेव के प्रयासों को समाप्त करने का यह एक षड्यंत्र है...किन्तु अब भारत जाग रहा है...अब हम इस लूट को और नहीं सहेंगे...अब भारत में महासंग्राम होगा...

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