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Sunday, August 30, 2009

जी हाँ जो अभी तक महान हैं उन्हीं की महानता कम होने का डर है

जी हाँ , जो अभी तक महान हैं ,जाहिर है उन्हीं की महानता कम होने का डर है । जिन्हें महान माना ही नहीं उन्हें क्या डर, या जिन्हें दबी-ढंकी आवाज में महान माना, जैसे मज़बूरी हो, उन्हें भी कोई डर नहीं हो सकता , जैसे…. सरदार बल्लभ भाई पटेल,नेताजी सुभाष चंद्र बोस , लाल बहादुर शास्त्री, वीर सावरकर, व अन्य भी बहुत से वे क्रान्तिकारी जिन्हें ,बापू व अंकल भटके हुए समझते थे और इस कारण अंग्रेजो से शाबाशी पाते थे । जिनकी कानूनी पैरवी जिन्ना ने तो करी पर बापू व अंकल ने नहीं करी । आजादी के समय के समझौतों को और घटनाओं को आम जन को पता लगने पर सबसे ज्यादा डर उन्हीं को है जिनके बारे में इतना भ्रम फैलाया गया कि अब ये डर है कि कहीं सच पता चलने पर उनकी इतनी इज्जत भी न रहे जितनी होनी चाहिए थी । जबकि आजादी के समय कुछ समझौते मज़बूरी के कारण भी करने पड़े थे ,जैसा जसवंत सिंह की पुस्तक के बारे में चर्चाएँ पढ़- सुन कर लग रहा है ….उस समय पटेल नंबर वन नहीं थे इसलिए हो सकता है वो मज़बूरी में हों, पर जो नंबर वन थे उनकी मज़बूरी थी या अन्य कोई कारण । इस बात का पता लगने पर हो सकता है उनकी महानता कम हो जाए । ऐसा डर है। इससे किसी के वोट कम हो सकते हैं और किसी के वोट बढ़ भी सकते हैं। पर जसवंत सिंह जैसे लेखक होते रहेंगे (तब भी हुए थे) इतिहासकार तो नहीं पर सच लिख कर कोपभाजन होते हैं। इसीलिए इतिहास को दबाया-छुपाया नहीं जा सकता ।

महात्मा गाँधी को किसलिए महान माना जाता है...?`

महात्मा गाँधी को किसलिए महान माना जाता है… ?
अगर स्वतंत्रता मिलने के लिए महान माना जाता है तो , हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि स्वतंत्रता अकेले उनके प्रयासों से नहीं मिली थी , उनके आन्दोलन में आने से पहले से ही इसके लिए प्रयास आरम्भ हो चुके थे ,
और प्रयास ही नहीं हुए थे ,बल्कि कईयों ने अपनी जान तक देदी थी ।
और अगर अहिंसा के कारण महान माना जाता है तो यह सिद्धांत भी उन्होंने ही दिया था ऐसा नहीं कह सकते । हाँ इस अहिंसावादी सिद्धांत को उन्होंने पूर्ण रूप से जिया था और अपने कुछ अनुयायियों पर इसका प्रभाव छोड़ा था , लेकिन ये तो एकदम झूठ है कि हमें आजादी, बापू के अहिंसात्मक आन्दोलन से मिली ।
पर बापू महान थे तो किसलिए, जो सपना उन्होंने देखा था उसके लिए, कि भारत में स्व का तंत्र होना चाहिए । इसके लिए तो बापू वास्तव में महान थे ,ये और बात है कि उनके अनुयायियों ने उनके सपनों को पूरा नहीं किया। और करते भी क्यों , जब केवल उनकी महानता के किस्से कह-कह कर ही उन्हें लाभ मिलता रहा ,जनता बहलती रही ,लेकिन समझने वाले तब भी समझते थे अब भी समझते हैं ।

Saturday, August 29, 2009

हमारे महान नेता कौन होते अगर.......?

दुसरे प्रश्न का आशय ये है कि आजाद होने के तुंरत बाद
(अंकल)नेहरू के नेतृत्व की जगह किसी और के नेतृत्व
में सरकार बनती तो........?
शायद हमारे महान नेताओं में और भी बहुत से स्वतंत्रता
सेनानी जिनको आज भी सरकारें भूल जाती हैं,जिनका योगदान किसी से कम नहीं था, उन्होंने कालेपानी की सजा
भी पाई, अंग्रेजों की यातना भी सही, पर महान बनाया गया
उनको, जो अपनी सुविधानुसार अंग्रेजों की कुछ सुविधाजनक
जेलों में आराम करने चले जाते थे ,आम जनता को दिखाने के
लिएअनसन और उपवास रखा करते थे ।
जैसे आज जसवंत सिंह ने जिन्ना को महान बताने के लिए
किताब लिखी है ऐसे ही बहुत पहले से और भी बहुत से लोग
किताबें लिखते रहे हैं उनमें से एक हैं गुरुदत्त,जिन्होंने उपन्यासों ,
कहानियों को ऐतिहासिक तिथियों के आधार पर लिखा है ।
उनकी एक किताब है "भारत गाँधी-नेहरू की छाया में"
(१९६८ में प्रकाशित) जो तथ्यों व तर्कों से परिपूर्ण विवेचना है और इनकी कमियों व गलतियों को उजागर करती है ।
आज देश का इतना बुरा हाल जो है वह अंकल नेहरू की ग़लत
व जिद भरी नीतियों के कारण ही है। क्योंकि भारत की
भोली-भाली जनता ने आँख बंद करके इनपर भरोसा किया था ।
जाहिर है इनकी सरकार न बनती तो शायद पाकिस्तान न बनता ,

शायद महान की श्रेणी में कुछ सही और सच्चे आदर्श वादी नेता होते ।

Friday, August 28, 2009

अगर भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो…….?

अगर भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो…….?
इस प्रश्न के कई उत्तर होते हैं ,प्रश्न बेशक एक लाईन का है लेकिन उत्तर लिखने वाले पूरी किताब भी लिख सकते हैं ,क्या पता लिखी भी हो पर मैं यहाँ पर कुछेक बिन्दुओं पर ही केवल प्रकाश डालूँगा ।
शायद एकाध और महान नेता के बारे में हमें पढ़ाया जाता । कभी तो केवल दो ही नेता (गाँधी जी व नेहरू जी) महान बताये जाते थे । पिछले कुछ समय से तीसरे नेता (सर.पटेल) को भी महान बताने लगे । वैसे आम जनता की नजरों में तो अन्य भी कई महान नेता हैं लेकिन उनकी बात करने में सरकारी महानों की महानता का कम होने का डर ,जैसा हमारी सरकार खास कर कांग्रेस सरकार को होने लगता है। ये तो सर.पटेल को भी महान नहीं कहना चाहते थे ,वो तो भला हो हिंदूवादी राजनीती का जिसने बल्लभ भाई पटेल को भी महान कहने के लिए मजबूर कर दिया ।
अब बासठ साल बाद पता लग रहा है कि जिन्ना भी महान थे ,तो फ़िर अकेले जिन्ना ही क्यों ….. ? पकिस्तान अकेले जिन्ना की जिद से तो नहीं बना होगा , पकिस्तान के जो भी नेता होंगे ,अगर देश विभाजित नहीं होता तो वे भी तो हमारे नेता ही होते अपनी सुविधा के अनुसार सरकार उन्हें महान बताती।

अगर भारत विभाजित नहीं होता तो …… राजधानी कहाँ होती ,शायद दिल्ली ही होती ।
अगर भारत विभाजित नहीं होता तो …. शायद आतंकवाद नहीं पनपता । कई सारे प्रश्न दिमाग में उठने लगते हैं इस बात की कल्पना करने में कि भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो….?

