ताजा प्रविष्ठियां

Thursday, July 9, 2009

एक एम.एल.ए. की तमन्ना

"कई बार विधायक बन गया ,थोड़ा-बहुत पढ़ा-लिखा भी हूँ,(न भी होता तो क्या) पर हाईकमान की नजर अभी तक मुझ पर नहीं पड़ी,समर्थकों द्वारा लौबीयिंग करना; मुझे आता नहीं ,तो कैसे मंत्री बनूँ"। ये समस्या कई विधायकों की है। उनके लिए नीचे एक तुक्का लिख रहा हूँ ,कागज पर उतार कर हाईकमान के पास भेज देना, "तुक्का कामयाब हो गया तो तीर; नहीं तो देना चीर"। आजमाने में क्या जा रहा है। अपने काम की पंक्तियाँ ही लिखना।

मैं भी अगर मंत्री होता,मेरे हर दरवाजे पर संतरी होता ।
दस-पॉँच बॉडीगार्ड होते,कई चमचे मेरे पास होते।
हर कोई मेरी जयकार करता,समारोहों में स्वागत-सत्कार करता।
मैं भी अगर……..
मंत्री बनने तक तो आम रहता ,बन कर सरकार हो जाता ।
पुराना बंगला-सजावट,कार इत्यादि सब बेकार हो जाता।
सरकारी कार तो होती ही ,वैसे भी कई कारें ले आता ।
मैं भी अगर……..
कई पुश्तों को धनवान हो जाता,बेशक धर्म-ईमान खो जाता।
घरेलू खाना-रहना किसे भाता,फाईव स्टार होटल ही में खाता; और पीता।
शरीर रोगी होता, तो होता ,विदेशी अस्पताल में तभी जा पाता।
मैं भी अगर……..
कई विश्वविद्यालयों से डॉक्टर की मानद उपाधि पा जाता,
क्योंकि चमचों के द्वारा लेखक;साहित्यकार,और कवि भी बन जाता ,
चमचों के ही कर-कमलों से समरोहों में अपना सम्मान करवाता।
मैं भी अगर……..
पॉँच वर्ष में चुनाव है आ जाता ,लोकतंत्र में ठगने का मूलमंत्र मैं भी पा जाता।
पत्नी,बच्चों व सम्बन्धियों को चुनाव लड़वाता,
जनता के भोलेपन से अधिकाधिक समर्थकों को येन-केन जितवाता ।
इस लोकतान्त्रिक दौर में ,बहुमत; क्या पता मेरे साथ हो जाता ,
तो, चाहे जैसा भी था खोटा या खरा मैं भी सी.एम. बन जाता ।
मैं भी अगर…….. .

1 comment:

हिन्दी में कमेंट्स लिखने के लिए साइड-बार में दिए गए लिंक का प्रयोग करें