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Friday, July 30, 2010

न जाने क्यों ?

(फिर भी मेरा देश तरक्की कर रहा है ; जाने क्यों ? नेताओंनौकरों को लाखों मिलते हैं और गरीब भूखों मरता है ; जाने क्यों ?)
कुछ लोगों में भारत-भारतीयता, के प्रति हीन ग्रंथि है ; जाने क्यों ?
कुछ लोग सकारात्मक या सीधा, सोच ही नहीं पाते ; जाने क्यों ?
कुछ को हमारे इतिहास और सभ्यता-संस्कृति में केवल बुरा ही बुरा दीखता है ; जाने क्यों ?
कुछ लोगों को निर्दोषों के हत्यारों के प्रति भी सहानुभूति होती है ; जाने क्यों ?
कुछ लोगों को अपराधियों से मुठभेड़ों पर शक होता ; जाने क्यों ?
सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल करने की जरुरत पड़ती है, जैसे गुलाम हों ; जाने क्यों ?
धन्य हैं वो लोग जो चुप बैठे हैं पिछले साठ वर्षों से ; जाने क्यों ?
धर्म के नाम पर अन्धविश्वास बढ़ता रहा ; जाने क्यों ?
गुरु घंटालों को भगवान बना कर पूजने लगे ; जाने क्यों ?
स्वतंत्रता के नाम पर धोखा हुआ कोई जगा ; जाने क्यों ?
लोकतंत्र के नाम पर लुटते रही जनता ; जाने क्यों ?
देश भक्ति के चोले में गद्दारी होती रही ; जाने क्यों ?
शिक्षित होने के भ्रम में मूर्ख बनते रहे ; जाने क्यों ?
महलों में सरकार सोती है गोदामों में अनाज सड़ता है ; जाने क्यों ?
सांसदों नेताओं को कैंटीन में दस रुपये में भोजन मिलता है ; जाने क्यों ?
नेताओंनौकरों को लाखों मिलते हैं और गरीब भूखों मरता है ; जाने क्यों ?
फिर भी मेरा देश तरक्की कर रहा है ; जाने क्यों ?
.............................................................................. जाने क्यों ?
............................................................................... जाने क्यों ?

Thursday, July 29, 2010

सच कहने - सुनने - देखने - समझने का समय

जब समाचार पत्र ब्लोगों के विषय में अपने पत्रों में छाप रहे है तो ब्लोगरों को भी उनके अच्छे लेखों पर अपने ब्लोगों में चर्चा करने में परहेज नहीं होना चाहिए बहुत दिनों बाद समाचार पत्र (अमर उजाला ) में एक लेख जो; बहुत अच्छा लगाछोटा सा लेख और इतनी गंभीर बात, “उन बुद्धिजीवियों की आँखे खोलने के लिए प्रयाप्त हैं ; जिन्हें भारत के इतिहास में कुछ भी गौरव करने के लिए नहीं मिलता”। ऐसे लेखकों को और बुद्धिजीवियों को हमें साधुवाद देना ही चाहिए और अपने ब्लोगों में चर्चा करके उनके विचारों को ब्लॉग जगत के लिए मुद्दे भी उपलब्ध करवाने चाहिए ये लेख उन लोगों के दिलदिमाग को भी झकोरने में शायद सफल हो जो पश्चिम को अपना आदर्श मानते हैं और उनके अन्धानुकरण से अपने को आम जनता की नजर में उपहास का पात्र बनाते हैंउनके लिए ये बौद्धिक खुराक का काम भी करेगा लेख टाईप करने का आलस्य होने के कारण उसका फोटो दे रहा हूँलेखक हैं "गुरदयाल सिंह" , समाचार पत्र है "अमर उजाला" दिनांक २९ जुलाई १० है और लेख का शीर्षक हैसच कहने का समय”। अमर उजाला से साभार ---