Tuesday, August 25, 2009

यक्ष प्रश्न

आजकल जिन्ना प्रकरण के कारण कई बातें उटपटांग सी, मेरे दिमाग में उठ रहीं हैं जिनके बारे में कई बार
सोचा ,कि लिखूं ,पर एक स्पष्ट सी रुपरेखा नहीं बन पाई ,तो,
कुछ सवाल जो मेरे मन में बहुत पहले से उठते रहे हैं कि
१. अगर भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो, क्या होता.... ?
२. विभाजित ही सही, आजाद होने के तुंरत बाद कांग्रेस की सरकार नहीं बनती तो हमारे महान नेता कौन-कौन होते...... ?
३. महात्मा गाँधी को किसलिए महान माना जाता है , अहिंसा के लिए या आजादी के लिए.... ?
४.अगर आजादी के समय के समझौतों को आम जन को पता लगने दें तो क्या किसी की महानता कम होने का डर है.... ?
५.क्या इतिहास को दबाया,छुपाया और झुठलाया जा सकता है,जबकि वह लाखों-करोड़ों लोगों के सामने घटित हुआ हो...... ?
इन सवालों के जवाब क्या हो सकते हैं यह भी बताने कि कोशिश करूँगा जिसका मुझे पता होगा। वैसे आप भी बता सकते हैं ।

मीडिया से सावधान (भाजपा)

भाजपा भी आई मीडिया के उकसावे में,
जिसे चाहे उबार दे ,जिसे चाहे डूबा दे ,
ऐसा करके दिखा दे । ऐसी ताकत भारतीय मीडिया ने बना ली है। क्यों…?
क्योंकि भारत के लोग सही-ग़लत सोचने में अपना दिमाग इस्तेमाल नहीं करना चाहते।
आजकल ये भाजपा के पीछे पड़ा है ,इनके उकसाने पर भाजपा के नेता अपनी जड़ों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं । बिना सोचे –समझे और विचार किए जिन बातों के विरोध में वह अपने वरिष्ठ नेताओं का निष्कासन कर रहे हैं
उन बातों की विवेचना अभी तक केवल मीडिया ने की है। मीडिया किसी भी बात के अर्थ का अनर्थ बना सकता है। ये सभी जानते हैं फ़िर भी ये उसकी बातों में आ रहे हैं ,लगता है एक राजनितिक पार्टी ख़त्म होने के लिए फड़फड़ा रही है। अब अरुण शौरी की बारी है ।

Sunday, August 23, 2009

राष्ट्र हित में या स्वयं हित में....?

1 स्टिंग ऑपरेशन सचमुच धारदार हथियार है , और इसका इस्तेमाल अपनी बिरादरी की तरफ़ नहीं करना ।
कभी भी नहीं करना ।

अपने बिजनेस के लिए किसी छोटे दूकानदार की तरह बनते न्यूज चैनल ,कितने अनैतिक होते जा रहे हैं इसी तरह समाचार पत्र भी । न्यूज चैनलों की पोल खोल दी सुधीश पचौरी ने ,दूसरों का शोषण उजागर करने वाले ये चैनल अपने संवाददाताओं को कितना खुश रखते हैं यह पता लगा ।


३सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय न्यायशास्त्र की मीमांसाओं से अनजान वकीलों के अज्ञान पर कहा,.... वकीलों ने अगर पूर्वजों की उपलब्धियों को जाना होता तो आज देश का ये हाल नहीं होता ,....
अंग्रेजों से पॉवर ट्रांसफर करते समय वकीलों ने ही उस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए थे ।

४ प्रधानमंत्री की अम्बानी बंधुओं से अपील, कि "राष्ट्र हित सोचो " पर उन्होंने अपनी रेंकिंग के बारे में सोचना है अरबपति बनने के लिए राष्ट्रहित नहीं सोचा जाता, दुनिया में नंबर वन बनकर भारत का(या अपना) नाम ऊँचा करना है।


५. जीवित लोगों की प्रतिमाएँ भी स्थापित हो सकती हैं , ऐसा मायावती का सोचना है। (अपने कर्मों के कारण )
जब मरने के बाद भरोसा न हो कि अपनी प्रतिमा लगाने वाला कोई होगा तो जीवित रहते ही लगा सकते हैं ।

6.गंगा की सफाई के लिए दो सौ करोड़ रूपये और दिए, पहले दो सौ पचास करोड़ रूपये दिए थे ,
शायद भ्रष्ट व्यवस्थाने ईशारा कर दिया ,कि आगामी चुनाव में भ्रष्ट अधिकारीयों से चंदा चाहिए तो और रुपया दो । अब गंगा कि सफाई तो कम दिए गए रुपयों कि सफाई होगी

७.भुखमरी के खिलाफ कानून बनने की वकालत, अम्रत्यसेन ने की ,पर हमें डर है की कहीं हमारी सरकार भुखमरों के खिलाफ कानून न बना दे । या कुछ जो थोड़ा बहुत खा कर जिन्दा हैं उनके खिलाफ कोई कानून न बन जाए ।

Friday, August 21, 2009

"सरकार चिंतित है"

कुछ सुना आपने , ओह ! सौरी-सौरी-सौरी…….,
समाचार अब सुनने की बात नहीं रहे,देखने की बात हो गए हैं ।
तो … ये कहना चाहिए कि ,कुछ देखा आपने “संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र”भारत की सरकार चिंतित है, ये लो हमारे मित्र ने लिखते-लिखते ही टोक दिया कि वह जब से देखने लायक हुए हैं सरकार को चिंतित ही देखा है। तो यह कहना चाहिए कि,
“सरकार चिंतित रहती है”।
चलो जो कुछ भी कहा जाए सवाल तो चिंता का है , हमारा तो ब्लॉग ही चिंता का अड्डा है । चलो अपनी बात पर वापस चलते हैं ।
तो साहब, सरकार चिंतित है, चिंता करने के लिए वैसे ही कम मुद्दे नहीं थे, कि मंदी ने चिंता पैदा कर दी , अब ,क्योंकि ये ग्लोबल मुद्दा था, सभी चिंता कर रहे थे तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, कुछ गिनने लायक लोगों और कम्पनियों को इससे असर हो रहा था इसलिए उन्हें कुछ "पैकेज" देकर उनका मुहं बंद कर दिया। पर वह मंदी अपने बच्चे के रूप में महंगाई को छोड़ गई ,ये तो इतनी जल्दी बड़ी हुयी कि कब पैदा हुयी कब जवान हो गई पता ही नहीं चला । सरकार कई और चिंताओं से ग्रस्त थी ,जब सब चिल्लाने लगे तब पता चला ,तब तक देर हो चुकी थी ,करने को कुछ बचा ही नहीं था , जमाखोरों ने जो जमा करना था वह कर चुके थे ,अब उनपर कार्यवाही करने पर पता लगा कि वह ज्यादातर चुनाव के काम आने वाले अपने ही लोग हैं। क्या कर सकते हैं ?अगर सरकार कुछ करती है तो संगठन बिदकता है ,कुछ जमाखोर, विपक्षियों के समर्थक हैं पर उन पर भी कार्रवाही नहीं कर सकते ,वो हमारी पोल खोल देंगे । मंदी से प्रभावितों की तरह कोई पैकेज भी नहीं दे सकते ,क्योंकि महंगाई से प्रभावितों की संख्या ज्यादा है । ज्यादा संख्या वैसे भी भेड़-बकरी की तरह होती है,हांकते रहो – हांकते रहो ,कुछ करेंगे थोड़े ही ,पर चिंता तो लगी रहती है।
ये चिंताएँ कम न थी कि ऊपर से मानसून हर बार दगा दे जाता है जहाँ चाहिए वहां न हो कर जहाँ मर्जी बाढ़ ले आता है ,सूखे की चिंता-गीले (बाढ़ ) की चिंता , आतंकवादियों की चिंता, नकली नोटों की चिंता, पड़ोसियों से चिंता,अपनों (नक्सलियों)से चिंता , भ्रष्टाचार से चिंता, बढ़ते अपराध से चिंता ,उधर विपक्ष की चिंता –इधर हाई कमान की चिंता ,अब क्या हो, सरकार चिंतित है और चिंता अच्छी बात नहीं होती सेहत पर असर पड़ता है ,सरकार ज्यादा चिंता करती है इसीलिए बीमार रहती है,कुछ कर नहीं पाती है…… केवल चिंता ही करती है, इसलिए हम चिंतित हैं ।

