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Sunday, September 26, 2010

"ये खेल न होते तो"

राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी हर उसशै” ‘व्यक्ति, संस्था,सरकार,परिवार, ख़िलाड़ी और बुद्धिजीवी,
विरोधी/समर्थकको धन्यवादइनके कारण आज हमें यह तो पता लगा कि हमारे देश की संसार के देशों में इतनी प्रतिष्ठा है कि उसके कम होने की चिंता भी होनी चाहिए

वर्ना; हमें कैसे पता लगता ? अगर इन खेलों को आमंत्रित करने वाले ही, हमारे यहाँ की भुखमरी-भ्रष्टाचार और दिल्ली के भिखारियों का ख्याल करके इन्हें आमंत्रित ही करते

हमें कैसे पता लगता ? अपने देश की प्रतिष्ठा का,अगर;इतना बड़ा बजट इस आयोजन में हमारे नेता-अधिकारी-ठेकेदार आपस में बांटते नहींजहाँ तक कुछ लोगों का ये कहना है कि ये आयोजन महंगा है,तो मैं बता दूँ;महान वही होता है जो अपना घर फूंक कर दुनिया को तमाशा दिखाता है हमारा देश (नेता-अधिकारी-ठेकेदार)तो इस कार्य के लिए ही पहचाना जाता है

धन्यवाद उन विरोधियों को भी, कि; तुमने अंत समय में भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं की पोल-खोल कर उन लोगों को नींद से जगा दिया, जो देश की प्रतिष्ठा को समझते हैं और उसे बचाना चाहते हैंपर किसी के जगाने पर ही जागते हैंऔर फिर संयम का पाठ पढ़ाने लगते हैं, इन्हें नहीं पता कि भारत की प्रतिष्ठा इतनी नही है कि उसे बचाने की चिंता की जाये
और
प्रतिष्ठा बचाने वाले लोगों को इसलिए धन्यवाद, कि; उन्हें देश की प्रतिष्ठा का कुछ तो ख्याल हैपर उनकी चिंता को दूर करने के लिए इतना बता दूँ कि; हमारे देश की प्रतिष्ठा कम नहीं हो सकती, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि संसार के सौ देशों की अर्थव्यवस्था हमारे "विदेशों में छुपाये धन" से चलती हैसोच लो उनके साथ साथ और देश भी हमें कितना प्रतिष्ठित नजर से देखते होंगेसंसार में हमारी प्रतिष्ठा कम कैसे हो सकती है ? जबकि इसको पाने के लिए हमने अपनी भाषा को, संस्कृति-संस्कारों को, अपनी सभ्यता को छोड़ दियाप्रतिष्ठा कम होने का डर तो तब होता जब हमने अपनी प्रतिष्ठा को पाया होता
हमने तो अपनी जो नई प्रतिष्ठा, आजादी के बाद बनायी है उसमे तो कोई डर है ही नहींकपडे छिनने का डर उसे होना चाहिए जिसने अपने कपड़े पहने हों, जिसने कपड़े से लेकर जूता चप्पल और चश्मा तक विदेशी पहन रखा हो उसे किस बात का डर

इसलिए हमारे महानुभावो चिंतित हो हमारी आज की प्रतिष्ठा में कोई भी अंतर नहीं पड़ने वालाअमरीका वालों की नजर में हम मूर्ख, ब्रिटेन की नजर में गुलाम और पश्चिम केसभ्यदेशों की नजर मेंअसभ्य गड़रियेही रहेंगे
इसलिए अगर हंसी उड़ने की चिंता करनी है तो पहले अपने देश को अपना तो बनाओ जब सबकुछ हमारा होगा, दिखावा नहीं होगा, तो हंसी उड़ने का डर नहीं रहेगाहमें तब शर्म आनी चाहिए जब हम चिल्ला-चिल्ला कर विदेशी कम्पनियों को अपने यहाँ व्यापार करने के लिए बुलाते हैं इतना बड़ा देश होने के बावजूदऔर वे हमारे नागरिकों को जहर भी पिलाते हैं और आर्थिक रूप से लूटते भी हैं