Saturday, July 24, 2010

जहरीली मानसिकता बनाम जहरीली लौकी

पिछले दिनों मीडिया में एक समाचार देखा ; कि लौकी (घिया ) का जूस पीने से एक व्यक्ति जो वैज्ञानिक भी था कीमौत हो गयी ' । जाँच हुयी तो पता चला कि "लौकी जहरीली" थीयहाँ तक कि चैनल वालेशायदसब्जी कीदुकान भी दिखा कर बता रहे थे कि उस दुकान की सभी लौकियाँ जहरीली पाई गयीं
कारण ! पता नहीं शायद लौकी
को जल्द बड़ा करने के लि किसी दवा का इंजेक्शन दिया जाता है, जिसकी अधिकमात्रा में जहर जैसा गुण होता है; उसके कारण ! या भगवान जाने कोई साजिश थी उसके कारण
बहरहाल जो भी हो ; इस तरह की घटनाएँ पहले भी बहुतायत में हुयीं हैंजहरीली शराब से कई - कई सौ लोगमरते देखे हैंया गलत दवा खाने से या इंजेक्शन से भी मर
ते देखे हैंचिकित्सकों द्वारा अकसर लापरवाही से तोआये दिन मौतें होती रहती हैंपर सब्जियों और फलों के जूस से अभी तक इस तरह की मौत देखी - सुनी नहींथी , जो अब सुनने में गयीइसका कारण उनका जहरीला होना बताया गया , पिछले कुछ समय से उस दवाकी बड़ी मात्रा में धरपकड़ भी हो रही है

पत्रकारिता में, व्यवसाय के प्रति समर्पण देखना हो तो; “18 से 24 जुलाई 2010 का संडे नई दुनियासाप्ताहिक पत्रके साथ मुफ्त पत्रिका में देखें । "आवरण कथा" इसके स्वास्थ्य संपादक के नाम से छपी हैदेसी दवा खतरा जान”।

हमारे ये पत्रिका वाले अपने व्यवसाय (पत्रकारिता) के प्रति कितने ईमानदार हैं, इस लेख को देख कर पता लगता है। और कुछ सीखने को भी मिलता है । अगर आप भारतीय खानपान के, रहन - सहन के और भारतीयता के विरोधीहो तो; इन सबका विरोध करने के लिए आँख-कान बंद लो । आखिर विरोधी धर्म निभाना है । सही गलत क्यादेखना ?स्वामी रामदेव जी से जैसे इनका पिछले जन्मों का बैर हो । ये (विरोधी ) हर जन्म में बुराई से लड़ने वालों के विरोधमें खड़े हो जाते हैं । इस जन्म में तो स्वामी रामदेव जी ने अभी तक प्रत्यक्ष में किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा । हाँ ; परोक्ष में तो बहुतों का नुकसान हो रहा होगा । क्या पता आपका भी कुछ नुकसान हो रहा हो ; जो आप आँख मूंदकर विरोध करते हो ।
पर इस बार तो आप इन सब बुराईयों के प्रति समर्पित सम्मानित लोगों और उनकी कम्पनियों के लिए जैसेआसमान से कूदे कुम्भकर्ण की तरह हो । जो स्वयं तो स्वामी जी के विरुद्ध बोल नहीं पा रहे थे ; ये कहना चाहिए किसच के आगे घिग्घी बनी हुयी थी । आपने उनमे एक नई उम्मीद जगा दी; कि कोई है ! जो निरपट झूठ बोल सकताहै । केवल बोल ही नहीं सकता अपितु ; अपने जैसे ही कुछ औरों (चिकित्सकों) को भी इसी कार्य के लिए राजी करसकता है । आपने सिद्ध कर दिया कि आपमें कितनी सम्भावनाये हैं ; किसी भी सच को एकदम से नजरंदाज करनेकी ।

अब देखो न जिस लौकी के जूस को मरने वाला पिछले चार साल से सपत्नीक पी रहा था, इसका तो आपने जिक्रकिया, जिस दिन वह मरा वह जूस जहरीला था, आपने इसका भी जिक्र किया; पर जहर की बात इससे आगे नहींकरी ।