Thursday, August 20, 2009

क्या लिखूं

क्या लिखूं –किस पर लिखूं,
स्वयं समस्याओं से जूझते हुए विकास की ओर अग्रसर,
अपने देश पर लिखूं ,..... या ,
जो स्वयं बर्बाद हो चुके ,अब हमें बर्बाद करने की सोच रहे,
ऐसे पड़ोस पर लिखूं ।
भ्रष्ट व्यस्था से त्रस्त, सभी, आम आदमी और भ्रष्टाचारी भी ,
भ्रष्टाचार पर लिखूं , … या ,
सारे अधिकार होते हुए भी ,राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री,चिंतित
और लाचार पर लिखूं ,
नशे से बरबाद होती हुयी जवानी,समाज,परिवार,रिश्ते और
रिश्तेदार पर लिखूं , ….या ,

नशे का बढ़ता व्यापर,व्यापारी और इनसे समृद्ध होती सरकार की
आय पर लिखूं।
राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर,सीता,सावित्री,लक्ष्मीबाई और चेनम्मा के
उज्जवल चरित्र पर लिखूं ,…..या ,
धन के लिए बिकते व दिखाते तन, अतिमहत्वाकांक्षी आधुनिकाओं के
कलुषित मन पर लिखूं ।
ये देश“है”वीर जवानों का, पर लिखूं….या,
ये देश “था”वीर जवानों का पर लिखूं
जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, पर लिखूं …या
अब डाल-डाल पर बिकती शराब की बोतलों और थैलियों पर लिखूं………..
………………………………………………………………….क्या लिखूं किस पर लिखूं .... ?

Sunday, August 16, 2009

बाबा रामदेव ने सम्भावना सेठ और कश्मीरा शाह की बोलती बंद की

बात “रजत जी” की “आपकी अदालत” की है , जहाँ बाबा रामदेव पर मुकदमा
चल रहा था ,वहां सम्भावना सेठ और कश्मीरा शाह भी आमंत्रित थीं
जो अपने माता-पिता के साथ आयीं थीं , वहां बातचीत में दोनों ने कहा कि हिरोईनों के छोटे कपड़े डिमांड और सप्लाई का हिस्सा हैं जनता जो देखेगी डाईरेक्टर और प्रोड्यूसर वो हमसे करवाएगा ,जनता छोटे कपडों वाला नृत्य देखना पसंद करती है ,तो हमें करना पड़ता है।
कुछ देर बाद सम्भावना ने ये पूछ लिया कि वैसे बाबा जी आपकी योग की डी.वी.डी.इतनी ज्यादा कैसे बिकती हैं ,तो बाबा ने झट से खड़े होकर बताया कि मैं उन्हें पूरे कपड़े पहन कर बनाता हूँ , इस बात को सुन कर दोनों ने हँसते हुए अपना मुहं बंद कर लिया ।

14 और 15 अगस्त 2009

कुछ अलग सा लगा, क्योंकि हमारी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को हिन्दी में संबोधित किया । लगता है देश का स्वाभिमान, आम जनता के साथ-साथ हमारे शीर्ष रहनुमाओं का भी जाग रहा है।
बहुत अच्छा लगा । इस बात के लिए धन्यवाद

हम अपने बाल नोच लेंगे

शाहरुख़ खान का भी अमेरिका वालों ने अपमान कर दिया है।
न्यूज की सच्चाई तो न्यूज चैनल वाले ही जानें,हम तो यही कहेंगे

कि अमेरिका वाले कब सभ्य होंगे , जो ये भी नहीं जानते कि हम
भारतीय अपने देश में इस तरह चैकिंग को , अपना अपमान मानते
हैं विशेषकर नेता,अभिनेता,अधिकारी और इनके नौनिहाल,मतलब,
एक अमीरी रेखा से ऊपर जीवन जीने वाले, किसी भी व्यक्ति को चैकिंग
के नाम पर रोकना तो दूर हाथ से रुकने का इशारा भी करना , अपमान
माना जाता है।
फ़िर शाहरुख़ खान को तो हमारे देश के बहुत से लोग अपना भगवान्

मानते हैं , उसका अपमान बर्दास्त से बहार है , हम अपने बाल नोच लेंगे,
सर पटक लेंगे..... हाँ...., बार-बार ऐसा किया तो ठीक नहीं होगा ।
एक ट्विन टॉवर पर हमला क्या हुआ तुम तो इतना डर गए कि अपने

सुरक्षा अधिकारीयों को एकदम छूट देदी कि जिस मर्जी के कपडों में तांक-
झांक करने लगे। कुछ निडर बनो, जैसे हम,देखा नहीं कितनी बार हमला
हुआ पर हम आज तक नहीं डरे। हम अपने वी.आई.पी. लोगों को कहीं पर
भी सुरक्षा के नाम पर जाँच के लिए नहीं रोकते ,अगर कोई अधिकारी ऐसी
जुर्रत कर दे तो उसकी खैर नहीं, जहाँ तक विदेशियों कि जाँच का सवाल है,
उन्हें तो हम सर आंखों पर बिठाते हैं,अमेरिका का तो गधा भी हमारे लिए
मेहमान है जाँच करना तो दूर, उसे हम कंधे पर बिठा कर अपने देश में यहाँ-
वहां घुमाते हैं।
कुछ ख़याल रखा करो यार , इतने बड़े आदमी की इज्जत यों उतार

देते हो जैसे किसी को पता न चले ,आज के समय में जब न्यूज चैनलों के
पत्रकार बाथरूम तक में नहीं छोड़ते तो तुम खुले में जाँच करने लगते हो,ख़बर
यहाँ तक सैकिन्डौं में पहुँच जाती है ,तुम्हारे यहाँ के पत्रकारों की तरह हमारे
यहाँ के पत्रकार नहीं होते ,यहाँ तो उन्हें मुद्दा बनाना विशेष तरीके से सिखाया
जाता है। सरकार की किरकिरी होती है ,फ़िर हमारे यहाँ उन्होंने ऐसा देखा भी
तो नहीं ।
चलो..... अब क्या कर सकते हैं , आगे से ध्यान रखना, कमसेकम हमारे

वी.आई.पी. को जाँच में छूट देकर हमारी भावनाओं का आदर करना ।
नहीं तो हम….. अपने बाल नोच लेंगे।

