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Monday, July 27, 2009

एक वृक्ष

अगर आप इन पंक्तियों को अपनी प्रतिभा व कल्पना शीलता से आगे बढ़ा सकते हैं तो टिप्पणी में लिख कर भेजें जिन्हें मैं आपके नाम के साथ मुख्य पोस्ट के नीचे से लगाता जाऊंगा । हाँ, इसके लिए कोई सुझाव हो तो वह भी जरुर बताएं उक्त पंक्तियों के लिए मेरे.............
एक वृक्ष,हरा-भरा,सुंदर सा,
बड़ा, घना और मीठे फलों का,
फैली व पुष्ट शाखाओं ,मजबूत तने,
घनी छाया और गहरी जड़ों का ।
एक
वृक्ष ……
सदियों से खड़ा, आँधियों से लड़ा,
लड़ता रहा , पर डिगा नहीं जरा,
असंख्य प्राणियों का आश्रयदाता,
ऋषि जैसी विशालता और ममत्व से भरा ।
एक
वृक्ष ………
मित्रो मैं कवि नहीं हूँ पर कभी-कभी कुछ पंक्तियों की तुकबंदी
जब मिल जाती है तो मुझे वह कविता का आभास सा देती है,अब उक्त पंक्तियों को ही ले लीजिये ,इससे आगे मैं नहीं लिख पा रहा हूँ ,क्योंकि कवि नहीं हूँ , अगर आप इन पंक्तियों को अपनी प्रतिभा व कल्पना शीलता से आगे बढ़ा सकते हैं तो टिप्पणी में लिख कर भेजें जिन्हें मैं आपके नाम के साथ मुख्य पोस्ट के नीचे से लगाता जाऊंगा । "हाँ इसके लिए कोई सुझाव हो तो वह भी जरुर बताएं" । उक्त पंक्तियों के लिए मेरे मन में जो चित्र बना है,वह आपको भी बता दूँ ,जिससे आप भी उसी भावः में लिखें ।
मित्रो मैं भारतीय सभ्यता-संस्कृति को एक बड़े वृक्ष के रूप में देख रहा हूँ जो मैंने लिखा है इससे आगे मैं इस वृक्ष पर बुराईयों रूपी झाड़-झंखाड़, विष बेलों को चढ़े देखता हूँ जिन्हें समय-समय पर सुधारवादी आन्दोलनों द्वारा हटाया भी गया ,अब उन्हीं बुराइयों,व्यर्थ परम्पराओं रूपी झाड़-झंखाड़ की आड़ में अपने को प्रगतिशील मान कर जो लोग वास्तविक वृक्ष पर ही प्रहार करने लगे ये नादान हैं ,इन्हें ये नहीं पता कि इनके कारण ही सामान्य विरोध को जब अनदेखा करके ये जिद में और अधिक उकसाते हैं तो ,श्रीरामसेना जैसे उग्र रक्षक पैदा हो जाते हैं जिसकी फ़िर आलोचना होती है अगर ऐसा बार-बार होगा तो जो शांत लोग भी हैं वह भी उबाल खाने लगेंगे,जिस तरह ये सब प्रगतिवादी (विनाशवादी) टी.वी. व प्रिंट मीडिया वाले एक हो जाते हैं और केवल अपना ही राग आलापते हैं इनका ये आचरण भी ग़लत है । इनके इस आचरण से अगर उबाल खाते हिंदू एक हो कर श्रीराम सेना जैसे संगठनों कीतरफदारी करने लगे तो क्या होगा ? नेता तो बिन पेंदी के लोटे हैं जहाँ वोट ज्यादा दिखाई देंगे ये वहां को दौड़ लेंगे और हरियाणा की पंचायत की तरह फ़िर चाहे कितना ही ग़लत काम होगा ये अनदेखी करेंगे ।इसलिए परम्परावादी देश में ग़लत परम्पराओं के विरोध की आड़ लेकर जो सही संस्कृति है सभ्यता है उनका विरोध बंद करो ,खुलेपन (विनाशकाले विपरीत बुद्धि ) की हिमायत में पश्चिमी कुसंस्कृति को फैलाने का प्रयास मत करो ।

3 comments:

  1. अच्छा प्रयास है. कोशिश की जायेगी कि इसे आगे बढ़ायें..अभी तो ट्रेवल पर हूँ..कल कोशिश करता हूँ भाई!

    कविता का ज्ञान तो हमारा भी नगण्य ही है मगर प्रयास करने में क्या है..

    शुभकामनाऐं.

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  2. धन्यवाद समीर जी ,मुझे इन्तजार रहेगा
    आपका स्वागत है .

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  3. कोशिश जारी है .

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