इससे आगे तो बस ! मन गए भाई आपको, आपने तो सदियों से चली आ रही खानपान की परम्पराओं को हीकटघरे में खड़ा करवा दिया जैसे वो सब भी बाबा जी ने ही बताया हो । जबकि; हमने जो सुना पिछले पांच साल सेबाबा जी कडवी लौकी का जूस या सब्जी दोनों
के लिए मना करते हैं । और भी सावधानियां जो हो सकती हैं बताते हैं। पर विरोधी अगर सच बात को मान कर चले तो विरोध कैसे हो ? इसीलिए आपने अपने समर्थन में कुछ औरविरोधी भी राजी किये जो पेशे में शायद दवा कम्पनियों की सलाह को भगवान का कथन मानते हैं और समाज मेंभगवान् की तरह माने जाते हैं पर स्वयं ; भगवान और भारतीयता को नहीं मानते ।

वो
चिकित्सक ; आखिर कब तक चुप बैठते या सब्र करते । कोई झोला छाप चिकित्सक तो हैं नहीं; कि सौ - पचासरुपये की हानि हो रही हो । ये तो पंचसितारा चिकित्सक हैं । एक बीमार भी अगर स्वामीजी के द्वारा बताये खान - पान व रहन - सहन की पारंपरिक विधियों से ठीक हो गया तो इनका तो लाखों का नुकसान हो जाता होगा । यहाँ तोलाखों के ठीक होने का सिलसिला चल पड़ा है ।
क्या होगा ? इस तरह तो इनके पंचसितारा अस्पतालों के मालिकों की भूखे रहने की नौबत हो जाएगी ? स्वयंइनका क्या होगा ? जो आदतें बन गयीं हैं सुख - सुविधाओं (अय्यासियों) की, दवा कम्पनियों के द्वारा दिए जा रहेमौज – मस्ती के पैकेजों की, वह सब कहाँ से मिलेगा ? भई; ये प्रतिनिधित्व करते हैं अपने पेशे से जुड़े पेशेवरलोगों का ।

अब किसी छोटे-मोटे व्यक्ति का विरोध करना हो तो एकाध से ही काम चल जाता, ये स्वामी जी तो विश्व प्रसिद्धहस्ती हैं । केवल भारत में ही इनके द्वारा “कुछ” (बुरे )लोग पीड़ित नहीं हैं विश्व में भी हैं । जो नहीं चाहते कि ये सोयेहुए लोगों को जगाएं। अब देखो न विश्व का सबसे बड़ा कैंसर का अस्पताल एम. डी. एंडरसन के वैज्ञानिक जैसे लोगभी जाग गए और स्वामी रामदेवजी के साथ मिल कर कैंसर पर शोध के लिए लालायित हैं ।
और हमारे इन चिकित्सकों को बाबाजी नीम हकीम से अलग कुछ नहीं लगे । पढ़ते ही ऐसा लगा जैसे बाबाजी सेइनका जन्म-जन्मान्तरों का बैर हो । शायद हो भी ; क्या पता । लगता है जैसे इहें बाबाजी के कामों से बहुत हीज्यादा आर्थिक हानि हुयी है ; या ! कुछ ज्यादा ही लाभ के लालच में ( दवा कम्पनियों द्वारा ) ये चिकित्सकप्रायोजित होंगे ।
इतनी बड़ी-बड़ी डिग्रियां ले रखी हैं तभी तो पंचसितारा चिकित्सक कहलाते हैं । पर फिर भी किसी को नहीं सूझाकि वह जूस जहरीला कैसे हुआ । कोई भोजन में फाईबर की बात कर रहा है तो कोई घरेलू नुस्खों की , कोई प्रमाणपर आधारित दवा की बात कर रहा है तो कोई ड्रग एक्ट की , किसी को जूस पीकर मरना मजाक भी लगा, कोई जूसऔर सूप को कैसे पीना चाहिए यह ही बताने लगा ।
बुरा न मानना; इनसे तो अपने झोला छाप ही अच्छे जो आम लोगों को सवेरे जल्दी उठने, कुछ प्राणायाम योगकरने और सही खान-पान के तरीके अपनाने को कहते हैं ।
धन्य होए ऐसे पत्रकार – पत्रकारिता – पत्रिकाएं और चिकित्सक


मैंने इस पत्रिका के लिए "प्रतिक्रिया" इमेल द्वारा भेजी थी जिसके जवाब में चेतावनी संदेश आया कि दोबारा न भेजना । मेल यह है :