Saturday, August 15, 2009

लिखा पर कम दिखा

आज अपनी कुछ पुरानी पोस्ट देख रहा था तो देखा कि कुछ पोस्ट ऐसी लग रही थी, जैसे उनपर किसी की नजर नहीं पड़ी , वैसे मैं यह सोच कर नहीं लिखता कि मुझे टिप्पणी ज्यादा मिलें ,लेकिन ये मन जरुर करता है कि मेरे लिखे हुए पर ज्यादा से ज्यादा लोगों की नजर पड़े । जो पोस्ट मुझे ऐसी लगती हैं कि उन्हें कम लोगों ने देखा हैं तो सोचा , उन्हें मैं फ़िर से दिखा देता हूँ ।
"शाबास मीडिया "
इतनी जिम्मेदार, जागरूक,जान-जोखिम में डालने वाली पत्रकारिता (न्यूज चैनल्स)और पत्रकार केवल भारत में ही हो सकते हैं। निर्णयात्मकता के साथ-साथ कहानी बनाने और प्रस्तुतीकरण में भी बेजोड़। बारीक़ से बारीक़ नजर ख़बरोंकी तह तक ही नही बल्की जो ख़बर न भी हो उसे भी खबर बना देती है। नक्शो द्वारा विस्तृत वर्णन;समझाने का ढंग ऐसा कि इसका लाभ हमारी सरकार के साथ-साथ आतंकवादी भी उठा सकते हैं। हमारी सुरक्षा कहाँ कमजोर या चाक- चौबंद है या कौन सेलिब्रिटी बिना सुरक्षा गार्ड के है सब पर इनकी नजर रहती है। ये सब (शायद) अभी तक निस्वार्थ भावः से ही करते होंगे। इन्हें किसी की नजर न लगे या इन पर किसी (भारत-सरकारकी) नजर लगे।क्या कहूँ ?
जिस समाचार से विवाद पैदा न हो या तो उसे दिखाओ ही नहीं या उस पर विवाद पैदा कर दो ,चाहे सभ्यता-संस्कारों पर हो या किसी शिक्षण-संस्थान द्वारा लागु ड्रेसकोड हो ,ऐसी विशेषता वाले पत्रकारों को ही ये चैनलों में सामने खड़ा करते हैं । विवाद पैदा करने की योग्यता अनिवार्य है। छोटी से छोटी बात पर भी विवाद पैदा करना ही जैसे इन्हें सिखाया जाता हो चाहे क्रिकेट हो फील्डिंग हो मैच में पकड़ा कैच हो या छुटा कैच हो फ़िल्म हो या राजनीती हो ,कुछ भी हो ये उसे समाचार नहीं रहने देते विवाद बना देते हैं । धन्य है भारतीय न्यूज चैनलों को ।
स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई ,
वन्देमातरम भारत माता की जय चाहे सबकुछ विदेशी है लकिन तिरंगा झंडा तो अपना है हमें इसी पर गर्व करना चाहिए ,
क्योंकि अब हम कमसेकम इतने आजाद तो हैं न, कि विदेशी का विरोध कर सकें ।

इसलिए अपने पूर्वजों को, जिन्होंने भारत को आजाद कराने में अपने प्राणों को न्योछावरकिया,
याद करते हुए हम आजाद होने कि खुशी मनाएं ।

Friday, August 14, 2009

गर्व करा है गर्व करेंगे


भा रत अन्तरिक्ष में फ़िर एक छलांग लगाएगा जो पहले से काफी बड़ी होगी

इस अन्तरिक्षीय छलांग से हमें गर्व होगा कि हम इतनी महंगाई में भी ये काम कर पा रहे हैं , हम भूखे रहेंगे, भ्रष्टाचार में पिसेंगे , गरीबी सहेंगे ,मिलावटी दूध पियेंगे सब्जियों में जहर चलेगा ,दवाओं में नकली हों तो क्या ,

फ़िर भी हम ये गर्व करने का अवसर बार-बार चाहेंगे ,दुनिया की बराबरी करने का गर्व कुछ अलग ही होता है ।

प्रधान मंत्री अमेरिका जायेंगे


महोदय अमेरिका जाना जरुर, पर ये बात ध्यान रखना कि ये, अमेरिका वाले बड़े बेमुरव्वत होते हैं ,एयर पोर्ट पर ही कपड़े खुलवा कर अपने दबाव में ले लेते ।
वैसे हो सकता है आपके साथ ऐसा न हो क्योंकि आप उन्हीं के जैसी अंग्रजी बोल लेते हैं,शायद खाते-पीते, चलते-फिरते भी उन्हीं के जैसे होओगे ,सोचते तो उनके ही जैसा हो ,ये तो हमने देख लिया ।
लेकिन, फ़िर भी अगर अपने नियमों का हवाला देकर वो आपके साथ कोई ग़लत व्यवहार करने लगें ,तो, आप स्वाभिमानपूर्वक वहां से उन्हें बुरा- भला कह कर वापस आ जाना बेशक वह कुछ भी ना दें । यकीन मानना देशवासी नाराज नहीं होंगे ।

एक पत्रकार फेल हुआ

बाबा को भी नहीं बख्सा , कोशिश पूरी करी समाचार छप भी गया ,जिससे संत-समाज में खलबली मच भी गई ,लेकिन फ़िर उसी पत्र और पत्रकार ने खंडन छाप कर ,और स्वामी रामदेव ने सभी संतों को स्पष्टीकरण देकर वास्तविकता सामने रख दी । एक पत्रकार की कोशिश नाकाम हो गई या वह जो ( hayilayit होना) चाहता था उसमे कुछ ही सफल हुआ । अगर इस तरह के पत्रकार नही सुधरे तो कुछ समय बाद जनता इन्हें स्वयं सुधारेगी जो शायद कुछ ज्यादती होगी और जिसमें अच्छी मानसिकता वाले भी आ जायेंगे।

सच का सामना से प्रेरित,पहली आत्महत्या


ख़बर अमर उजाला की १४ अगस्त०९
इसमें लिखा है कि यही सीरियल देखते हुए स्वयं भी खेलने लगे ,और पति सच्चाई से तनाव में आ गया आधी रात को फंसी लगा ली ।
ये बालिग़ था ,समझदार था ,दोनों पढ़े-लिखे और आपस में प्यार करने वाले थे ,दोनों का प्रेम विवाह हुआ था । फ़िर भी सच को नहीं सह पाया , खुदा न खास्ता पत्नी ने मजाक में झूठ बोला हो तो ?
ये सच है ,इस सच को बोलने के लिए हजारों -लाखों – करोड़ों नहीं मिलने थे ,

न सीरियल बनाने वाले को मिलने थे, शायद तभी इसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
असली सच ये है कि सीरियल में दिखने वाले पैसे के लिए ही बोल रहे हैं ,वह सच हो या झूठ कुछ भी बोल सकते हैं । ये असामाजिक हैं इस बात का खामियाजा इन्हें देर-सबेर भुगतना पड़ेगा , ये समाज की नजरों से इतना गिर जायेंगे कि इन्हें भी नारकीय जीवन जीना पड़ेगा । तब असली सच का सामना होगा ।

Thursday, August 13, 2009

जागता भारत


हमारे कुछ आज के महान व्यक्तित्व १

नाम, आप स्वयं समझ जाओगे
काम , हीरो हैं, सॉरी, अभिनेता हैं ,अभिनेता कहने में जरा कुछ अच्छा लगता है ,कुछ भारीपन आ जाता है,हिन्दी अंग्रेजी में यही तो अन्तर है।
हाँ तो साहब, बड़े महान हैं,
इत...नी…ई फिल्मों में हीरो बने कि, गिन नहीं सकते ,बनाने वाले भी भूल गए ,
फिल्में ऐसी कि देखने वाले खाना – पीना भूल कर इनकी फिल्में देखने जाते थे ।
बच्चे स्कूल की फीस स्कूल में जमा न करके इनकी फिल्मों को देखने स्कूल से भाग जाया करते थे। गरीब तो अपनी गरीबी भूल जाया करते थे कि हमारे बीच का ही आदमी लगता है।
ये इतने महान हैं कि इनको जिन लोगों ने संवाद लिख कर दिए (जिनसे ये महान बने) उन्हें तक लोगों ने कोई महत्त्व नहीं दिया इसीलिए इन्होंने भी कभी नहीं कहा कि कहानी व संवाद के कारण भी ये महान हुए । आज भी झूठे सच्चे कई विज्ञापनों से लोगों को भ्रमित करने की क्षमता इनमें है। जबकि चौथी अवस्था में चल रहे हैं।
आज इनके पास कई बंगले हैं जो इनकी महानता है ये मंदिरों को भी करोड़ों रूपये दान दे देते हैं ये इनकी महानता है जिसे सुन कर ही कई भूखे देशवासियों के मुहं से इनके लिए आशीर्वचन अपने आप निकल आते हैं, क्योंकि उनका पेट ये सुन कर ही भर जाता है, ये तसल्ली भी हो जाती है कि उन्होंने जो पैसा इनकी फिल्मों पर व्यय किया था इन्होंने उसे अपने सुख-साधनों पर व्यय किया । भूखे नंगों पर खर्च नहीं किया ।
कभी केवल भूखे –नंगे इनकी महानता के कायल हुआ करते थे ,
पर आज पूरी दुनिया इनकी कायल है।