Wednesday, September 22, 2010

वो तीन दिन, प्राकृतिक प्रकोप

१७ ---- १८ ---- १९ तीन दिन मेरी जिंदगी में ऐसे गुजरे कि जो कभी भुलाये ना भूलेंगे, ऐसे ही तीन दिन १९८४ में श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद वाले याद रहे थे, पर वो दंगे फसाद के कारण थे और ये प्राकृतिक आपदा के कारणवर्षा-वर्षा और वर्षा जब हमारे घर के बराबर वाली दीवार ढह गयी तो ऐसा लगा जैसे हमारे ही ऊपर मलवा रहा हो, इतनी आवाज हुयीतब से तो इतना डर लगने लगा कि ना अन्दर रहा जाये ना बाहर निकला जाये, क्योंकि कहीं से भी जमीन या पहाड़ दरकते हम देख रहे थेकोई कितना भी बड़ा मकान वाला क्यों ना हो वह भी अपने मकान में चैन से निःशंक नहीं सो पाया
अब तो बादल देख कर डर लगने लगा हैपर अपने हाथ में कुछ नहीं है आज फिर बादल दिखने लगे हैंपूरे उत्तराखंड में तबाही मची हुयी हैकोई गाँव ऐसा नहीं है जहाँ कुछ टूट-फुट ना हुयी हो अभी थोड़ी देर पहले तक फोन इंटरनेट इत्यादि सब बंद थेबस थोड़ी देर को जब बिजली आती थी तो समाचार देखने को मिल जाते हैं बिजली केवल यहाँ बाजार में आई हुयी है; उन लोगों ने बरसात में भी अपनी व्यवस्था बना कर रखी हैउन्हें आगे-पीछे गाली देने वाले इस समय शाबाशी दे रहे हैंवास्तव में; जितना नुकसान बिजली के पोलों को और ट्रांसफार्मरों को हुआ है पता नहीं कैसे फिर भी कमसेकम बाजार में तो बिजली है
इतनी भयंकर नदियाँ हमने जीवन में पहली बार ही देखी हैं; पिचहत्तर साल के एक बुजुर्ग बोलेछतरियां लेकर सब नदियों को देखने से अपने को नहीं रोक पा रहे थे दिन नदियों के उफान को देखने में,पेड़ों के बहने को, जगह-जगह से पहाड़ को टूट कर, सड़कों को धंसते हुए देखने में कट रहे थे और रातें घरों में जाग-जाग कर कट रही थी क्योंकि उनका भी भरोसा नहीं था; कब कहाँ से मलवा आजाये या धंस जाये

सात दिन बाद अभी सड़कें अपने सपर्क स्थलों तक नहीं खुली हैं जब कि इस बार तो बहुत सी जे सी बी मशीनें जगह जगह लगी हैंखाने-पीने का सामान भी जो कुछ घरों में है या दुकानों में है, चलेगा; फिर हा हा कार मचना ही हैपानी के पाईप स्थान स्थान पर टूट गए हैं जिससे पानी की व्यवस्था ठीक नहीं है । ऐसे में जो कर्मचारी मानवतावादी हैं वो अपने कार्यों को किसी भी तरह से अंजाम देकर जितना संभव है व्यवस्था बना रहे हैं जैसे विद्युत् विभाग वालेपर बहुत से लोगों की प्रकृति परभक्षक जैसी होती है इनमे इस कलियुग में अधिकतर चिकित्सक भी परभक्षी की श्रेणी में आते हैं वह ऐसे में अपने कर्म को परभक्षी की तरह ही निभाते हैंऐसे ही उनके नीचे काम करने वाले भी हो जाते हैं

जब समाचार देखने को मिले तो पता लगा कि यहाँ से बुरा हाल नीचे के मैदानों में हो रखा हैइसे सब प्राकृतिक प्रकोप समझ कर शांत हो जायेंगे और सरकारों से भिक्षा की आशा करेंगे कुछ को मिलेगी भी उनकी हैसियत के अनुसार कोई खाने के एक दो पैकेट या ओढने के एकाध कम्बल पाकर ही संतुष्ट हो जायेगा और किसी को लाखों की आपदा राहत राशि मिलेगी । बड़े-बड़े नेताओं का उड़नखटोला घूम चुका है आँखें बाढ़ का दृश्य देख रहीं थी दिमाग कॉमन वेल्थ गेम्स में उलझा थाजो उनसे छोटे नेता थे वो हिसाब लगाने में व्यस्त होंगे कि कैसे ज्यादा से ज्यादा मिले तो किस तरह अपने चुनावों के लिए और पार्टी फंड के लिए धन का जुगाड़ बनाना है
गिद्ध बेशक संख्या में कम हो गये पर उनकी आत्माओं ने अब मनुष्यों के रूप में जन्म ले लिया है
अगर ऐसा नहीं होता तो पिछले पैंसठ वर्षों से व्यवस्था अपने हाथों में होने के बाद भी इस तरह की बाढ़ देख कर इन नेताओं को और इनके कर्मचारियों को और इनके पिछलग्गुओं को क्या शर्म नहीं आनी चाहिए ?

पर; नहीं आएगीक्योंकि इनके खून में से शर्म नाम का तत्त्व ख़त्म हो चुका है, ये उन गिद्धों की आत्माओं को लेकर पैदा हुए हैं जिनके लिए कोई भी प्राणी कैसे ही मरे, उनके भोजन का इंतजाम हो जाता है


यहाँ के तबाही के फोटो जो मेरे दोस्तों ने लिए हैं फिर बाद में दिखाऊंगाआज तो फिर बादल घनघोर हो गए हैं सचमें मन आशंकाओं से डर रहा हैअगर इंटर नेट ने काम किया तो फिर खबर दूंगा