यह नहीं सोचता, कि उसे पैदा किया किसने ॥
मैं जब प्यासा होता हूँ तो, पेय पी लेता हूँ ।
यह नहीं सोचता, कि उसे पीने लायक बनाया किसने॥
मुझे जब नींद आती है तो, मैं सो जाता हूँ ।
रजाई-गद्दे में लिपट कर ,बिना जाने उन्हें बनाया किसने ॥
मैं जब अचेत हुआ राह चलते तो,लेगया अस्पताल कौन मुझे ।
चिकित्सा तो हुयी मेरी, पर
तन ढंकने के लिए ,वस्त्र धारण करता हूँ मैं जो,
मुझे नहीं पता उन्हें बनाया किसने ॥
तो…..! आखिर झगड़ा है क्या ? मेरी समझ में नहीं आया ॥
जो आया...! वो ये, कि जैसे राह चलते हम कितने ही सावधान हों,
अपनी राह चल रहे हों, कोई दूसरा आकर हमें टक्कर मार जाता है ।
यदि इन्सान इतनी सी बात समझ जाए तो फिर किसी बात का झगडा ही न रहे.....
ReplyDeleteअच्छा चिन्तन!
आभार्!
nice
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