Wednesday, August 12, 2009

भारतीय गरीबी

क्या हम गरीब हैं ? क्या ये रुपया हमारा नहीं है ?
जिस देश में एक सांसद का आठ हजार पाँच सौ रूपये रोज, राष्ट्रपति साढे सात लाख रोज ,
प्रधान मंत्री सवा छः लाख रोज,
मंत्रिमंडल साढे आठ सौ करोड़ सालाना ,
इसी तरह राज्य सरकारों में राज्यपाल का
पन्द्रह से बीस करोड़ सालाना
मुख्यमंत्री तेरह से सत्रह करोड़ सालाना ......... खर्च हो ,तो ,
क्या हम गरीब मुल्क हैं ? (ये आंकडे बाबा रामदेव के मंच परश्री राजीव दीक्षित बताते हैं।आँखे खोलने के लिए इतना ही काफी है वह तो और भी बताते हैं) ।

स्वाइन फ्लू १

स्वाइन फ्लू से मत घबराओ, बाबा रामदेव के बताये उपाय अपनाओ ।
स्वयं तो बचो ही, औरों को भी बचाओ।
मीडिया के धोखे में ना आओ,मीडिया तो खुदगर्ज हो गया है
ये मौत की खबरें तो देगा , पर,कैसे बचें ये नहीं बताएगा ,
क्योंकि बाबा रामदेव ने बताया है ।

और बाबा रामदेव को ये टी.वी.पर ज्यादा दिखायेगा

तो रोटी कैसे खायेगा।

क्योंकि बाबा रामदेव ने तो बीड़ा उठा रखा है

कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का लोटा डूबायेगा ,

तो इन कम्पनियों का विज्ञापन इन चैनलों को कैसे मिल पायेगा ।
इसलिए उठ, डर मत, बीमार होने की प्रतीक्षा मत कर ,

रोजाना प्राणायाम कर ,और गिलोय को चूस ,तुलसी खा ,

ना मिले तो इनका बना काढा पी ,जो बाबा रामदेव के पतंजलि चिकित्सालय
में मिल जाएगा ।

Tuesday, August 11, 2009

स्वाइन फ्लू

" सबकुछ विदेशी यूज करना है तो बिमारी भी विदेशी ही लो ,

विदेशों से, या पश्चिम से हमें ज्यादातर परेशानी (बिमारी ही ) ही मिली है ,और उस परेशानी को लाने वाले अधिकतर हमारे अपने ही होते हैं जो विदेशों में जाकर वहां के कल्चर से सराबोर होकर आते हैं फ़िर हमारे संस्कारों को कोसने की बिमारी लाकर यहाँ फैलाते हैं । ये काम तो लंबे समय से चल ही रहा था पर इससे आदमी चलता-फिरता मुर्दा जैसा ही हो रहा था ,तो उन्हें तसल्ली नहीं हो रही थी , अब पिछले कुछ सालों से नई-नई बीमारियाँ विदेशियों (कम्पनियों ने ) ने बना कर फैलानी शुरू कर दी हैं।
ये बीमारियाँ चाहे किसी स्तर पर हों, इनसे बचने का उपाय केवल इनसे बचकर (सावधान) रहा जाए ।

Monday, August 10, 2009

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

बंगाल सरकार के सर्वेक्षण में वहां ४८ प्रतिशत शादियाँ कम उम्र में करा दी जाती हैं , गौर करने वाली बात ये है कि इसी पश्चिम बंगाल में पिछले तीस-पैंतीस साल से तथाकथित प्रगतिशील,जागरूक,समाज-सुधारक , मानवाधिकारवादी लोगों का राज है , "पर उपदेश कुशल बहुतेरे"

Sunday, August 9, 2009

तय करो किस ओर हो तुम

आज देश का हाल सभी जानते हैं ,शायद इतना बुरा हाल पिछले हजारों सालों में भी नहीं रहा जब कि हम परतंत्र भी हुए पर अपनी मानसिकता को कभी गुलाम नहीं होने दिया ,आज ,आज तो हम मानसिक रूप से ही गुलाम हो गए ,कोई बात ग़लत हो रही है और हमें पता है कि ग़लत है समाज के प्रति इसका प्रभाव बुरा होगा फ़िर भी हम मानसिक गुलामी के कारण निर्लज्जता से उसको सही ठहराने के प्रयास करते हैं ऐसा ही असुर करते थे । जैसे रावण ने अपनी बहन सूर्पनखा से ये नहीं पूछा कि वह क्यों वहां(राम -लक्षमण के पास) अपने राक्षसी चरित्र का बखान व जबरदस्ती करने गई थी बल्कि वह उल्टा राम को ही ग़लत बताता है वही आज होने लगा है । आज भी नहीं पूछा जा रहा ।इस स्थिति को सुधारने का बहुतों ने प्रयास किया कुछ हद तक सफल भी रहे और देवासुर संग्राम चलता रहा ,लेकिन अब लग रहा है कि स्वामी रामदेव के द्वारा इसमें निर्णायक तरीके से प्रहार किया जाएगा जितनी शक्ति और जनसमर्थन उन्होंने देवत्व के पक्ष में कर लिया है उसे देख कर लगता है कि अब असुरत्व को झुक कर रहना पड़ेगा, समाप्त तो नहीं होगा क्योंकि समाप्त कुछ होता ही नहींहै । इसलिए तय करो किस और हो तुम ।

पूरा गाँव गायब

पर्यावरण को हो रहे नुकशान से प्रकृति अपना प्रकोप दिखा रही है ।
पिथौरागढ़ के मुनस्यारी तहसील में एक गाँव का तोक (गाँव से हटकर थोडी आबादी ) रात ही रात में अतिवृष्टि से आए बहाव और मलवे से बह गया ।
प्रकृति को परेशान तो सभी कर रहे हैं लेकिन जब प्रकृति झल्ला कर गुस्सा करती है तो इसी तरह आम आदमी चपेट में आ जाता है । इनके कई परिवारों में तो कोई नामलेवा भी नहीं बचा । इन्होने अकेले तो प्रकृति को नुकशान नहीं पहुँचाया होगा ।
अगर पाप और पुण्य होता है तो इन लोगों की मृत्यु का पाप सभी पर्यावरण को हानि पहुचने वालों को लगेगा । और आज के समय में तो सभी (मैं भी) इसके दोषी हैं ।

Saturday, August 8, 2009

"आदमी के साथ हो या कि आदमखोर हो"