संडे नई दुनिया पत्रिका के 18 से 24 जुलाई के अंक में आवरण कथा "देसी दवा खतरा- ए-जान" पढ़ कर लगा; ' कि पूरी रिपोर्ट स्वास्थ्य संपादक ने पूर्वाग्रह से ग्रसित मनोस्थिति में लिखी है ' |
इस लेख को पढ़ कर लगा कि लेखक और कुछ चिकित्सक केवल स्वामी रामदेव के विरोध के लिए कमर कसे हुए हैं और कुछ नहीं | वरना ; जिस लौकी के जूस पीने से मौत हुयी है वह जहरीली थी, " इस बात को उस दिन सभी समाचारों में दिखाया भी गया था और देश की जनता ने देखा भी था, उस दुकान में अन्य लौकियाँ भी जहरीली पाई गयीं , इन्होने भी देखा होगा , " पर इन विरोधी मानसिकता वालों ने जहर को मुद्दा न बनाकर बाबा रामदेव और सदियों से चली आ रही भारतीय खानपान की परम्पराओं को कटघरे में घेरने का असफल प्रयास किया |
वरना ; जिस लौकी को भारतीय समाज जन्म - जन्मान्तरों से विभिन्न तरीकों से खाता आ रहा है,और मरने वाला भी पिछले चार साल से पत्नी के साथ लौकी का ही जूस पी रहा था वह जिस कारण से मरा है वह लौकी का जहरीला होना है पर इन्होने उस जहर की कहीं पर भी एक लाईन में चर्चा नहीं की | बड़े-बड़े विशेषज्ञों में से किसी को जूस पीकर मरना हास्यास्पद भी लगा पर जहर की बात फिर भी नहीं सूझी |
आज कितने लोग उन एलोपैथी की दवाओं के दुष्प्रभाव से मर रहे हैं | जिन्हें प्रमाण पर आधारित दवाएं कहा जाता है | जिनका परिक्षण पहले जानवरों पर किया जाता है, जिन्हें मधुमेह है या नहीं का पता नहीं होता | फिर ; मानव रोगियों को दिया जाता है, पर "ये" जानते हुए भी नहीं बताएँगे , पर हमने भी शोधों में पढ़ा है कि उन दवाओं के दुष्प्रभावों से मरीज अपनी आँखें , किडनी, आंतें ,दिल , दिमाग सब बीमार बना लेता है | एक दिन दवा खाते - खाते उस दवा को भी पचाने की शक्ति खोकर काल कवलित हो जाता है | ऐसे लाखों में नहीं आज तक करोड़ों मामले हो गए होंगे |
मेरी नजर में इन्होने वही कार्य किया जो; विरोधियों को ही करना चाहिए | ताकि वह अपनी पहचान बना सकें | स्वामी रामदेव जी के अभियान को इससे बल ही मिलेगा | जैसे ; बिना दो तारों के विद्युत् बल्ब नहीं जलता, वैसे ही बिना विरोधी के; सही काम करने वाले को भी सफलता मिलने में समय अधिक लगता है |

Monday, July 19, 2010

हीन मानसिकता वालों के लिए इसे पढना इलाज के समान है

मेरे पास एक इमेल आया उसे आप लोगों (blogaron)के साथ बाँटना उचित समझा | भेजने वाले है आशुतोष जो

www।bharatswabhimantrust.org के सदस्य हैं

हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं
1) सन माईक्रोसिसटमस (Sun MicroSystems ) के को-फाउंडर विनोद खोसंला भारतीय हैं

2) पेंटियम चिप ( Pentium ) के निर्माता विनोद धम भारतीय हैं

3)विश्व का तीसरा सबसे अमीर व्यक्ति लक्ष्मी मित्तल भारतीय हैं ( Fortune पत्रिका के अनुसार )

4)बेब आधारित -मेल में हॉट मेल प्रथम है, इसके निर्माता सबीर भाटिया भारतीय हैं

5)एटी एंड टी बैल लेबोरेट्री जहाँ कम्पुटर की भाषा C , C++ , Unix बनी वहाँ के प्रेसिडेंट ( President ) अरुन नेत्रावली भारतीय हैं

