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Saturday, January 15, 2011

कलियुग को बदनाम न करो

कलियुगबेचारा ! भाइयों में सबसे छोटा है इसलिए अपने जन्मदाता का दुलारा भी होगा तभी शायद थोड़ा उच्छ्रंख है पर इसे लोगों ने कुछ ज्यादा ही बदनाम कर दिया वर्ना; इतने बुरे हालात थोड़े ही हैं जितना इसे बदनाम किया जाता है कोई भी बुराई देखी नहीं; झट से कह देते हैं कलियुग है भाई ! अभी तो जाने क्या-क्या देखना पड़ेगा जैसे इससे पहले इसके बड़े भाईयों (सतयुग,द्वापर,त्रेता) के समय में कोई बुराई थी ही नहीं अब आप त्रेता युग को ले लो; कितना घोर पाप होने लगा था। रक्ष संस्कृति वाले जो राक्षस कहलाते थे वह मनुष्य को मार कर खा जाते थे कन्याओं का अपहरण भी हो जाता था
आज कौन सी नई बात हो रही है ? ऐसा ही द्वापर में देख लो जब कोई मामा अपने ही भांजे-भांजियों को पृथ्वी पर पटक-पटक कर मार दे आज कमसेकम इतना बुरा समय तो नहीं आया न, फिर भी कलियुग बेचारा बदनाम है
और ये सब तो राजसी खानदान के लोग करते थे अब सोच लो जब राजा लोग ही ऐसे थे तो प्रजा कैसी होगी ? फिर भी कलयुग बदनाम है
आखिर इस कलियुग से सबको बैर क्यों है ? इस युग में जी रहे हैं खा रहे हैं मौज-मस्ती कर रहे हैं फिर भी बेचारे को बदनाम कर रहे हैं जिस युग में रह रहे हैं उसी को बदनाम कर रहे हैं
इससे तो उसमें बदलाव लाने के लिए दबाव डालते, समझाते, कुछ बड़े लोग दबाव बना भी रहे हैं उनका ही साथ देते, तो मान जाता; कैसे नहीं मानता ? क्या उसके बड़े भाई नहीं सुधरे ? जब-जब सुधारने वाला मिला वो सुधरे और नाम रोशन किया ऐसे ही ये भी करेगा, पर तुम सुधारने वालों का साथ तो दो केवल बदनाम करने से कुछ नहीं होगा अपितु और उच्छ्रंखलता बढ़ेगी
इस लिए हे मानवो उठो जागो और श्रेष्ठ पुरुषों के सानिध्य में जाकर उनके मार्गदर्शन में जब तक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते तब तक रुको मत
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत”। (कठोपनिषद --१४)
ऐसा ही महापुरुषों ने इसके बड़े भाईयों के समय कहा थाऔर ऐसा ही आज भी कह रहे हैं

1 comment:

  1. फुलारा जी सादर नमस्कार !
    आप मेरे ब्लॉग पर आये और अपनी बहुमूल्य टिपण्णी व्यक्त की जिसके लिए मैं आपका तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ , आपका कहना सही है की समयाभाव के कारण प्रत्येक ब्लॉग को पढ़ पाना और प्रतिकिर्या व्यक्त करना संभव नहीं हो पाता है , मेरी भी यही समस्या है , रोजी-रोटी की जुगत में ही अधिकांश समय निकल जाता है , बहरहाल आपकी पोस्ट से ज्ञात हुआ की आप भिक्यासैन से सम्बन्ध रखते है ,जानकर ख़ुशी हुई ,
    बहरहाल कलयुग के प्रति जो सकारात्मक नजरिया आप रखते हैं उससे में पूर्णत: सहमत हूँ , वैसे भी इतिहास के पन्नों को पलटकर यदि देखा जाय तो कही-न-कही कलयुग का स्थान सबसे ऊँचा नजर आता है , आध्यात्म की दृष्टि से भी कहा गया है की --------
    कलयुग केवल नाम अधारा, सुमीर-सुमीर नर उतरही पारा ,
    अर्थात्त यहाँ पर एक नाम के उच्चारण मात्र से ही मनुष्य भवसागर पार हो जाता है ,l
    बहरहाल एक आम जुमला है "क्या जमाना आ गया है ?" हम न जाने कब से इस जुमले को दोहराते आ रहे हैं ? लकिन जमाना कल भी यही था और आज भी वही है और कल भी ऐसा ही रहेगा l
    विचारणीय पोस्ट हेतु आभार ...............

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