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Sunday, September 27, 2009

मास्टरजी की नेतागिरी

मास्टरजी भई मास्टरजी , कैसे होगी अब नेतागिरी।
अब तो स्कूल में जाना पड़ेगा , बच्चों को पढ़ाना पड़ेगा।

काम की रोटी खानी पड़ेगी , सम्मान का जीवन जीना पड़ेगा ........ ।

बचपन में एक गाना गाते हुए हम बच्चे खेलते थे,
“पोसमपा भई पोसमपा , डाकिये ने क्या किया ।
सौ रूपये की घड़ी चुरायी ,अब तो जेल में जाना पड़ेगा
जेल की रोटी खानी पड़ेगी ,जेल का पानी पीना पड़ेगा" ..... इत्यादि-इत्यादि । और भी आगे जाने क्या-क्या था इस गाने में ,
आज अपने जिले (अल्मोड़ा) के शिक्षा अधिकारी के द्वारा किए जा रहे सुधारवादी कार्यों को देख कर वही गाना याद आ गया । बस शब्द बदल गए । इन शिक्षा अधिकारी महोदय ने वास्तव में अपने अधिकारों-कर्तव्यों को जाना है। नाम से भी टी.एस.अधिकारी ने कुछ ही दिन में जिले के सरकारी शैक्षणिक माहौल में नई उर्जा भर दी है । इनके इन कार्यों से जो कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक थे उनमें तो उत्साह है लेकिन जो कर्तव्यों से विमुख थे और नेतागिरी के दम पर केवल अपने अधिकारों की बात करते थे
जिनके कारण कर्तव्यनिष्ठ शिक्षकों का सम्मान भी आम जनता में कम होता जा रहा था , उनके कस-बल जरुर ढीले पड़ गए हैं।
वे अपने आकाओं (विधायकों-सांसदों) के कान भरने
लगे होंगे लेकिन , अगर ऐसे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी पर कोई दबाव बनाया गया तो जनता उन नेताओं को भी कभी माफ़ नहीं करेगी।

1 comment:

  1. वास्तव में मास्टरों को एक अच्छा मास्टर चाहिए. आपने ठीक लिखा है लेकिन नेतागिरी जरुर होगी नेता ही तो सबको निकम्मा बनाते हैं.

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