6)Hewlett Packard के जनरल मैनेजर राजीव गुप्ता भारतीय हैं

7)माइक्रोसोफ्ट के Testing Director of Windows 2000 सजंय तेजवरिका भारतीय हैं

8)सिटी बैंक , Mckensey और Standard chart के Chief Executives क्रमश विक्टोर मेनेजेस , रजत गुप्ता और राना तलवार सभी भारतीय है।

9)अमेरीका में 32.2 लाख भारतीय हैं (1.5% अमेरीका की जनसंख्या)
साथ ही
38% डाक्टर अमेरीका में , भारतीय हैं
12% वैज्ञानिक अमेरीका में , भारतीय हैं
36% नासा के वैज्ञानिक भारतीय हैं
34% माइक्रोसोफ्ट के कर्मचारी भारतीय हैं
28% IBM के कर्मचारी भारतीय हैं
17% INTEL के वैज्ञानिक भारतीय हैं
13% XEROX के कर्मचारी भारतीय हैं


भारत के इतिहास के अनुसार, विगत 10000 वर्षों में भारत नें किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।

जब कई संस्कृतियाँ 5000 साल पहले घुमंतू वनवासी थीं, भारतीय सिंधु घाटी (सिंधु घाटी सभ्यता) में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना हुई।

भारत का अंग्रेजी में नामइंडियाइंडस नदी से बना है, जिसके आस पास की घाटी में आरंभिक सभ्यंताएं निवास करती थीं। आर्य पूजकों में इस इंडस नदी को सिंधु कहा गया

पर्शिया के आक्रमकारियों ने इसे हिन्दुक में बदल दिया। नामहिन्दुहस्ता ने सिंधु और हीर का संयोजन है जो हिन्दुकओं की भूमि दर्शाता है।

शतरंज की खोज भारत में की गई थी।

बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का अध्य्यन भारत में ही आरंभ हुआ था।

•‘स्था मूल्यो प्रणालीऔरदशमलव प्रणालीका विकास भारत में 100 वर्ष ईसा पूर्व में हुआ था।

विश्व् का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वुर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बनें हैं यह भव्यमंदिर राजा राज चोल के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (१००४ AD और 1009 AD के दौरान) निर्मित किया गया था।

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्व का छठवां सबसे बड़ा देश तथा प्राचीन सभ्यभताओं में से एक है।

सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्दी में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पासे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्तु इसका अर्थ वही रहा अर्थात अच्छे काम लोगों को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम दोबारा जन्म के चक्कर में डाल देते हैं।

दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्थान पर है। यह समुद्री सतह से 2444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बना कर 1893 में तैयार किया गया था।

भारत में, विश्व भर से सबसे, अधिक संख्या में डाक घर स्थित हैं।


विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता भारतीय रेल है, जिसमें दस लाख से अधिक लोग काम करते हैं।

विश्वम का प्रथम विश्वंविद्यालय 700 वर्ष ईसा पूर्व, तक्षशिला में स्था पित किया गया था। इसमें 60 से अधिक विषयों में 10,500 से अधिक छात्र दुनियाभर से आकर अध्यन करते थे। नालंदा विश्ववविद्यालय चौथी शताब्दी, में स्था पित किया गया था जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है।


आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्सा शाखा है। शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक ऋषि नें 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।

भारत 17वीं शताब्दी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्य आने से पहले सबसे सम्पन्न देश था। क्रिस्टोफर कोलम्बस ने भारत की सम्पन्नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजा, उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।

नौवहन की कला और नौवहन का जन्म 6000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्कृ शब्द नवगति से उत्पन्न हुआ है। शब्द नौ सेना भी संस्कृत शब्द नोउ से हुआ।


भास्काराचार्य ने खगोल शास्त्र के कई सौ साल पहले पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।


भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारापाईका मूल्य ज्ञात किया गया था और उन्होंने जिस संकल्परना को समझाया उसे पाइथागोरस की प्रमेय करते हैं। उन्हों ने इसकी खोज छठवीं शताब्दी में की, जो यूरोपीय गणितज्ञों से काफी पहले की गई थी।