बचपन में जब कहीं अपने देश की गुलामी के समय अंग्रेजों द्वारा जुल्मों की कहानियाँ पढ़ता था तो मेरा भी खून खौलता था ,कि, अगर मैं उस समय पैदा हुआ होता तो क्रांतिकारियों की तरह अंग्रेजों से लड़ता। लड़ता, मतलब लड़ता , पिटता नहीं बल्कि पीट-पीट कर रिकॉर्ड बना डालता जैसे "अंगुलिमाल डाकू ने अँगुलियों की माला अपने गले में डाली हुयी थी" ।
और मेरा रिकॉर्ड बन भी जाता क्योंकि अत्याचारी अंग्रेज कम नहीं थे ।
क्रांतिकारियों के किस्से तो मेरे पसंदीदा सामग्री में रहे , “आनंदमठ”मैंने शायद पच्चीसों बार पढ़ी होगी ,आज भी अगर मैं देख लूँ तो उसे पढ़ने से अपने को न रोक सकूँ।
उस समय बाल मन था सोचा करता था कि आज अंग्रेज आजायें तो ,या आज हमें गुलाम बनाकर दिखाए तो ,बताऊँ।
मुझे क्या पता था कि भारत वास्तव में आजाद हुआ ही नहीं था ,बड़ा होता गया आँखें खुलती गई सबसे पहले, पढ़ते समय ही मुझे लगने लगा कि हमारी शिक्षा पर बंदिश क्यों है जो जो पढ़ा रहे हैं वही पढ़ने की मज़बूरी ,फ़िर जो सरकारी डिग्री या सर्टिफिकेट ले, वो ही पढ़ा लिखा माना जाए …क्यों ? ठीक है सरकारी नौकरी के लिए सरकारी शिक्षा या सर्टिफिकेट ही सही, पर जो घर पर पढ़ लिख सकता है उसे कैसे तुम अनपढ़ कह सकते हो,सरकारी नौकरी के लिए अगर सरकारी सर्टिफिकेट की जरुरत है तो भी , फ़िर नौकरी के लिए कई-कई परीक्षाएं क्यों ? क्या तुम्हारी दी हुयी शिक्षा पर तुम्हें ही भरोसा नहीं ?
इसी तरह न्याय व्यवस्था में भी कई-कई न्यायालय ….. अगर छोटे न्यायालय ग़लत निर्णय देते हैं तो उन्हें क्यों बना रखा है बंद करो ।
आँखे खुलती गई.... कानून व्यवस्था १८६० की अंग्रेजों की, अपनों की रक्षा के लिए बनाया कानून आज भी लागू है , शिक्षा नीति अंग्रेजों की....
कर (टैक्स ) नीति अंग्रेजों की ,सरकारी नीतियाँ सब अंग्रेजोंकी ,प्रशासनिक हों या गैर प्रशासनिक हों ,सेना में लागू हों ,या सिविल में, सब कुछ अंग्रेजो की ही नीतियाँ ,आख़िर हम आजाद कहाँ हुए ? कुछ दिन पहले पता चला, कि हम वास्तव में आजाद हुए ही नहीं थे । राजीव दीक्षित जी ने स्वामी रामदेव के मंच से बताया कि ,
जिस दिन को हमारा स्वतंत्रता दिवस बताया जाता है उस दिन केवल “ट्रांसफर एग्रीमेंट ऑफ पावर”पर हस्ताक्षर करवा कर अंग्रजों ने अपनी पॉवर का हस्तान्तरण किया था ।
मैंने पहले भी लिखा है कि हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी क्यों थी जब कुछ बदलना ही नहीं था तो क्यों उन्होंने अपनी जानें दीं ,क्यों ….?क्यों…?क्यों…?
इस क्यों का उत्तर कोई नहीं दे सकता ,क्योंकि इसे समझना जरा मुश्किल सा है , पर सीधा सा है, वो ये , कि भारत की जनता ने अपने कुछ नेताओं पर इतना अन्धविश्वास कर लिया था कि ,उन्होंने जो किया उस पर चुप रही ,जिसने विरोध किया उसके ही सब विरोधी हो गए ,और नेताओं ने इस बात का लाभ अपने हित में उठाया देश हित भूल गए ,क्योंकि सत्ता(पॉवर) हाथ में लेनी थी ।
दरअसल संसार में दो शक्तियां हैं, संसार में ही क्यों पूरे ब्रह्माण्ड में दो शक्तियां हैं । उन्हें धाराएँ कह लो या जोड़ा कह लो ,
या उर्जा कहलो, इन दो का आपस में भी तार जुड़ा है एक के बिना दूसरे का अस्तित्व समझ नहीं आयेगा और न काम चलेगा जैसे विद्युत की दोनों धाराओं के संयोजन के कारण ही कोई भी बल्ब या अन्य उपकरण काम करता है इसी तरह प्रकृति में भी दोनों शक्तियां कायम हैं इनको सकारात्मक व नकारात्मक के रूप में जाना जाता है , सात्विक – तामसिक ,दैवी –आसुरी ,
व अन्य भी कई तरह के उच्चारण से इनको जाना जाता है ,ये एक दूसरे के विपरीत होती हैं पर इनमे एक दूसरे के प्रति आकर्षण भी होता है। ये बात मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि समझने में आसानी हो जाए ,जैसे हमने पौराणिक कथाओं में में देवासुर संग्राम के बारे में पढ़ा है ये समझ लो कि देवासुर संग्राम लगातार प्रकृति में चलता रहता है ,और आमतौर पर देव प्रकृति ही विजयी रहती है पर देव प्रकृति की एक कमजोरी है कि आलसी होती है और शांत होती है,इस तरह की सैकड़ों कहानियाँ हमने(तुमने) सुनी-पढ़ी होंगी ।
१९४७ में भी आसुरी शक्तियां प्रबल थी उसके प्रभाव में हमारे कुछ नेता मानवीयता को भुला बैठे आसुरी सोच के कारण अपने स्वार्थ में वही कुछ किया जो असुरत्व को बढ़ावा देता चला गया ।
कहते हैं कि महात्मा गाँधी (बापू जी) की भी नहीं सुनी गई ।
उन्होंने कहा था कि स्वतंत्र होते ही पहला काम अंग्रेजों द्वारा लागू कानून व शिक्षानीति बदलने का होना चाहिए ।
आज देश का हाल सभी जानते हैं ,शायद इतना बुरा हाल पिछले हजारों सालों में भी नहीं रहा जब कि हम परतंत्र भी हुए पर अपनी मानसिकता को कभी गुलाम नहीं होने दिया ,आज ,आज तो हम मानसिक रूप से ही गुलाम हो गए ,कोई बात ग़लत हो रही है और हमें पता है कि ग़लत है समाज के प्रति इसका प्रभाव बुरा होगा फ़िर भी हम मानसिक गुलामी के कारण निर्लज्जता से उसको सही ठहराने के प्रयास करते हैं ऐसा ही असुर करते थे । जैसे रावण ने अपनी बहन सूर्पनखा से ये नहीं पूछा कि वह क्यों वहां(राम -लक्षमण के पास) अपने राक्षसी चरित्र का बखान व जबरदस्ती करने गई थी बल्कि वह उल्टा राम को ही ग़लत बताता है वही आज होने लगा है । आज भी नहीं पूछा जा रहा ।
इस स्थिति को सुधारने का बहुतों ने प्रयास किया कुछ हद तक सफल भी रहे और देवासुर संग्राम चलता रहा ,लेकिन अब लग रहा है कि स्वामी रामदेव के द्वारा इसमें निर्णायक तरीके से प्रहार किया जाएगा जितनी शक्ति और जनसमर्थन उन्होंने देवत्व के पक्ष में कर लिया है उसे देख कर लगता है कि अब असुरत्व को झुक कर रहना पड़ेगा, समाप्त तो नहीं होगा क्योंकि समाप्त कुछ होता ही नहीं ।
अब हमने ये देखना है कि हम किस तरफ़ हैं हमें किस शक्ति का साथ देना है , मुझे तो लगता है कि मैं अपने बचपन की इच्छा को पूरा कर सकता हूँ कि अब भारत की सम्पूर्ण आजादी के लिए ,भारतीयता के स्वाभिमान के लिए सशस्त्र तरीके से नहीं तो वैचारिक रूप से ही सही आज के भारतीय अंग्रेजों से लड़ सकता हूँ ,पर ये दुःख रहेगा कि उनमें मेरे मित्र भाई व सम्बन्धी भी होंगे । जैसे अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने में क्रांतिकारियों के सम्बन्धी कभी कभी अंग्रेजों के पिट्ठू होते थे । आज का मीडिया तो पूरा का पूरा आसुरी शक्तियों के साथ अपने को निर्लज्जता के साथ जोड़ रहा है । सात्विक शक्तियों कि खिल्ली उड़ा रहा है । लेकिन ये बेपेंदी का लोटा है जब जिधर अपना फायदा देखेगा उधर पलटी मार जाएगा ।
किसी कवि कि लिखी दो पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं …
तय करो किस और हो तुम ,तय करो किस और हो।
आदमी के साथ हो या कि आदमखोर हो ।


