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Sunday, July 5, 2009

शाबाश समलैंगिको

शाबाश समलैंगिको-शाबाश,(शाबाशी इसलिए कि तुमने बेशर्मी की हद पार कर ली ) अपने समर्थकों,प्रगतिवादियों,खुली सोच वालों,आधुनिक विचार वालों को भी मेरी तरफ़ से बधाई दे देना ।
तुमसे बड़ा काम तो उन्होंने किया है, जिस व्यवहार को समाज,प्रकृति और सदाचरण के विरुद्ध माना जाता है,जिसे मानसिक रोग माना

जाता है, उन्होंने उसको सही ठहराने का साहस दिखाया है।
अंग्रेजों के बनाये जिन कानूनों को स्वतंत्र भारत के बड़े-बड़े नेता नहीं बदल पाए ,इन आधुनिक बुद्धिमानों ने उस १५० साल पुराने कानून को बदलवा दिया।बौद्धिक और चारित्रिक नक्सलवाद का उदहारण पेश किया है इन्होने। धन्य है इनको, कि इन्होने कितनी बारीकी से कानून का अध्ययन किया होगा जो इनको ये धारा नजर आई ,वरना बहुत से ऐसे कानून हवा में तैर रहे है,जिन्हें आम आदमी तक देख लेता है और देख कर या तो हँसता है या माथा पीटता। (उनके लिए ये मानवाधिकारवादी कभी नही बोले) धन्य है इनको, जो, इन्होने एक रोग को सामान्य व्यवहार सिद्ध कर दिखाया । अब शायद समाज में किसी को “ठरकी”कह कर अपमानित नही किया जाएगा । वैसे भी ये प्रगतिवादी समाज के डर से कब चुप बैठने वाले ,ये तो चाहते ही हैं कि समाज का डर आम जन में से निकल जाए ,सभी निर्लज्ज होंगे तो इनके लिए आसानी होगी ,भारत को यूरोप-अमेरिका बनाने में,और इनका इस दिशा में ये प्रयास सफल हुआ,बड़ी खुशी(इनके लिए) की बात है। इनके इस जज्बे को सलाम ,ये बेशक कम संख्या में हैं पर हैं हर जगह टी. वी .में ,फिल्मों में,संस्कृती कर्मियों में ,पत्र -पत्रिकाओं में ,एन जी ओ तो इनके मुख्य साधन हैं सरकारी विभाग विशेषकर शिक्षा विभाग में भी ये सक्रीय रहते हैं । इनमे भी महिलाएं ज्यादा सक्रीय रहती हैं । ये महिलाएं भारत की महिलाओं को दकियानूसी के बंद माहौल से यूरोप के खुलेपन वाले माहौल में ढालना चाहती हैं,जिसमे जब मर्जी तलाक़,लिया-दिया जा सकता है,तलाक़ लेने-देने की जरुरत ही क्यों हो बिना विवाह किए साथ रहने की वकालत भी तो ये प्रगतिवादी करते हैं ,इतने विरोधों के बावजूद भी ये इतने सक्रीय रहते हैं कि इन्हें धन्य हो कहना ही पड़ता है। इनकी तारीफ़ में लिखता तो बहुत कुछ पर इतना ही बहुत है ,ज्यादा के लिए अंग्रेज गए औलाद छोड़ गए पढ़वा देना ।

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