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Monday, March 29, 2010

ओ कायरो

कोई तो होती ……

जो, पलट के कहती,

कि; हमें आरक्षण क्यों ?

हम पुरुषों से कम नहीं ,

पुरुष हमसे हैं,

तो, बिना पुरुषों के हम नहीं,

हम अशक्त नहीं, सशक्त हैं;

पुरुषों की धमनियों में,

बह रहा है जो, वो रक्त हैं ,

आरक्षण देकर हमें अशक्त ना बनाओ,

बल्कि राजनीति में जो; अपराधी,भ्रष्ट

और छिछोरे हैं; उन्हें भगाओ ,

स्वस्थ-संस्कारित समाज और राजनीति बनाओ,

अगर तुमसे ना बन पाए तो; " कायरो"

हम बनायेंगी , तुम घर बैठ जाओ

2 comments:

  1. समस्या तो फिर वहीं रहती. कुछ ही दिनों (वर्षों) में पुरूष आरक्षण मांगने लगते

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  2. यही जागृति तो चाहिए!पर आये कहाँ से?पता नहीं क्यूँ पिछलग्गू बन कर क्या नया हथिया लिया उन नादानों ने?
    कुंवर जी,

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