मनुष्य एक ही बच्चे को जन्म क्यों देता है ? किसी अपवाद को छोड़ कर।
श्रष्टि द्वारा निर्धारित है या कहना चाहिए, 'प्राक्रतिक तौर पर' कि मनुष्य एक ही बच्चे को जन्म देता है । और बहुत से प्राणी ऐसे हैं; जो दो-चार- दस से लेकर सौ या उससे भी ज्यादा बच्चों को जन्म देते हैं । ऐसा क्यों हुआ ? इस गुत्थी को डार्विन ने भी शायद नहीं बताया।
बैठा-बैठा सोचता रहा। बिजली थी नहीं। काम-धंधा वैसे भी आजकल मंदा है। सोचने के आलावा कोई और काम भी नहीं था । खाली बैठे हर समय कुछ पढ़ने में भी; ‘देखने वाले "बुद्धिजीवी"समझने लगते हैं(बुद्धिजीवी केवल मार्क्सवादी होते हैं ।"मैं ऐसा पापी नहीं बनना चाहता")। इसलिए सोचता रहा…सोचता रहा, और इस निष्कर्स पर पहुंचा।
कि; जब श्रष्टि का निर्धारण हुआ होगा, तो श्रष्टि के चक्र की पूर्ति के लिए पुनर्जन्म की आवश्यकता हुयी।पापों का-कुकर्मों का दंड देना जरुरी था। श्रष्टि कर्ता ने ये सोच कर-समझ कर निर्धारित किया, कि मनुष्य धीरे-धीरे इतना कुकर्मी हो जायेगा , कि पुनर्जन्म के लिए उतनी आत्माओं कि संख्या अधिक हो जाएगी। कहाँ खपायें ? खपत करनी मुश्किल हो जाएगी; क्योंकि कुकर्मों का दंड देना भी जरुरी है। तभी श्रष्टि चक्र भी पूरा होगा। तो साहब उन कुकर्मी मनुष्यों की आत्माओं को खपाने के लिए कई प्राणियों को अधिक संतान का लाभ दिया गया। जिससे उन कुकर्मी आत्माओं को उनके किये पापों का दंड मिलता रहे जितनी ज्यादा मात्रा में मनुष्य पाप करेगा,मरकर वह इन योनियों में, 'जिसमें सूअर के तो दस बच्चे और सांप जैसे प्राणी के और भी ज्यादा बच्चे होते हैं' पैदा होगा। जिससे प्रयाप्त मात्रा में इन पापी आत्माओं की खपत हो सके। मेरा सोचना पता नहीं कितना सही है। ये आपने बताना है ।
No comments:
Post a Comment
हिन्दी में कमेंट्स लिखने के लिए साइड-बार में दिए गए लिंक का प्रयोग करें