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Sunday, July 19, 2009

गुमशुदा

हम तुम्हें ढूँढते रहे
महीनों से,
खुले मेनहोल के पास ,
टूटे-फूटे बस अड्डे के पास,
सालों से नहीं बन पा रही
सड़कों के पास ,
बिना डॉक्टर के
अस्पतालों में ,
बिना मास्टर के
विद्यालयों में ,
अनियंत्रित गाड़ियों से कुचलते
लोगों के पास ,
मिलावट करते जहर की
खाने के सामानों की फैक्ट्रियों में,
सूखती नदियों में ,
जलते जंगलों में ,
मंहगे हुए बाजारों में ,
फर्जी मुठभेडों में ,
लुटती आबरू में ,
सरकारी हड़तालों में ,
भूखे मजदूरों में ,
निराश जनता में ,
तुम कहाँ हो …, तुम कहाँ हो…., तुम कहाँ हो….
?

1 comment:

  1. आम आदमी को यही कही होना चाहिये था कहा चला गया?

    बहुत सुन्दर लिखा है आपने तो --

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