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Thursday, July 29, 2010

सच कहने - सुनने - देखने - समझने का समय

जब समाचार पत्र ब्लोगों के विषय में अपने पत्रों में छाप रहे है तो ब्लोगरों को भी उनके अच्छे लेखों पर अपने ब्लोगों में चर्चा करने में परहेज नहीं होना चाहिए बहुत दिनों बाद समाचार पत्र (अमर उजाला ) में एक लेख जो; बहुत अच्छा लगाछोटा सा लेख और इतनी गंभीर बात, “उन बुद्धिजीवियों की आँखे खोलने के लिए प्रयाप्त हैं ; जिन्हें भारत के इतिहास में कुछ भी गौरव करने के लिए नहीं मिलता”। ऐसे लेखकों को और बुद्धिजीवियों को हमें साधुवाद देना ही चाहिए और अपने ब्लोगों में चर्चा करके उनके विचारों को ब्लॉग जगत के लिए मुद्दे भी उपलब्ध करवाने चाहिए ये लेख उन लोगों के दिलदिमाग को भी झकोरने में शायद सफल हो जो पश्चिम को अपना आदर्श मानते हैं और उनके अन्धानुकरण से अपने को आम जनता की नजर में उपहास का पात्र बनाते हैंउनके लिए ये बौद्धिक खुराक का काम भी करेगा लेख टाईप करने का आलस्य होने के कारण उसका फोटो दे रहा हूँलेखक हैं "गुरदयाल सिंह" , समाचार पत्र है "अमर उजाला" दिनांक २९ जुलाई १० है और लेख का शीर्षक हैसच कहने का समय”। अमर उजाला से साभार ---















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