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Wednesday, May 26, 2010

आखिर झगड़ा क्या है

मैं जब भूखा होता हूँ तो, खाना खा लेता हूँ ।
यह नहीं सोचता, कि उसे पैदा किया किसने ॥
मैं जब प्यासा होता हूँ तो, पेय पी लेता हूँ ।
यह नहीं सोचता, कि उसे पीने लायक बनाया किसने॥

मुझे जब नींद आती है तो, मैं सो जाता हूँ ।

रजाई-गद्दे में लिपट कर ,बिना जाने उन्हें बनाया किसने ॥

मैं जब अचेत हुआ राह चलते तो,लेगया अस्पताल कौन मुझे ।

चिकित्सा तो हुयी मेरी, पर मैंने नहीं पूछा करी किसने॥

तन ढंकने के लिए ,वस्त्र धारण करता हूँ मैं जो,

मुझे नहीं पता उन्हें बनाया किसने ॥

तो…..! आखिर झगड़ा है क्या ? मेरी समझ में नहीं आया ॥

जो आया...! वो ये, कि जैसे राह चलते हम कितने ही सावधान हों,

अपनी राह चल रहे हों, कोई दूसरा आकर हमें टक्कर मार जाता है ।

2 comments:

  1. यदि इन्सान इतनी सी बात समझ जाए तो फिर किसी बात का झगडा ही न रहे.....
    अच्छा चिन्तन!
    आभार्!

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