मेरी पहचान… कुछ भी नहीं;
आत्मा ही तो हूँ,
हिन्दू के घर जन्मा; हिन्दू हुआ,
मुसलमान के घर पैदा होता,
मुसलमान हो जाता।
मेरी पहचान… कुछ भी नहीं;
आत्मा ही तो हूँ,
मनुष्य योनि में जन्मा; मनुष्य हुआ,
पशु योनि में पैदा होता,
पशु हो जाता।
मेरी पहचान…कुछ भी नहीं;
आत्मा ही तो हूँ,
पर “मैं” हूँ; अपनी इच्छा से नहीं,
जहाँ जन्मा.; अपनी इच्छा से नहीं,
नहीं जन्मता तो…? कहाँ होता,
कुछ नहीं पता।
मेरी पहचान कुछ भी नहीं
आत्मा ही तो हूँ ।
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कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
ReplyDelete"मेरी पहचान कुछ भी नहीं आत्मा ही तो हूँ"
ReplyDeleteअच्छी और सच्ची सोच - हार्दिक शुभकामनाएं