तय करो किस और हो ।

Friday, August 7, 2009

चोर की दाढ़ी में तिनका




चोर की दाढ़ी में तिनका … ? या ये कहना चाहिए की चोरों की दाढियों में तिनका ,
संसद में चार सौ बीस नंबर की सीट नहीं होगी , क्योंकि जो भी उस सीट पर बैठेगा उस पर चार सौ बीसी का ठप्पा लग जाने का डर है ,अब
जो चोरी छुपे चार सौ बीस हो वह खुलेआम क्यों चार सौ बीस कहलाये ,
इसलिए इस नंबर को ही हटा दिया। सच का सामना बिना पोलीग्राफ मशीन लगाये हो गया ।

महंगाई का राज

जी हाँ महंगाई किसलिए बढ़ रही है ,इस बारे में जो कुछ मेरी सूक्ष्म बुद्धि में आया , सोचा आपको भी बता दूँ ,
कुछ समय पहले बड़ी-बड़ी पूंजीपति हस्तियों द्वारा रिटेल स्टोर्स की
(दुकानदारी की )शुरुआत की गई थी , जिसका विरोध भी हुआ था ,और एक साल बाद ही इनमे से ज्यादातर बंद हो गए पता नहीं क्यों ?
पर, मैं एक बात जो कई सालों से देख रहा हूँ ;वो ये, कि ये पूंजी पति घराने या विदेशी कम्पनियां जिस भी सामान की (जो जीने के लिए जरुरी हो) दुकानदारी शुरू करते हैं उसमे ये सफल हो पायें या नहीं पर उन वस्तुओं के दाम कुछ समय बाद, बढ़ ही जाते हैं ,एक और बात, कि उस वस्तु की उत्पादन के कारण या अन्य किसी भी कारण से जबरदस्त कमी हो जाती है । वर्तमान की महंगाई भी मुझे ऐसी ही लगती है। ये एक साजिश है और सरकारें इसमें शामिल हैं । इन कम्पनियों और पूंजीपतियों ने बाजार से ज्यादातर सामान जमा कर लिया है ,अब मनमाने दामों पर बेच रहे हैं । सरकार भी जनता की तसल्ली के लिए थोड़े बहुत दाल-चावल का इंतजाम कर बेचने का ड्रामा कर रही है ।

टेंशन पॉइंट के चर्चित पोस्टर

उत्तराखंड में नौवीं कक्षा में पढने वाले छात्र प्रधान मंत्री का नाम नहीं बता पाए कुछ हिन्दी के शब्द नहीं लिख पाए ये उत्तराखंड की शिक्षा की पोल है जिसके अध्यापक वेतन बढ़ाने के लिए हड़ताल पर हड़ताल करने केलिए आम जनता की नजरों में गिर चुके हैं और जिस काम के लिए वेतन लेते हैं उसका हाल भी सभी ने देख लिया है ,दूसरी तरफ़ सरकार का भी तरीका ये है कि वह पढाई के लिए छापा नहीं मारती बल्कि स्कूल में भात ठीक तरीके से बनता है या नहीं इसके लिए छापा मारती है इस पर एक पोस्टर (मेरा ) यहाँ तिराहे पर चर्चित हो रहा है ।

दूसरा ............ कुछ दिन पहले उत्तराखंड सरकार के आयोग ने उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण नहीं बन सकती का निर्णय दिया ,जबकि जनभावनाओं में गैरसैण ही सबसे उपयुक्त स्थान है ,पर अगर मनमर्जी न चलाये तो
सरकार किस बात की उसके लिए भी ये पोस्टर है

Wednesday, August 5, 2009

अवैध कब्जा कर धर्मस्थल न बनायें


ये तो हमारे मानवाधिकार का हनन है।
आख़िर जब हमारा मन रास्ता चलते मन्दिर के आगे सर झुकाने को करेगा तो क्या हम , अक्षर धाम मन्दिर जायेंगे ?
ये आदमी का मन है हर समय डरा हुआ रहता है क्या पता कब कोई दुर्घटना हो जाए या कब किसी पुलिस वाले को गलतफहमी हो जाए , कब कोई बदमाश अपनी बाइकों से हमें ठोकते हुए निकल जाएँ। मतलब, कुछ भी हो सकता है, अब जो होना है वो तो होगा ही लेकिन हर दस कदम पर अगर कोई धर्मस्थल मिल जाए तो सर झुकाने में कुछ तसल्ली तो होती है । तो ये तो हमारे मानवाधिकार का हनन है । वैसे भी जितने बड़े धर्मस्थल में जायेंगे उतना बड़ा दान देना पड़ेगा लेकिन इन छोटे –छोटे धर्मस्थलों में तो मामूली सी भेंट से काम चल जाता है हमें लगता है कि हमें भी उतना ही पुण्य मिल गया जितना किसी को किसी बड़े धर्मस्थल में एक करोड़ रुपये देकर मिला होगा । फ़िर उस बेरोजगार आदमी की भी तो सोचो जो बेचारा उससे कुछ कमाकर उसमे से कितनो का पेट भरता है (पुलिस वाले,व छुट्भायिये नेता टाईप के गुंडे) तब उसके परिवार का खर्चा चलता है । क्या उसे बेरोजगार कर दोगे । इसके बदले हर चौराहे पर एक धर्म स्थल होना चाहिए लाल बत्ती की जरुरत ही नही रहेगी चौराहे पर चौमुखा धर्मस्थल होना चाहिए ,लोग गाडियां रोक कर मत्था झुकायेंगे कुछ दान देंगे जिससे दुर्घटनाएं भी कम होंगी और पैसा भी जमा होगा । अभी और सुझाव देता पर क्या करूँ मैं लिखने में बहुत आलसी हूँ । फ़िर कभी बताऊंगा हाँ मेरे मानवाधिकार का उल्लंघन मत करो । इन्हें बनने दो तभी तो राजनीति करने को कुछ होगा।

धौनी या किसी की भी शान

धौनी को चाहिए शस्त्र लाईसेंस , ओह, सौरि ; केवल लाईसेंस नहीं शस्त्र भी चाहिए । सरकार ने जो सुरक्षा दी है उससे इनकी शान थोड़े ही झलकती है। वह तो केवल नेताओं की हैसियत दर्शाने के लिए होती है ।
इनकी शान के लिए इन्हें निजी शस्त्र की जरुरत है ,जैसे शान दिखाने के लिए ये
गाड़ी लाये हैं , एक करोड़ की ,ऐसे ही महंगा वाला शस्त्र खरीदेंगे ।
दिखाने के काम आएगा ,ये नहीं भी दिखाना चाहेंगे ,पर चैनल वाले जी हजूरी करके इनसे इनकी शान दिखाने का अधिकार प्राप्त कर लेंगे
भाई उनकी तो रोजी-रोटी ही बड़े आदमियों की शान दिखाना है । पुरे-पुरे दिन इनकी शान दिखायेंगे । आम आदमी भी इनकी इस शान को देखने में अपनी भूख –प्यास सब भूल जाता है ,जो आम आदमी से कुछ ऊपर होता है (इन्हीं की श्रेणी का ) वह इनकी किस्मत देखकर जल भुन जाता है,और जो आम आदमी से नीचे होता है(जो भूखा रहता है ) वह मन ही मन गाली देता है। कुछ सोच कर,
हमारा टेंशन पॉइंट केवल ये बोल पाता है कि आदमी कुछ पा लेने के बाद अपने को अपनों से ( आम आदमी से) क्यों इतना दूर कर लेता है,क्या ये अपनेआप अपने दुश्मन नहीं बना लेता है... ?

