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Saturday, February 13, 2010

“जिन्हें हम शेर समझे थे वो मिटटी के निकले”

हमने तो कैसे-कैसे सपने देख लिए थे,

काश ये "सेना" वाले पूरे हिन्दुस्थान पर भी ऐसा ही भय व्याप्त कर पाते तो हम क्या-क्या कर सकते थे …

नंबर एक अगर पूरे हिंदुस्तान में इनका वैसा ही भय होता जैसा महाराष्ट्र में “बताते हैं” तो ये तो स्वयं सिद्ध होता कि ये राष्ट्रवादी हैं न कि अकेले महाराष्ट्रवादी, तो, इन्हें नक्सलवादियों से भिड़ाते, इनके द्वारा भ्रष्ट नेताओं,अधिकारियों को धमकी दिलवाते, किसी की हिम्मत ही ना होती कि भ्रष्टाचार कर सकेजो पकड़ा जाता उसे हाथों-हाथ दंड मिलना तय होताबलात्कारियों,हत्यारों अन्य अपराधियों की तो बाहर निकलने की हिम्मत ही ना होती

हालाँकि ऐसा महाराष्ट्र क्या मुम्बई में भी नहीं कर पा रही है ये सेना फिर; भी हम उम्मीद तो कर ही रहे थे, पर इन्होने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

“जिन्हें हम शेर समझे थे वो मिटटी के निकले”।

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