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Sunday, August 22, 2010

"भारत की संसद कौरवों की उस सभा" जैसी

हमारे माननीयों ने अपना वेतन बढ़ाने के लिए तन-मन एक कर लिया, विरोधी भी बैर भूल कर एक हो गए | क्यों ना हों ? इतिहास गवाह है हमारे कई अय्यास राजाओं ने अपने राजपाट और सुख सुविधा के लिए दुश्मनों को अपने खेमे में लाने के लिए अपना जमीर और देश तो क्या अपनी बहन बेटियों तक तो उनके हवाले कर दिया | तो ! ये तो कलयुगी हैं , उनसे अधिक बेशर्म होना तो आज का चलन है इसीलिए । ये कहते हैं ; "हमारा वेतन बढाओ"........।
संविधान में कहाँ लिखा है कि सांसद का वेतन कितना होना चाहिए ? और कहीं लिखा भी है तो नादान - निरीह जनता को क्या पता | उससे भी बड़ी बात कि अगर पता भी है तो क्या कर लेगी ? जब कोई गुंडा, मवाली, छुरेबाज, किसी साधारण से आदमी को छुरा दिखा कर लूट लेता है तो वह क्या कर पाता है ? अगर पुलिस वालों के पास रिपोर्ट करने जाता है तो वहां भी लुटता है और अपना सा मुहं लेकर वापस जाता है | ऐसा ही कुछ इस "सांसदों के वेतन" मामले में हो रहा है इसमें तो किसी से शिकायत भी नहीं कर सकता क्योंकि ये तो स्वयं सर्वेसर्वा हैं | सर्वेसर्वा होने के साथ ही कई तो "वैसे भी नामी गिरामी" हैं | कौन पंगा मोल ले ? फिर ! संवैधानिक मामला है भई, जो कुछ हो रहा है संविधान के दायरे में ही हो रहा है | पर इस मामले पर मेरा उक्त पोस्टर यहाँ टेंशन पॉइंट तिराहे पर काफी चर्चित हो रहा है | लोग कहने रहे हैं कि सही लिखा है आपने, पहले ही हम महंगाई से त्रस्त हैं चौसठ प्रकार के टैक्स भुगत रहे है इनकी अय्यासियों के लिए अब किसी और टैक्स की मार पड़नी जरुरी है | ये सड़ता हुआ अनाज जनता को मुफ्त या सस्ता नहीं बेच सकते , ये टैक्स कम नहीं कर सकते, इनके पास बेरोजगारों के लिए रोजगार देने को बजट नहीं है, अस्पतालों में डॉक्टर रखने के लिए धन नहीं है, स्कूलों में अध्यापक रखने के लिए धन नहीं है पर अपने लिए जितना कहो उतना हो जायेगा | धन्य है "भारत की संसद कौरवों की उस सभा" जैसी जिसमे भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य जैसे महान माने जाने वाले व्यक्तित्व बैठे हुए थे और द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था | सच में; उन्होंने तब कल्पना भी नहीं की होगी कि हमारे नाम पर किस तरह का कलंक लगेगा, काल के इतिहास में | ऐसा ही कुछ आज भी हो रहा है कई भीष्म और द्रोण चुप बैठे हैं जमाना इन्हें धिक्कारेगा | अच्छा है ! होने वाले आन्दोलन के लिए इस तरह की सब घटनाएँ खाद-पानी की तरह लाभ करती हैं | जितना अन्याय होता है जनता में उतना ही अधिक विचलन होता है |

1 comment:

  1. सटीक और सारगर्भित लेख ,,, बधाई

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