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Sunday, May 16, 2010

"विवाह से पूर्व प्रेम, केवल वासनात्मक ही होता है”


आज वैज्ञानिक जो भी शोध कर रहे हैं और उसके निष्कर्षों पर पहुँच रहे हैं, ‘वह सब हमारे पौराणिक शास्त्रों में पहले से ही वर्णित है’। पर;'क्योंकि आज आसुरी प्रव्रत्ति की प्रबलता के वशिभूत हुए'; ‘हम; या हमारे निति-नियंता और तथाकथित बुद्धिजीवी’, “उन विचारों को”, “उन शोधों कोयाउनके निष्कर्षों कोकेवलकपोल-कल्पितमान कर; केवल अनदेखा कर रहे हैं, अपितु; कभी-कभी तो उनकी खिल्ली भी उड़ाते हैं.
अगर अपनी दृष्टि (सोच) को हम थोड़ा सा विकसित कर लें (या होने दें) , मतलब; अपनी मूल संस्कृति और संस्कारों के विषय में, 'यदि हम अपने मन में उठ रहे प्रश्नों को विज्ञान की द्रष्टि से', 'नैतिकता की दृष्टि से विचार करेंगे तो निश्चित ही सत्य के निकट पहुंचेंगे'। और; 'देखेंगे कि हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित दृष्टान्तों के द्वारा, उद्धरणों के द्वारा', जो संस्कार-परम्पराएँ-मान्यताएं-मर्यादाएं और नीति, केवल मानव-मात्र के लिए अपितु सम्पूर्ण श्रष्टि और प्रकृति के लिए;'मतलब चराचर जगत के लिए कल्याणकारी है'

जो कुछ हमारे ऋषि-महर्षियों ने हमारे धर्म शास्त्रों में बताया है या निर्धारित किया है; वह पूरे वैज्ञानिक शोधों के आधार पर किया हैयह हमारी भूल होगी; अगर, "हम यह सोचें कि विज्ञान इसी कलियुग में इतना प्रगति कर रहा है", 'पूर्व के युगों में विज्ञान इससे कहीं ज्यादा प्रगति कर चुका था'। जाने कितनी बार ये सृष्टि अपने चरम पर पहुँच कर प्रलय को प्राप्त हो चुकी है

'हमारे ऋषि-महर्षि विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में आज से कई गुना अधिक प्रगति कर चुके थे'।'जिसे कालांतर में हमारे धर्म ग्रंथों में आध्यात्मिक रूप में दर्शाया गया'। 'चाहे वह राम-रावण युद्ध हो या कृष्ण-कंस युद्ध हो, चाहे महाभारत जैसा विश्व युद्ध हो या कई देवियों द्वारा समय-समय पर अलग-अलग असुरों के संहार का युद्ध हो'। "सभी विज्ञान की पराकाष्ठा" सिद्ध करते हैंबस; दृष्टि (सोच) जरा सा वैज्ञानिक बनानी पड़ेगी
'इसी तरह से सामाजिक नियमों-मर्यादाओं को पाप और पुण्य के रूप में आम जन के मन-मस्तिष्क पर ढाल देना; कि बुरा करोगे तो बुरा पाओगे, भला करोगे तो भला ही पाओगे, करके; मनुष्य को पाप कर्मों से दूर रखा और जो भी कार्य करने की प्रेरणा दी 'वह सम्पूर्ण चराचर जगत के भले के लिए हो; दी गयी
इस विषय पर वैसे तो कई प्रष्ठ भरे जा सकते हैं। 'पर जिन लोगों ने अपने मन-मस्तिष्क के झरोखे चारों तरफ से खुले छोड़े होंगे वह इतने से ही पूरी ताजगी प्राप्त कर लेंगे , और जिन्हें अपने मन-मस्तिष्क के झरोखों को बंद रखने के लिए कहा और दीक्षित किया गया होगा वह घोड़े की आँखों पर लगे पट्टे की तरह केवल एक ही तरफ को देखने का अभ्यास बना चुके हैं', "उन्हें तो यह कह दिया गया है कि धर्म अफीम की तरह होता है" और वह मान गए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल बंद कर दिया जिससे वह कुंठित हो गयी
अब यह अलग से चर्चा का विषय है कि कुछ बुराईयाँ धर्म के नाम पर, परम्पराओं के नाम पर, रीती-रिवाजों के नाम पर, होने लगीं जिनका ये हवाला देकर अपना उल्लू सीधा करने के असफल प्रयास करते रहते हैंपर अभी केवल हवा में लट्ठ चला रहे हैंलेकिन इनके इस तरह के आक्रमण से हमारा पारंपरिक समाज, “हड़बड़ा करजो बुराईयाँ हैं उन्हें ही कट्टरता के साथ समाज पर थोपना चाह रहे हैंया उन बुराईयों से बचाने के लिए या अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए पाप-पुण्य की व्यवस्था को भूल कर या कुछ-कुछ इनके विचारों से प्रेरित होकर,’कि; "पाप-पुण्य कुछ नहीं होताजो है बस यही जन्म है" मान कर कई बुराईयों में जकड़े जा रहे हैंजैसे, “जो जीता वही सिकंदरया "प्रेम की गलत व्याख्या" और "इज्जत के नाम पर प्रेम हत्याएं","कन्या भ्रूण हत्याएं", "समाज में एक दूसरे की देखा-देखी स्वयं भी वैसा ही करना", "अपने आप विचार नहीं कर पाना"।

ऐसी ही कई बुराईयों के मूल में देखें तो हमें अपनी संस्कृति से दूर होना भी एक मुख्य कारण नजर आएगाजैसे ताजा गरम मामला खाप पंचायतों का ही ले लें , इसमें हम एक ही पक्ष क्यों देख रहे हैं ? हमारे युवा वर्ग को ये बचपन से बताया होता कि सगोत्रीय युवक-युवती बहन-भाई के सामान होते हैं, और प्रेम केवल पत्नी-पत्नी बनकर ही नहीं होता, प्रेम बहन-भाई के रूप में भी हो सकता हैतो शायद यह एक सार्थक कदम होगाखाप पंचायतों के लिए भी और हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के लिए भी जिसने प्रेम को केवल वासना का द्योत्तक बना दिया हैजबकि वासना की पूर्ति के लिए और स्रष्टि की निरंतरता के लिए केवल मर्यादित रूप से रहने के लिए, विवाह को समाज में धर्म के रूप में स्थापित किया गयाक्या जिनका विवाह, बिना पहले प्रेम किये होता है तब प्रेम नहीं होता ? "विवाह से पूर्व प्रेम, केवल वासनात्मक ही होता है आज अधिकांश प्रेमी इसी बात को सिद्ध कर रहे हैंजब इनकी जरुरत की पूर्ति नहीं होती तो ये तेजाब फैंकने और हत्या करने जैसे दुष्कर्मों से अपने जीवन और समाज को कलंकित करते हैं

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