बीजगणित, त्रिकोणमिति और कलन का उद्भव भी भारत में हुआ था। चतुष्पीद समीकरण का उपयोग 11वीं शताब्दी में श्री धराचार्य द्वारा किया गया था। ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसे बड़ी संख्याद 106 थी जबकि हिन्दुयओं ने 10*53 जितने बड़े अंकों का उपयोग (अर्थात 10 की घात 53), के साथ विशिष्टे नाम 5000 बीसी के दौरान किया। आज भी उपयोग की जाने वाली सबसे बड़ी संख्या टेरा 10*12 (10 की घात12) है।

वर्ष 1896 तक भारत विश्व में हीरे का एक मात्र स्रोत था
(स्रोत: जेमोलॉजिकल इंस्टीलट्यूट ऑफ अमेरिका)

बेलीपुल विश्वमें सबसे ऊंचा पुल है। यह हिमाचल पवर्त में द्रास और सुरु नदियों के बीच लद्दाख घाटी में स्थित है। इसका निर्माण अगस्त 1982 में भारतीय सेना द्वारा किया गया था।

सुश्रुत ऋषि को शल्य चिकित्सा् का जनक माना जाता है। लगभग 2600 वर्ष पहले सुश्रुत और उनके सहयोगियों ने मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों को लगाना , शल्य क्रिया द्वारा प्रसव, अस्थिभंग जोड़ना, मूत्राशय की पथरी, प्लास्टिक सर्जरी और मस्तिष्क की शल्य क्रियाएं आदि करीं

निश्चेतक का उपयोग भारतीय प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में भली भांति ज्ञात था। शारीरिकी, भ्रूण विज्ञान, पाचन, चयापचय, शरीर क्रिया विज्ञान, इटियोलॉजी, आनुवांशिकी और प्रतिरक्षा विज्ञान आदि विषय भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलतें हैं।

भारत से 90 देशों को सॉफ्टवेयर का निर्यात किया जाता है।


भारत में 4 धर्मों का जन्म हुआहिन्दु धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिक्ख धर्म, जिनका पालन दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा करता है।

जैन धर्म और बौद्ध धर्म की स्थापना भारत में क्रमश: 600 वर्ष ईसा पूर्व और 500 वर्ष ईसा पूर्व में हुई थी।

इस्लाम भारत का और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।

भारत में 3,00,000 मस्जिदें हैं जो किसी अन्य देश से अधिक हैं, यहां तक कि मुस्लिम देशों से भी अधिक।

भारत में सबसे पुराना यूरोपियन चर्च और सिनागोग कोचीन शहर में है। इनका निर्माण क्रमश: 1503 और 1568 में किया गया था।

ज्यू: और ईसाई व्यक्ति भारत में क्रमश: २०० वर्ष ईसा पूर्व और 52 ईसा पश्चात से निवास करते हैं।


विश्व में सबसे बड़ा धार्मिक भवन अंगकोरवाट, हिन्दु मंदिर है जो कम्बोडिया में 11वीं शताब्दी् के दौरान बनाया गया था।

तिरुपति शहर में बना विष्णुक मंदिर 10वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था, यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक गंतव्य है। रोम या मक्का धार्मिक स्थलों से भी बड़े इस स्थान पर प्रतिदिन औसतन 30 हजार श्रद्धालु आते हैं और लगभग 6 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति दिन चढ़ावा आता है।


सिक्ख धर्म का उदगम पंजाब के पवित्र शहर अमृतसर में हुआ था। यहां प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर की स्थापना 1577 में गई थी।


वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है भगवान बुद्ध ने 500 वर्ष ईसा पूर्व में यहां आगमन किया और यह आज विश्व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।

भारत द्वारा श्रीलंका, तिब्बत, भूटान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के 3,00,000 से अधिक शरणार्थियों को सुरक्षा दी जाती है, जो धार्मिक और राजनैतिक अभियोजन के फलस्वरूप वहां से निकाल दिए गए हैं।

माननीय दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के निर्वासित धार्मिक नेता है, जो उत्तरी भारत के धर्मशाला से अपने निर्वासन में रह रहे हैं।

युद्ध कलाओं का विकास सबसे पहले भारत में किया गया और ये बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा पूरे एशिया में फैलाई गई।

योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यहां 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद हैं।