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Sunday, April 4, 2010

एक कविता "मेरी पहचान"

मेरी पहचान… कुछ भी नहीं;

आत्मा ही तो हूँ,

हिन्दू के घर जन्मा; हिन्दू हुआ,

मुसलमान के घर पैदा होता,

मुसलमान हो जाता

मेरी पहचान… कुछ भी नहीं;

आत्मा ही तो हूँ,

मनुष्य योनि में जन्मा; मनुष्य हुआ,

पशु योनि में पैदा होता,

पशु हो जाता

मेरी पहचान…कुछ भी नहीं;

आत्मा ही तो हूँ,

पर “मैं” हूँ; अपनी इच्छा से नहीं,

जहाँ जन्मा.; अपनी इच्छा से नहीं,

नहीं जन्मता तो…? कहाँ होता,

कुछ नहीं पता

मेरी पहचान कुछ भी नहीं

आत्मा ही तो हूँ

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2 comments:

  1. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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  2. "मेरी पहचान कुछ भी नहीं आत्मा ही तो हूँ"
    अच्छी और सच्ची सोच - हार्दिक शुभकामनाएं

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