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Saturday, August 1, 2009

"जब अंग्रेज बोलें तब हम निहाल"

जी हाँ यही है हमारे देश का हाल , अब देखो न योग-आयुर्वेद को हमारे यहाँ आज से पहले भी कई योगी व संत प्रतिष्ठा दिला चुके हैं, और वर्तमान में तो बाबा रामदेव लगभग पुरी दुनिया में छाये हुए हैं, लेकिन हमारे यहाँ के मीडिया (इ.और पी. मीडिया) को वह तभी नजर आते हैं जब कोई विवाद हो ,उस समय ये बाबा रामदेव हो या कोई अन्य उन्हें अपने स्टूडियो में बुलाकर इंटरव्यु करवाते हैं लेकिन अंदाज ऐसा होता है जैसे हँसी उडानी हो ।
पर उसी योग के विषय में किसी विदेशी ,वो भी अंग्रेज ने कोई साधारण सी बात कह दी, तो इनके लिए वह प्रकाशनीय और प्रसंसनीय हो जाती है । वह इनके लिए बड़ी ख़बर हो जाती है ,उसे ये भीगे हुए अल्पवस्त्रों में महिला को दिखाते हुए (फोटो) समाचार भी काफी बड़ा बनाकर छापते हैं।
इनकी इस मानसिकता से इन्हें प्रत्यक्ष में तो लगता होगा कि, कोई हानि नहीं हो रही ,लेकिन आम जनता की नजर में "ये" और "इनका संस्थान" उपहास का पात्र बनते हैं । जिससे इनकी विश्वसनीयता कम होती है।
अब देखिये न स्वामी रामदेव को आज भारत में कौन नहीं जानता, भारत में ही नहीं विदेशों में भी योग-आयुर्वेद के लिए बाबा ने भारत का नाम बहुत ऊँचा किया है, लेकिन हमारे देश के मीडिया (किसी भी) ने केवल एक छोटे से समाचार से ज्यादा महत्त्व नहीं दिया ,जबकि फिल्मी समाचार पूरे-पूरे दिन चलते हैं ,किसी हीरो-हिरोईन की शादी में तो ये,बिन बुलाये पहुँच जाते हैं फ़िर पिटते भी हैं पर उसे फ़िर भी निर्लज्ज बनकर दिखाते हैं। तर्क ये कि उन्हें जनता देखना चाहती है,पता नहीं इन्होंने जनता से कब पूछा, कि तुम क्या देखना चाहते हो ।
दरअसल इन्हें पता है कि भारत की जनता को जो दिखाओ वो वही देखेगी ,फ़िर सर्वे भी तो इन्हीं ने करने-करवाने हैं ये सिद्ध कर सकते हैं । पर कितने दिन..?
घड़ी की सुईयों को कोई नहीं रोक सकता इन जैसे लोगों को भी शर्मिंदगी का अहसास होगा।

1 comment:

  1. बढिया विचार प्रेषित किए हैं।बधाई।

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