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Friday, August 21, 2009

"सरकार चिंतित है"

कुछ सुना आपने , ओह ! सौरी-सौरी-सौरी…….,
समाचार अब सुनने की बात नहीं रहे,देखने की बात हो गए हैं ।
तो … ये कहना चाहिए कि ,कुछ देखा आपने “संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र”भारत की सरकार चिंतित है, ये लो हमारे मित्र ने लिखते-लिखते ही टोक दिया कि वह जब से देखने लायक हुए हैं सरकार को चिंतित ही देखा है। तो यह कहना चाहिए कि,
“सरकार चिंतित रहती है”।
चलो जो कुछ भी कहा जाए सवाल तो चिंता का है , हमारा तो ब्लॉग ही चिंता का अड्डा है । चलो अपनी बात पर वापस चलते हैं ।
तो साहब, सरकार चिंतित है, चिंता करने के लिए वैसे ही कम मुद्दे नहीं थे, कि मंदी ने चिंता पैदा कर दी , अब ,क्योंकि ये ग्लोबल मुद्दा था, सभी चिंता कर रहे थे तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, कुछ गिनने लायक लोगों और कम्पनियों को इससे असर हो रहा था इसलिए उन्हें कुछ "पैकेज" देकर उनका मुहं बंद कर दिया। पर वह मंदी अपने बच्चे के रूप में महंगाई को छोड़ गई ,ये तो इतनी जल्दी बड़ी हुयी कि कब पैदा हुयी कब जवान हो गई पता ही नहीं चला । सरकार कई और चिंताओं से ग्रस्त थी ,जब सब चिल्लाने लगे तब पता चला ,तब तक देर हो चुकी थी ,करने को कुछ बचा ही नहीं था , जमाखोरों ने जो जमा करना था वह कर चुके थे ,अब उनपर कार्यवाही करने पर पता लगा कि वह ज्यादातर चुनाव के काम आने वाले अपने ही लोग हैं। क्या कर सकते हैं ?अगर सरकार कुछ करती है तो संगठन बिदकता है ,कुछ जमाखोर, विपक्षियों के समर्थक हैं पर उन पर भी कार्रवाही नहीं कर सकते ,वो हमारी पोल खोल देंगे । मंदी से प्रभावितों की तरह कोई पैकेज भी नहीं दे सकते ,क्योंकि महंगाई से प्रभावितों की संख्या ज्यादा है । ज्यादा संख्या वैसे भी भेड़-बकरी की तरह होती है,हांकते रहो – हांकते रहो ,कुछ करेंगे थोड़े ही ,पर चिंता तो लगी रहती है।
ये चिंताएँ कम न थी कि ऊपर से मानसून हर बार दगा दे जाता है जहाँ चाहिए वहां न हो कर जहाँ मर्जी बाढ़ ले आता है ,सूखे की चिंता-गीले (बाढ़ ) की चिंता , आतंकवादियों की चिंता, नकली नोटों की चिंता, पड़ोसियों से चिंता,अपनों (नक्सलियों)से चिंता , भ्रष्टाचार से चिंता, बढ़ते अपराध से चिंता ,उधर विपक्ष की चिंता –इधर हाई कमान की चिंता ,अब क्या हो, सरकार चिंतित है और चिंता अच्छी बात नहीं होती सेहत पर असर पड़ता है ,सरकार ज्यादा चिंता करती है इसीलिए बीमार रहती है,कुछ कर नहीं पाती है…… केवल चिंता ही करती है, इसलिए हम चिंतित हैं ।

2 comments:

  1. शंकर जी
    सादर वन्दे !
    भाई जी ये इसलिए भी चिंतित हैं कि कहीं बेटे कि वजह से खुद को भी न स्तीफा देना पड़े,
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
    रत्नेश त्रिपाठी

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  2. आपकी चिंता भी तो जायज है. आखिर सरकार किस किस चीज़ की चिंता करे!

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