Monday, August 3, 2009

" अंधा देखै-मूक पुनि बोलै "


आज स्वामी रामदेव द्वारा बताये गये प्राणायाम से" ये बात सच" हो रही है
न केवल अंधा देख रहा है गूंगा बोल रहा है , अन्य भी जितने रोग हैं वह भी ठीक हो रहे हैं , अब , उनका क्या होगा जो लाखों रूपये लगा कर डॉक्टर बन रहे हैं , उनके उस “बिजनेस हब का क्या होगा जिसे वे नर्सिंग-होम कहते हैं”। बहुत लूट लिया लूटने वालों ने , अब तो बाबा रामदेव ने हर मोर्चे पर जागरूकता जगानी शुरू कर दी है । हजारों लाखों लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं। सुर प्रक्रति के लोग तो समर्थन में हैं
लेकिन असुर प्रकृति के लोग एकदम सुन्न हो गए हैं न विरोध कर रहे हैं ,समर्थन करना उनकी प्रक्रति नहीं हैं ।

Sunday, August 2, 2009

भारतीय जजो डरो मत

जजो तुम संपत्ति घोषित करने में क्यों घबरा रहे हो..... ?
बिना बात के अपने को संदेह के दायरे में ला रहे हो ।
डरो मत संपत्ति घोषित करने के बाद भी भ्रष्टाचार करने पर रोक थोड़े ही लगती है ।

क्या हमारे नेता लोग अपनी संपत्ति घोषित नहीं करते ?
फ़िर भी भ्रष्टाचार करते हैं , बस,उनसे (नेताओं से ) कुछ हथकंडे सीखने पड़ेंगे ।
अपने पुत्र-पुत्रियों को एडजस्ट करना पड़ेगा ।( बूटा सिंह व अन्य की तरह)
और ज्यादा कोई परेशानी की बात नहीं है।

बल्कि भ्रष्टाचार में और सहूलियत हो जायेगी । इसलिए डरो मत।
(नेताओं का काम आसान हो जाएगा ,जो भी उनके विरुद्ध निर्णय देगा उस पर आरोप लग जाएगा।)

Saturday, August 1, 2009

भविष्यवाणी

पहले कमाई व पहचान के लिए कम कपडों वाला नाच अजीबोगरीब झटकों वाला ।
लोग उससे ऊब गए, ऊबना ही था, कोई कब तक लगातार शराब पी सकता है या तो बीमार पड़ेगा या ऊब जाएगा, एक और काम करेगा कि उससे तेज नशा ढूंढेगा जो की उपलब्ध है। ऐसा ही राखी के साथ हुआ ,अब फिल्मों में आईटम सोंग नहीं आ रहे, तो कड़की आ रही थी इसलिए स्वयंवर की सूझ गई,अच्छी कमाई हो रही है.कुछ समय बाद फ़िर कमाई की जरुरत पड़ेगी तो एक सीरियल आएगा राखी का तलाक ।
मतलब
“कमाई के लिए स्वयंवर कुछ समय बाद कमाई के लिए तलाक”

ये दुनिया ,अगर अब छूट भी जाए तो क्या है

बूटा सिंह “अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष पूर्व केन्द्रीय मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार” का लड़का घूस (नहीं-नहीं घूस तो छोटी-मोटी होती है इसे क्या कहना चाहिए समझ नहीं आ रहा ) लेते पकड़ा गया सी.बी.आई को बड़ी मोटी मुर्गी या मुर्गा (वैसे भी काफी मोटा है) हाथ लगा है।
मैं तो समझता हूँ कि इस मोटापे का राज भी ये ही होगा कि मोटा खाने की आदत पड़ गई होगी , अकेले खाने की आदत पड़ गई होगी ,क्योंकि ऊपर तो किसी को देना नहीं पड़ता होगा ऊपर डैडी जो हैं । डैडी ही अब पकड़े जाने पर काम आयेंगे ,आयेंगे क्या आने लगे हैं।
पुत्र मोह में इतना बड़ा महाभारत हो सकता है तो ये तो मामूली सी (इन मोटी आसामियों के लिए ) रकम का मामला है। थोड़ा बहुत ले-दे कर काम निकाल लेंगे । और सब कुछ छोड़ना भी पड़ा तो क्या ? इतना कमा लिया है कि कई जन्मों तक बैठे-बैठे खायेंगे ।

"जब अंग्रेज बोलें तब हम निहाल"

जी हाँ यही है हमारे देश का हाल , अब देखो न योग-आयुर्वेद को हमारे यहाँ आज से पहले भी कई योगी व संत प्रतिष्ठा दिला चुके हैं, और वर्तमान में तो बाबा रामदेव लगभग पुरी दुनिया में छाये हुए हैं, लेकिन हमारे यहाँ के मीडिया (इ.और पी. मीडिया) को वह तभी नजर आते हैं जब कोई विवाद हो ,उस समय ये बाबा रामदेव हो या कोई अन्य उन्हें अपने स्टूडियो में बुलाकर इंटरव्यु करवाते हैं लेकिन अंदाज ऐसा होता है जैसे हँसी उडानी हो ।
पर उसी योग के विषय में किसी विदेशी ,वो भी अंग्रेज ने कोई साधारण सी बात कह दी, तो इनके लिए वह प्रकाशनीय और प्रसंसनीय हो जाती है । वह इनके लिए बड़ी ख़बर हो जाती है ,उसे ये भीगे हुए अल्पवस्त्रों में महिला को दिखाते हुए (फोटो) समाचार भी काफी बड़ा बनाकर छापते हैं।
इनकी इस मानसिकता से इन्हें प्रत्यक्ष में तो लगता होगा कि, कोई हानि नहीं हो रही ,लेकिन आम जनता की नजर में "ये" और "इनका संस्थान" उपहास का पात्र बनते हैं । जिससे इनकी विश्वसनीयता कम होती है।
अब देखिये न स्वामी रामदेव को आज भारत में कौन नहीं जानता, भारत में ही नहीं विदेशों में भी योग-आयुर्वेद के लिए बाबा ने भारत का नाम बहुत ऊँचा किया है, लेकिन हमारे देश के मीडिया (किसी भी) ने केवल एक छोटे से समाचार से ज्यादा महत्त्व नहीं दिया ,जबकि फिल्मी समाचार पूरे-पूरे दिन चलते हैं ,किसी हीरो-हिरोईन की शादी में तो ये,बिन बुलाये पहुँच जाते हैं फ़िर पिटते भी हैं पर उसे फ़िर भी निर्लज्ज बनकर दिखाते हैं। तर्क ये कि उन्हें जनता देखना चाहती है,पता नहीं इन्होंने जनता से कब पूछा, कि तुम क्या देखना चाहते हो ।
दरअसल इन्हें पता है कि भारत की जनता को जो दिखाओ वो वही देखेगी ,फ़िर सर्वे भी तो इन्हीं ने करने-करवाने हैं ये सिद्ध कर सकते हैं । पर कितने दिन..?
घड़ी की सुईयों को कोई नहीं रोक सकता इन जैसे लोगों को भी शर्मिंदगी का अहसास होगा।